जी20 की बैठक से पहले 'ब्राउन टू ग्रीन रिपोर्ट 2017' जारी, जरूर क्लिक करें...
नई दिल्ली। जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में आज से शुरू हो रही जी20 बैठक को लेकर क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी संस्था ने अपनी 'ब्राउन टू ग्रीन रिपोर्ट 2017' रिपोर्ट जारी की है, जो जी -20 देशों द्वारा निम्न या कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर होने वाले बदलाव की स्थिती का जायजा लेती है।
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यह रिपोर्ट जी20 देशों के निम्न कार्बन आधारित अर्थव्यवस्था में रूपान्तरण का सर्वाधिक व्यापक मगर, सारगर्भित विश्लेषण पेश करती है। साथ ही यह दिखाती है कि आखिर कैसे भारत चार क्षेत्रों (उत्सर्जन, नीति पर अमल, वित्तीय व्यवस्था एवं कार्बन से मुक्ति की प्रक्रिया) में अपने साथी देशों के मुकाबले आगे है।
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जी20 देशों की अर्थव्यवस्था कार्बन से मुक्ति के रास्ते पर बढ़ चली है। अध्ययन के दायरे में लाये गये देश ऊर्जा को बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं और वे ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर निर्भर करते हैं। हालांकि बदलाव की शुरुआत तो हो चुकी है, मगर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिहाज से यह रफ्तार अपेक्षानुरूप नहीं है।
ऊर्जा उत्पादन में कोयला तथा अन्य जैव ईंधन
जी20 देशों की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ उनके द्वारा ऊर्जा की खपत भी बढ़ी है। अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ा जरूर है, लेकिन जी20 देशों के कुल ऊर्जा उत्पादन में कोयला तथा अन्य जैव ईंधन से बनने वाली बिजली की हिस्सेदारी काफी ज्यादा है।
जी20 शिखर बैठक
अपेक्षा है कि यह रिपोर्ट आगामी जी20 शिखर बैठक के दौरान विश्व नेताओं के जहन में उतरेगी। इन नेताओं के लिये यह रिपोर्ट एक अद्यतन डेटा के अनोखे स्रोत की तरह होगी, जिसे इस जी20 बैठक के दौरान बातचीत के दौरान और उसके बाद भी संदर्भ के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इस रिपोर्ट को जी20 देशों ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका तथा ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने विकसित किया है। भारत के क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी और टेरी परस्पर साझेदार है।
डीकार्बनाइजेशन मुख्य बातें
- अक्षय ऊर्जा का चलन बढ़ रहा है। जी20 देश पहले से ही दुनिया भर में स्थापित वायु बिजली क्षमता के 98 प्रतिशत हिस्से पर अधिकार रखते हैं। वहीं सौर ऊर्जा के मामले में उनकी हिस्सेदारी 97 प्रतिशत तथा सड़कों पर चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में 93 प्रतिशत है।
- वर्ष 1990 से 2014 के बीच जी20 द्वारा ग्रीनहाउसस गैसों के उत्सर्जन में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, लेकिन इसी अवधि में इन देशों की अर्थव्यवस्था ने करीब 117 प्रतिशत के हिसाब से विकास किया।
- जी20 देशों की कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति में कार्बन का दबदबा अब भी बढ़ रहा है।
- आधे से ज्यादा जी20 देशों में प्रतिव्यक्ति ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है।
- अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश के मामले में जी20 देश आकर्षक हैं।
- ग्रीन बांड्स का आकार जी20 में शामिल प्रत्येक देश के ऋण बाजार के एक प्रतिशत हिस्से से भी कम है।
- वर्ष 2013 और 2014 के बीच जी20 देशों का सार्वजनिक वित्त संस्थानों पर कोयला, तेल एवं गैस की मदों में औसत खर्च करीब प्रतिवर्ष 88 अरब डॉलर था।
- जैव ईंधन पर दिये जाने वाले अनुदान को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने का संकल्प बार-बार दोहराये जाने के बावजूद जी20 देशों ने 2014 में कोयला, तेल तथा गैस पर 230 अरब डॉलर की सब्सिडी दी।
- जी20 देशों में से जैव ईंधन के लिये लोक वित्त के उच्चतम स्तरों के मामले में जापान और चीन सबसे आगे हैं।
- हाल के वर्षों में और अधिक कार्बन प्राइसिंग तंत्रों को लागू किया गया है।
- जलवायु परिवर्तन पर काम करने के मामले में चीन, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, भारत, मेक्सिको तथा दक्षिण अफ्रीका शीर्ष पर हैं। जलवायु नीति पर काम करने के मामले में सबसे पिछड़े देशों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, सऊदी अरब तथा तुर्की शामिल हैं।
- कोई भी जी20 देश पेरिस समझौते के तहत ली गयी प्रतिज्ञाओं पर अमल के मामले में मुस्तैदी से काम नहीं कर रहा है।
- उनमें से कोई भी देश कार्बन उत्सर्जन को कम करके तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं है।
वित्त सम्बन्धी प्रमुख बातें
जापान और चीन सबसे आगे
नीति सम्बन्धी प्रमुख बातें