जानिए देश के लिए जान कुर्बान करने वाले ऐसे शहीदों को, जो रह गए 'गुमनाम'
दिल्ली। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों ने कुर्बानियां दीं। कई शहीदों को हम शिद्दत से याद करते हैं। लेकिन कई शहीद ऐसे भी हैं जिन्होंने इस देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया लेकिन इतिहास में उनका कभी नाम नहीं हुआ।
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इतिहास में किसी का नाम होने या ना होने की अपनी वजहें होती हैं। इतिहास जब लिखा जाता है तो कई लोग उसमें छूट जाते हैं। और जब इतिहास में किसी का नाम नहीं होता तो वक्त बीतने के साथ कोई उनको याद भी नहीं रखता।
लेकिन किसी के बलिदान को भले लोकप्रियता न मिली हो, स्थानीय स्तर पर ऐसे लोगों की कुछ न कुछ यादें रहती हैं, चाहे वह स्मारक के रूप में हों या चौराहों के नाम के रूप में।
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इस देश के लिए शहीद होने वाले कई वीरों और वीरांगनाओं का नाम आपने सुना होगा। लेकिन हम आपका परिचय कुछ ऐसे शहीदों से करवाने जा रहे हैं जिनका नाम शायद ही आपने कभी सुना होगा।
बाजी राउत
बाजी राउत देश के सबसे कम उम्र के शहीद थे। वह एक नाविक के बेटे थे। अंग्रेज ओडिशा के नीलकंठपुर में ब्राह्मणी नदी को पार करना चाहते थे लेकिन बाजी राउत ने उन्हें ले जाने से मना कर दिया। अंग्रेजों ने गुस्से में आकर उन्हें गोली मार दी। महज 12 साल की उम्र में देश के लिए वो शहीद हो गए।
बसंत विश्वास
जुगांतर पार्टी से जुड़े बसंत विश्वास ने दिल्ली में वायसराय परेड पर बम फेंका। 1915 में अंबाला जेल में उनको फांसी दी गई।
भाई बालमुकुंद
पंजाब के झेलम जिले के भाई बालमुकंद ने लाहौर के लॉरेंस गार्डेन में अंग्रेजों पर हमला किया। उनको फांसी की सजा मिली। देश के इस अमर शहीद को सलाम।
हेमू कालानी
हेमू कालानी सिंध के सुक्कुर के रहने वाले थे। देश की आजादी के लिए वह बलिदान हो गए। उनको 1943 में फांसी दी गई।
हुतात्मा बाबू गेनु
22 साल की उम्र में विदेशी कपड़ों का विरोध करते हुए हुतात्म बाबू गेनु शहीद हुए।
हाइपो जादोनांग
मणिपुर के नागा फ्रीडम फाइटर हाइपो जादोनांग को 1931 में अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया। देश के शहीद को सलाम।
कनकलता बरुआ
असम की कनकलता बरुआ देश की वीरांगना थीं। 1942 में ब्रिटिश सरकार के विरोध में एक जुलूस का नेतृत्व वह कर रही थीं। उनके हाथ में देश का झंडा था और जुबां पर देश की आजादी के नारे। वह अंग्रेजी की गोली की शिकार हुईं और देश के शहीदों में अपना नाम अमर कर गईं।
कान्नेगंती हनुमंथु
कान्नेगंती हनुमंथु ने आंध्र प्रदेश में गुंटूर के पलनाडु ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कर अदा नहीं करने का आंदोलन छेड़ा। अंग्रेजों ने उन्हें गोली मार दी। देश उनका बलिदान हमेशा याद रखेगा।
करतार सिंह सराभा
क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा को गदर आंदोलन के लिए 1915 में मौत की सजा मिली। देश के अमर शहीद को सलाम।
कुशल कोंवार
गुवाहाटी के कुशल कोंवार भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हुए। उनको फांसी दी गई।
मनिराम दीवान
असम के मनिराम दीवान 1857 में अंग्रजों के खिलाफ लड़े। उनको जोरहाट जेल में फांसी की सजा दी गई।
मास्टर शिरीष कुमार
महाराष्ट्र के नंदूरबार के रहने वाले मास्टर शिरीष कुमार 15 साल की उम्र में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान शहीद हुए।
मातंगिनी हाजरा
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में मातंगिनी हाजरा भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोलियों की शिकार हुईं। इस वीरांगना को सलाम।
सागरमल गोपा
राजस्थान के जैसलमेर में सागरमल गोपा का स्मारक है। आजादी की लड़ाई में वह जेल गए। जेल में उनको यातना दी गई जिसमें उनकी जान चली गई और वह देश के लिए शहीद हो गए।
सांगोली रायन्ना
कर्नाटक में बेलगाम क्षेत्र में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में सांगोली रायन्ना शहीद हुए। उनको अंग्रेजों ने बरगद के पेड़ से लटकाकर फांसी दी। वह बरगद का पेड़ आज भी इस अमर शहीद की याद दिलाता है।
टंट्या भील
मध्य प्रदेश के नीमाड़ इलाके के टंट्या भील को भारत का रॉबिन हुड कहा जाता है। अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में उनको 1890 में फांसी की सजा मिली।
वीर नारायण सिंह
भारत की आजादी में छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंह ने अपने प्राणों का बलिदान किया। 10 दिसंबर 1857 को उनको तोप के गोले से उड़ा दिया गया।
सभी फोटो- ट्विटर@indiahistorypic