कहां गए कश्मीर और सोनमर्ग के वह सुनहरे मैदान?
सोनमर्ग।
यश
चोपड़ा
निर्मित
'सिलसिला'
हो
या
शम्मी
कपूर-शर्मिला
टैगोर
अभिनीत
'कश्मीर
की
कली'
और
राजकपूर
की
'राम
तेरी
गंगा
मैली'
जैसी
कुछ
फिल्मों
की
यहां
शूटिंग
हुई
थी।
गायब
हो
रही
खूबसूरती
चूंकि
कश्मीर
के
इस
खूबसूरत
पर्यटक
स्थल
पर
होटलों,
चाय
के
खोके,
ढाबे
और
दस्ताकारी
के
बूथों
से
भर
गए
हैं,
इसलिए
किसी
को
भी
इस
बात
पर
हैरत
हो
सकती
है
कि
यहां
के
सुनहरे
मैदान
कहां
चले
गए?
यहां
के
मैदान
का
यही
नाम
दिया
गया
था।
जम्मू एवं कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी से 87 किलोमीटर की दूरी पर गांदेरबल जिले में जोजिला दर्रे की तलहटी में स्थित सोनमर्ग प्रकृति प्रेमियों, पैदल चलने वालों, साफ पानी में नौका विहार करने वालों, कांटे से मछली का शिकार के शौकीनों और फिल्मकारों के लिए सबसे पसंदीदा जगह है।
सिकुड़
रहा
ग्लेशियर
थाजवास
ग्लेशियर,
सोनमर्ग
से
तीन
किलोमीटर
की
ऊंचाई
पर
स्थित
है।
यह
पर्यटकों
और
स्थानीय
लोगों
के
लिए
आकर्षण
का
सबसे
बड़ा
केंद्र
है।
लेकिन
पर्यावरण
वैज्ञानिकों
का
कहना
है
कि
सालों
से
ग्लेशियर
सिकुड़
रहा
है
और
तेजी से पिघलने के कारण यह इतिहास में समा जाएगा।
कश्मीर विश्वविद्यालय में पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर शकील अहमद रोमशू ने कहा, "थाजवास ग्लेशियर तक एक कंक्रीट की सड़क का निर्माण कराया गया है। सोनमर्ग आने वाला हर कोई ग्लेशियर तक पहुंचना चाहेगा।" रोमशू ने जम्मू एवं कश्मीर में पर्यावरण पर उल्लेखनीय काम किया है।
उन्होंने कहा, "यदि आप पिछले 40 वर्षो के रिकॉर्ड देखेंगे तो पता चलेगा कि तेजी से पिघलने के कारण ग्लेशियर खतरनाक ढंग से कम होता चला गया है। इसके लिए मानवीय हस्तक्षेप जिम्मेवार है।"
रोमशू ने कहा, "दुनिया में कहीं भी किसी ग्लेशियर तक पहुंचने के लिए कंक्रीट की सड़क नहीं बनाई गई है। यदि आप ग्लेशियर तक पहुंचना चाहते हैं तो आपको कुछ किलोमीटर तक पैदल चलना चाहिए न कि सीधे ईंधन वाले वाहन से पहुंचना चाहिए।"
होटल निर्माण में तेजी
कुछ वर्ष पहले तक सोनमर्ग में स्थानीय पर्यटन विभाग का गिनती का पर्यटक हट था और तीन से चार होटल थे। सोनमर्ग में एक पुराने होटल के मालिक नजीर अहमद वार (52) ने कहा, "उन दिनों अधिकांश पर्यटक घास के मैदान में अपना तंबू लगाते थे और उसके बाद ट्राउट (एक प्रकार की मछली) का शिकार करते थे, पैदल चलते थे, पहाड़ पर चढ़ते थे।
बस कुछ ही होटल यहां होते थे और उनमें भी आधे दर्जन से ज्यादा कमरे नहीं होते थे। आज यहां दो दर्जन होटल हैं और कई बन रहे हैं। सरकारी जमीन का अतिक्रमण जारी है और सबका परिणाम यह है कि कश्मीर का सुनहरा मैदान होटलों और कंक्रीट के जंगल से छाता जा रहा है।