हमेशा 'यस' कहना अच्छी बात नहीं, कभी-कभी 'नो' भी बोलिये
आँचल प्रवीण
लखनऊ। अब आप सोच रहे होंगे की ये मुझे अचानक से क्या हो गया, आजतक तो हम सभी यही पढ़ते आ रहे हैं की दूसरों की ख़ुशी में ही सच्ची ख़ुशी और वास्तविक संतोष होता है फिर आज अचानक से मैं कहने लगी की हमेशा दूसरों को ही नही खुद को भी खुश रखने के बारे में सोचें। जी हाँ मैं बिलकुल ठीक कह रही हूँ क्योंकि बचपन से ही हमें दूसरों के बारे में पहले और अपने बारे में बाद में सोचने की शिक्षा दी जाती रही है , तो कई बार हमें मन मार कर वो काम भी करना पड़ता है जो हमे पसंद नहीं।
हम किसी भी काम को मना करने या ना कहने से पहले यह सोचते हैं की फलां को कहीं बुरा लग गया तो, उसे कोई बात ना पसंद आई तो ऐसे में हम यह भूल जाते हैं की कहीं वो काम करने में हम खुद को नज़रंदाज़ तो नहीं कर रहे या उससे हम अपना दिल तो नही दुखा रहे।
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हाल ही की बात है मेरी एक दोस्त को उसके बॉस ने पुराने सालों के कुछ रिकार्ड्स थमा दिए यह कह कर की वो उस ऑफिस की सबसे काबिल एम्प्लोयी है। अब दूसरों का काम भी उसके मत्थे पड़ गया लेकिन बस यह सोच कर की कहीं बॉस को बुरा ना लगे वो मना नहीं कर पायी और ना चाहते हुए भी तमाम उलझनों और घर बहार की परेशानियों के साथ महीने भर झेलते रही, ये महिलाओं के साथ होना एक आम बात है।
ऑफिस हो या घर मना न कर पाने के कारण वे कई दफा पिस कर रह जाती हैं, दरअसल लडकियों को हमेशा ही दूसरों के बारे में पहले सोचने की ट्रेनिंग दी जाती है और कई मर्तबा वो यह सोचती है की अगर वे खुद को पहले रखेंगी तो वे आत्म केन्द्रित हो सकती हैं, इससे उनके आसपास कोई सहयोगी नहीं होगा पर यह सोच भी गलत है क्योंकि अपनी कीमत पर दूसरों को खुश करने मे जरूरी नही की आप खुद भी खुश हों इसलिए हमेशा हाँ कहने से भी बचें।
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ना कहना भी अपनेआप में एक कला है, यह उस मसाले की तरह है जिसके ज़रा भी कम या ज्यादा हो जाने से खाने का स्वाद बिगड़ जाता है | इसलिए सही लहजे सही तरीके और सही समय पर ना बोलना ज़रूरी है वरना आपकी मेहनत और बने बनाये व्यक्तित्व पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है| आपको अपने भीतर यह कला विकसित करनी होगी जिससे आप सही समय और सही तरीके में ना कहना सीख जाएं | आपका यही अंदाज़ लोगो में आपकी छवि को बना या बिगाड़ सकता है।
हमेशा 'यस सर' कहना अच्छी बात नहीं
कई बार हम दूसरों को खुश रखने के लिए , कई बार दूसरों की मदद करने के लिए , कई बार अपनी सहमति जताने के लिए या कई बार बहस के डर से हमलोग ना कहने से डरते हैं | फ्लोरिडा के एक विश्वविद्यालय द्वारा किये गये अध्ययन में यह बताया गया की अपने अनुसार निर्णय लेने वाले दूसरों के मुताबिक चलने वालों से तीन गुना अधिक सुखी और खुश रहते हैं | यानी पहले अपने बारे में सोचना है अधिक फायदेमंद इसलिए अपनी बात साफ साफ करें और परिस्थितियों के अनुसार ना कहना भी सीखें | इससे आप खुद के साथ दूसरों की नज़रों में भी ऊंचे उठ सकेंगे।