'चाइनीज मांझा है, उंगली क्या जिंदगी की डोर भी काट दे'
लखनऊ। आसमां में ऊंचाई तय करती हुई पतंग, जिसकी डोर नीचे उड़ाने वाले के हाथों में। जैसी दिशा दे उस ओर उड़ चले पतंग। और पेंच लड़ाकर दूसरे की पतंग काटने की वो खुशी........भाई चरखी से ढ़ील दो जल्दी-जल्दी। अमां लपेटना.....घसीटने जा रहा हूं। बहुत तगड़ा पेंच पड़ा है। तेजी से घसीटने के चक्कर में ऊंगली कट गई। पर, आज उंगली के अलावा जिंदगी की डोर भी काट देता है ये मांझा।
जानिए क्यों उड़ाई जाती हैं पतंगे?
रही बात पतंग के शौक की तो यह कुछ नया नहीं है। चर्चित लेखक रस्किन बांड की लघु कहानियों में इसका जिक्र भी है। उन्होंने अपनी कहानी में बताया है कि 20वीं सदी के आरंभ में 'आकाश में उड़ती पतंगे, एक दूसरे से उलझती जब तक कि एक का मांझा कट न जाए।'
दिल्ली में चाइनीज 'किलर मांझे' ने काट दी मासूम के जीवन की डोर
जिंदगी से खिलवाड़
पतंगों का शौक आज भी लोगों में जिंदा है। सट्टेबाजी भी खूब होती है। बड़े-बड़े पतंगबाज भी हैं। लखनऊ से हजरतगंज जाते वक्त बारादरी से पहले भातखंडे के बगल में सटे पार्क में देख लीजिए या फिर अमीरूद्दौला लाइब्रेरी के बगल में बने पार्क में देख लीजिए।
आज पतंगबाजी महज शौक नहीं
बैग में भरकर पतंग, धागे से भरी लटाईयां, मांझे की अलग लटाईयां लेकर लोग आसमां में पहुंचने का ख्वाब लेकर आते हैं। लेकिन आज पतंगबाजी महज शौक नहीं बल्कि इसकी आड़ में दुश्मनी तैयार की जाने लगी है। जिसकी पतंग कटी वो पतंग काटने वाला का दुश्मन सरीखे। इसी के चलते एक दूसरे को हराने की होड़ में जिंदगी से खिलवाड़ किया जाने लगा है।
खतरनाक मांझा, खतरे में परिंदे भी, इंसान भी
कानपुर के स्थानीय निवासी और पतंगबाज रमेश गौतम के मुताबिक अब पतंग के मांझों को मजबूत, धारदार बनाने के लिए कांच के बारीक टुकड़ों के इतर धातुओं अति सूक्ष्म कणों का भी इस्तेमाल किया जाता है। जिसे गोंद की मदद से धागे पर चिपकाया जाता है या ये भी कह सकते हैं कि बारीक परत चढ़ा दी जाती है। जिसकी वजह से कई बार लोगों की उंगलियां कट जाती हैं। और इस तरह के मांझे का बाजार में दाम भी अधिक होता है।
असुरक्षित हैं 'नादान परिंदे'
- 16 जनवरी को एक मीडिया रिपोर्ट में प्रकाशित खबर के मुताबिक अहमदाबाद में एक दिन में करीबन 2200 पक्षी मांझे की वजह से घायल हो गए जबकि 110 की मौत हो गई।
- वहीं एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दिल्ली में 15 अगस्त के दिन मांझे की वजह से 570 पक्षियों की मौत और 1000 पक्षी घायल हो गए।
मांझे से घायल भी, मांझे से मौत भी
बीते दिनों स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कई लोगों के लिए पतंगबाजी नहीं बल्कि मांझा जानलेवा साबित हुआ। दिल्ली के रानीबाग में गाड़ी की रूफ विंडो से झांकती मासूम बच्ची के गला मांझा फंस जाने की वजह से कट गया। और अस्पताल ले जाने से पहले ही उसकी मौत हो गई। वहीं दिल्ली के ही विकासपुरी इलाके में एक बाईकसवार की मांझे की चपेट में आ जाने की वजह से मौत हो गई। जबकि अन्य कई शहरों से भी मांझे की वजह से घायल होने की खबरें मिलीं।
सच्चे प्रयास की जरूरत
कई राज्यों में खतरनाक मांझे के प्रयोग पर पाबंदी है। जिसमें पंजाब, महाराष्ट्र और गुजरात भी आते हैं। जबकि राजधानी दिल्ली में करीबन चालीस वर्ष पुराना कानून है जो खतरनाक पतंगबाजी पर पाबंदी लगाता है। लेकिन पतंगबाजी के इस शौक के आगे कानून वाकई बेबस और लाचार नजर आता है।
जरूरत है इस कवायद को आगे बढ़ाने की
जरूरत है अपने सिरे से इस कवायद को आगे बढ़ाने की, जिससे कि हमारे साथ हमारे अपने, सभी लोग, परिंदे भी सुरक्षित रह सकें। इस दिशा में चेन्नई पुलिस ने भी प्रयास किये हैं। स्ट्रीट प्ले, स्कूल एक्टिविटीज के जरिए बच्चों को जागरूक करने की कोशिश की है। पर, प्रयास पुख्ता होने चाहिए....समूचे देश भर में होने चाहिए क्योंकि महज शौक की वजह से कोई अपनों से न दूर हो।