Engineers Day 2019: भारत रत्न 'विश्वेश्वरैया' ने कभी नहीं की बुढ़ापे से मुलाकात, जानिए कैसे?
नई दिल्ली। आज पूरा भारत अभियंता दिवस (इंजीनियर्स डे) मना रहा है, 15 सितंबर को भारत के महान अभियंता और 'भारतरत्न' मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म दिन है इसलिए उनकी याद में आज पूरे देश में अभियंता दिवस मनाया जाता है।
चलिए जानते हैं देश के महान अभियन्ता और भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के बारे में खास बातें....
अभियंता दिवस (इंजीनियर्स डे)
विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1861 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। विश्वेश्वरैया ने प्रारंभिक शिक्षा जन्मस्थान से ही पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बेंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया। विश्वेश्वरैया ने 1881 में बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया।
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नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर रहे थे विश्वेश्वरैया
इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। 1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया। इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।
एशिया का सबसे बड़ा बांध केआरएस
दक्षिण भारत के मैसूर, कर्र्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में एमवी का अभूतपूर्व योगदान है। विश्वेश्वरैया जी ने हैदराबाद शहर के पूरे ड्रैनेज सिस्टम को सुधारा था। बिहार और ओडि़सा में विश्वेश्वरैया जी ने कई रेलवे ब्रिज और पानी के बांधों से जुड़ी स्कीम बनाईं। विश्वेश्वरैया जी ने एशिया का सबसे बड़ा बांध केआरएस बनाया ।
गरीबी का मुख्य कारण अशिक्षा
विश्वेश्वरैया लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दिया। इसके साथ ही विद्यार्थियों की संख्या भी 1,40,000 से 3,66,000 तक पहुंच गई। मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल और पहला फर्स्ट ग्रेड कॉलेज (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वेश्वरैया को ही जाता है।
भारत रत्न
वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे। 1928 में पहली बार रूस ने इस बात की महत्ता को समझते हुए प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की थी। लेकिन विश्वेश्वरैया ने आठ वर्ष पहले ही 1920 में अपनी किताब रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में इस तथ्य पर जोर दिया था। इसके अलावा 1935 में प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया भी लिखी। 1955 में उनकी अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।
'आपके फिट होने का रहस्य क्या है?'
भारत-रत्न से सम्मानित डॉ.मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया ने सौ वर्ष से अधिक की आयु पाई और अंत तक सक्रिय जीवन व्यतीत किया। एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपके फिट होने का रहस्य क्या है?' विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है और वह निराश होकर लौट जाता है। बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?'
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