Father Camille Bulcke: जब बेल्जियम से आया ईसाई धर्म प्रचारक बन गया हिंदी का सबसे बड़ा विद्वान
नई दिल्ली। हिन्दी जनभाषा है। दिलों को जोड़ने वाली भाषा है। देश में सबसे अधिक (43.63 फीसदी) हिन्दी ही बोली जाती है। यह राष्ट्र के गौरव और आत्मसम्मान से जुड़ी है। फिर भी कुछ अंग्रेजीदां लोग न केवल हिंदी की तौहीन करते हैं बल्कि हिंदी बोलने वालों को हिकारत की नजर से देखते हैं। ऐसे लोगों को ये मालूम होना चाहिए कि जिस भाषा की वे उपेक्षा कर रहे हैं उसके महत्व को विदेशियों ने समझा और उसे प्रतिष्ठा दिलायी। आजमगढ़ के साहित्यकार जगदीश प्रसाद वर्णवाल ने एक किताब लिखी है- विदेशी विद्वानों का हिंदी प्रेम।
‘ठेठ हिन्दी का ठाट’
इस किताब में उन्होंने लिखा है कि दुनिया के 34 देशों के पांच सौ अधिक विद्वानों ने हिंदी पर शोध कर के किताबें लिखी हैं। चेकेस्लोवाकिया (अब चेक रिपब्लिक) के विद्वान वित्सेंत्सी लेस्नी ने 1911 में ही अयोध्या सिंह उपाध्याय की किताब ‘ठेठ हिन्दी का ठाट' का चेकभाषा में अनुवाद किया था। लेकिन हिंदी के सबसे प्रतिष्ठित विदेशी सेवक हैं फादर कामिल बुल्के। बेल्जियम के रहने वाले फादर कामिल बुल्के भारत आये तो थे ईसाई धर्म के प्रचार के लिए लेकिन उनके मन में हिंदी की ऐसी लगन लगी कि वे यहीं के होकर रह गये। विदेशी होते हुए भी वे हिंदी के सबसे बड़े भाषा वैज्ञानिक बन गए।
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फादर कामिल बुल्के
फादर कामिल बुल्के का जन्म वेल्जियम में हुआ था। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की थी। इंजीनियर बनने के बाद नौकरी करने की बजाय वे धार्मिक कार्यों में रुचि रखने लगे। 1930 में वे ईसाई धर्म के प्रचारक बन गये। 1934 में भारत आये। सबसे पहले मुम्बई पहुंचे। कुछ दिनों तक दार्जिंलिंग में रहे फिर बिहार के गुमला (अब झारखंड) पहुंचे। गुमला में वे गणित के शिक्षक बन गये। गणित पढ़ाने के दौरान ही उनका वास्ता हिंदी से पड़ा।
एक इंजीनियर को हिंदी से प्रेम
एक विदेशी इंजीनियर को भला हिंदी में क्या दिलचस्पी हो सकती थी, लेकिन फादर कामिल बुल्के को हिंदी से प्रेम हो गया। 1938 वे हिन्दी और संस्कृत सीखने के लिए हजारीबाग पहुंचे गये और और प्रकांड विद्वान पंडित बद्रीदत्त शास्त्री को अपना गुरु बना लिया। इस दौरान फादर बुल्के ने पाया कि यहां के लोग अंग्रेजी बोलने में गौरव महसूस करते हैं और अपनी भाषा और संस्कृति की चिंता नहीं करते। अपने ही घर में हिंदी उपेक्षित थी। तभी उन्होंने तय किया वे हिंदी को प्रतिष्ठा दिला कर रहेंगे।
विदेशी बना हिंदी का विद्वान
फादर कामिल बुल्के ने 1940 में हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से संस्कृत में विशारद की परीक्षा पास की। फिर 1944 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से संस्कृत में एमए की डिग्री हासिल की। 1949 में उन्होंने प्रतिष्ठित इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनके शोध का विषय था- रामकथा की उत्पत्ति और विकास। 1950 में वे रांची आ गये । रांची के सबसे मशहूर सेंटजेवियर्स कॉलेज में एक साथ वे हिंदी और संस्कृत के विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए। उन्हें हिन्दी के प्रति ऐसा अनुराग हुआ कि 1950 में उन्होंने भारत की नागरिकता ग्रहण कर ली। अब वे सच्चे भारतीय की तरह हिंदी की सेवा करने लगे। 1982 में बीमारी की वजह से दिल्ली में उनका निधन हो गया था। तब उनकी उम्र 72 साल थी।
रामकथा
पर
प्रमाणिक
शोध
1972 में उन्हें भारत सरकार ने केन्द्रीय हिन्दी समिति का सदस्य बनाया। 1974 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। फादर कामिल बुल्के ने रामकथा का जितना वैज्ञानिक और शोधपूर्ण अध्ययन किया उतना किसी भारतीय ने नहीं किया है। उन्होंने रामचरित मानस को समझने के लिए अवधी और ब्रज भाषा भी सीखी थी। 1968 में उन्होंने हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश की रचना की जिसे आज भी प्रमाणिक डिक्शनरी माना जाता है। अगर किसी शब्द के अर्थ और हिज्जै पर कोई विवाद होता है फादर कामिल बुल्के की डिक्शनरी से ही उसका निवारण होता है।
हिंदी के कुछ और विदेशी सेवक
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन आयरलैंड के रहने वाले थे। वे इंडियन सिविल सर्विस का अधिकारी बन कर 1873 में भारत आये थे। अंग्रेजों का मुलाजिम होने के बाद भी ग्रियर्सन ने भारत की भाषाओं के अध्ययन में गहरी रुचि दिखायी। लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया उनकी ऐतिहासिक कृति है जो 21 जिल्दों में छपी थी। इससे खड़ी बोली के रुप में हिंदी के विकास का रास्ता तैयार हुआ। रूस के रहने वाले पीटर वारान्निकोव 1970 के दशक में दिल्ली स्थित सोवियत सूचना केन्द्र से जुड़े थे। उन्हें भी हिंदी से ऐसा प्रेम हुआ कि उन्होंने रामचरित मानस का रूसी भाषा में अनुवाद कर दिया। वे दिल्ली के साहित्यिक गलियारे के चर्चित हस्ती थे। इसी तरह जापान के ओकियो हागा टोकियो यूनिवर्सिटी में और न्यूजीलैंड के रोनाल्ड स्टुअर्ट मैक्ग्रेगॉर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ाते थे। आज हिन्दी की लोकप्रियता ऐसी है कि दुनिया 34 देशों में इसकी पढ़ाई हो रही है।
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