मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिये जीने की तमन्ना
बेंगलुरु (अजय मोहन)। स्पेशल किड्स जो जन्म से ही मानसिक व शारीरिक विकलांगता का शिकार हैं, उन्हें लोग समाज से अलग कर देते हैं। सोचते हैं, ये कुछ नहीं कर सकते। लेकिन शायद आपको मालूम नहीं होगा कि इसी साल लॉस एंजलेस में आयोजित स्पेशल ओलंपिक्स वर्ल्ड समर गेम्स में भारत ने 177 मेडल जीते। ये बच्चे आपके लिये स्पेशल हों न हों, लेकिन आरती के लिये बहुत स्पेशल हैं। मानसिक विकलांगता के शिकार लोगों के लिये जीने की तमन्ना ही इन्हें आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है।
आरती वही हैं, जिनके नेतृत्व में स्पेशल एथलीट्स की भारतीय टीम ने लॉस एंजलेस में तिरंगा फहराया। आरती से हमारी मुलाकात कर्नाटक के छोटे से कसबे तोरणगुलु में हुई। आरती यहां पर स्पेशल चिलड्रेन को ट्रेनिंग देती हैं। उन्हें उठने-बैठने का तरीका, खाने पीने का सलीका और दैनिक क्रियाएं कैसे की जायें, यह सब सिखाती हैं। इसके अलावा आरती इन बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होना भी सिखाती हैं।
जेएसडब्ल्यू के तमन्ना अभियान के अंतर्गत इन बच्चें का सशक्तिकरण किया जाता है। जेएसडब्ल्यू फाउंडेशन के तहत बच्चों को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे बाकी बच्चों की तरह कुछ अलग कर सखें।
सोशल वर्क में पीजी करने के बाद एचआईवी एड्स के प्रति जागरूकता के अलग-अलग अभियानों से जुड़ने के बाद अब आरती जेएसडब्ल्यू के इसी संस्थान में कार्यरत हैं। आरती कहती हैं, "जब मैं इन बच्चों को देखती हूं, तो उनकी आंखों में एक अलग सी चमक दिखाई देती है और कुछ करने की ललक। लेकिन शारीरिक विकलांगता की वजह से वे कर नहीं पाते। और हां कोशिश निरंतर करते हैं। और इन बच्चों के यही गुण मुझे इनके लिये कुछ करने के लिये प्रेरित करते हैं।"
आरती बताती हैं कि केंद्र में आने वाले प्रत्येक बच्चे का एक अलग से अकाउंट खोल दिया जाता है। बच्चे कागज के लिफाफे बनाते हैं। इन लिफाफों को बेच कर जो कमाई होती है, वो इन बच्चों के अकाउंट में जमा कर दिया जाता है। केंद्र में कुल 85 बच्चे हैं।
आरती बताती हैं कि तमन्ना के तहत स्पेशल स्टूडेंट्स के लिये स्पीच थैरेपी, योगा, व्यायाम, सामान्य अध्ययन, आदि का आयोजन करती हैं, जिससे बच्चों का पर्सनालिटी डेवलपमेंट होता है।