Debate on Earth Day- पृथ्वी दिवस पर तीन महत्वपूर्ण बातें
"पृथ्वी दिवस" पर जब रस्मी तौर पर चर्चा की जाती है, तभी यह एहसास होने लगता है कि जनता की नजर में हमारी पृथ्वी कितनी दोयम हो जाती है। हमारी पृथ्वी ही एकमात्र ऐसी जगह है, जहां जीवन आज भी संभव है। लेकिन जब बात पृथ्वी को बचाने और संरक्षित करने की आती है, तो विद्वान भी बगलें झांकते नजर आते हैं।
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दरअसल आज मानवजन की अज्ञानता से हमें इस मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब यह समझ में नहीं आ रहा कि इसमें सुधार की शुरुआत किस तरीके से हो? पर्यावरण के साथ हमारा शाश्वत रिश्ता रहा है। जीवन और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक हैं। पर्यावरण के बगैर जीवन नामुमकिन है। शुद्ध पानी, पृथ्वी, हवा हमारे स्वस्थ जीवन की प्राथमिक शर्तें हैं। अस्तित्व का ऐसा उदाहरण दूसरा कोई नहीं है। अखिर यह संकट हमारे बीच के रिश्ते में आए असंतुलन का कुपरिणाम ही तो है।
संजीता से इस अमूल्य धरोहर को संजोने के बजाय सरकारी गैरसरकारी तरह-तरह से आयोजन होते हैं। हम धरती और पर्यावरण को बचाने का संकल्प लेते हैं। पौधे रोपण से लेकर नदियों तालाबों व अपने आसपास की साफ़-सफ़ाई जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जन जागरुकता अभियान, सभा, संगोष्ठी व सम्मेलन आयोजित किया जाते हैं। किंतु टिकाऊ कुछ नहीं होता है।
सच पूछिए तो पृथ्वी को बचाने के लिए हमें मुख्य तौर पर 3 बिंदुओं पर ध्यान देने की जरूरत है-
1. जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन को बारीकी से समझना होगा। और यह समझ केवल वैज्ञानिकों तक सीमित नहीं रहनी चाहिये, आम जन मानस तक इस ज्ञान को पहुंचाने की जरूरत है। जैसे कि अगर सरकार घरेलू विमानों में ऐसे उपकरण लगा दें, जिससे जलवायु की उपरी सतह के मौसम के बारे में जानने का मौका मिले तो उससे प्राप्त आकड़े का उपयोग बेहतरी के लिए किया जा सकता है।
2. खाद्य सुरक्षा
हमें अन्न पृथ्वी से ही मिलता है। जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है, उससे आने वाले दिनों में पृथ्वी पर दबाव निसंदेह काफी ज्यादा बढ़ने वाला है। बढ़ती जनसंख्या को हम तभी पोषकता दे सकते है, जब पृथ्वी बची रहेगी। एक तथ्य यह भी है की विश्व में शाकाहारी भोजन वाले वहुतायत में हैं। इस लिहाज से ज्यादा विभाग में शाकाहारी पदार्थ को उपज भी चुनौती है। हमें इस बिन्दु पर भी तवज्जो देने की आवश्यकता है।
3. जल
हमें पानी पृथ्वी से मिलता है हाल के दिनों में पानी किस तरह प्रदूषित हुए हैं, यह हरेक के संज्ञान में है। प्रदूषण को कम करना पानी की मात्रा और गुणवत्ता पर भी नजर रखने की जिम्मेदारी लेनी होगी। यह दोनों चीज बेहद जरुरी है।
इन सब बिंदुओं को केंद्र में रखते हुए आंतरराष्ट्रीय विज्ञान परिषद भविष्य में पृथ्वी को संरक्षित करने के बारे में गंभीरता से मंथन कर रही है। परिषद की प्रमुखता इसे लेकर है कि कैसे पृथ्वी को टिकाऊ और इस्तेमाल के लायक बनाया जाए?
इसमें तीन और बातें हैं जो बेहद महत्वपूर्ण है-
पहली- प्राकृतिक आपदा को कम करना। हमें मालूम है कि प्राकृतिक आपदाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं, लेकिन यदि हम जलवायु परिवर्तन को समझते हुए पर्यावरण को दूषित होने से बचायें, तो बड़ी आपदाएं टल सकती हैं।
दूसरी- मेगा सिटी पर बढ़ते दबाव को कम करना। हम स्मार्ट सिटी की बात करते हैं लेकिन स्मार्ट विलेज को क्यों नहीं तरजीह देते हैं। साथ हि स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि अगर हम ग्रामीण इलाकों को विकसित करेंगे तो बड़े शहरों और महानगर पर बेवजह पड़ने वाला दबाव कम हो जाएगा।
तीसरी- हमें आजीविका के वैकल्पिक साधन विकसित करने होंगे। मसलन, नई प्रजाति की फसल। साथ में हर्बल पौधे को बढ़ावा देने की समझ भी हमें विकसित करनी होगी। प्रारंपरिक चीजों को परिस्थिति की से जोड़ना। हमारे सभी त्योहार प्रकृति एवं पर्यावरण के लिहाज से बने हुए हैं।
हमारे यहां हमेशा से पेड़ों, नदियों तालाबों व पृथ्वी की पूजा होती रही है, लेकिन थोरे पढ़े-लिखे आधुनिक समाज ने इन परंपराओं को रूढि़वादिता के चलते कूड़ेदान में फेंक दिया है और आज अपना कूड़ा कचरा ही हम पर भारी पड़ रहा है। विकासमान पर्यटन को भी बढ़ावा देने की जरूरत है।
यदि हमें पृथ्वी पर्यावरण को बचाना है, खुद को बचाना है तो फिर से अपनी परंपराओं को, शाश्वत चेतना को जगाना होगा। अन्यथा एक दिन का अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस महज औपचारिकता से कुछ नहीं होगा।