Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar: देश का वो सूरज, जिसने दलितों को रोशनी दिखाई
नई दिल्ली। भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर उस व्यक्ति का नाम है, जिन्होंने भारतीयों को एक नई पहचान दी और देश के दलितों को ज्ञान की रोशनी दिखाई, संविधान निर्माता और आधुनिक सोच के मालिक अंबेडकर साहब ने ही देश में पहली बार आरक्षण की नींव रखी थी। 14 अप्रैल को अंबेडकर जंयती है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का मूल नाम भीमराव था। उनके पिताश्री रामजी एक सैनिक अधिकारी थे। उनकी मां का नाम भीमाबाई था।
शिक्षा
बालक भीमराव का प्राथमिक शिक्षण दापोली और सतारा में हुआ। बंबई के एलफिन्स्टोन स्कूल से वह 1907 में मैट्रिक की परीक्षा में पास हुए। भीमराव ने 1912 में मुबई विश्वविद्यालय से स्नातक परीक्षा पास की। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स दोनों ही विश्वविद्यालयों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने विधि ,अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञानं के शोध कार्य में ख्याति प्राप्त की, जीवन के प्रारम्भिक करियर में वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे और उन्होंने वकालत भी की। 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। 1990 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
अंबेडकर की छवि एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी
अपने सत्य लेकिन विवादास्पद विचारों के बावजूद अंबेडकर की छवि एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने बाबा साहेब को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष
29 अगस्त 1947 को, अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। उनके द्वारा तैयार किया गया संविधान पाठ में संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की।
26 जनवरी 1950
संविधान पाठ में धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को अस्तित्व में आया।
महत्वपूर्ण योगदान
- भारत रत्न डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने अपने जीवन के 65 वर्षों में देश को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, औद्योगिक, संवैधानिक इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में अनगिनत कार्य करके राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- मानवाधिकार जैसे दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (वर्ष 1928), नाशिक सत्याग्रह (वर्ष 1930), येवला की गर्जना (वर्ष 1935) जैसे आंदोलन चलाये।
- बेजुबान, शोषित और अशिक्षित लोगों को जगाने के लिए वर्ष 1927 से 1956 के दौरान मूक नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पांच साप्ताहिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
- कमजोर वर्गों के छात्रों को छात्रावासों, रात्रि स्कूलों, ग्रंथालयों तथा शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने दलित वर्ग शिक्षा समाज (स्था. 1924) के जरिए अध्ययन करने और साथ ही आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम बनाया।
- सन् 1945 में उन्होंने अपनी पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुम्बई में सिद्वार्थ महाविद्यालय तथा औरंगाबाद में मिलिन्द महाविद्यालय की स्थापना की।
- बौद्धिक, वैज्ञानिक, प्रतिष्ठा, भारतीय संस्कृति वाले बौद्ध धर्म की 14 अक्टूबर 1956 को 5 लाख लोगों के साथ नागपुर में दीक्षा ली तथा भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्स्थापित कर अपने अंतिम ग्रंथ ‘‘द बुद्धा एण्ड हिज धम्मा‘‘ के द्वारा निरंतर वृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया।
यह भी पढ़ें: क्या दलित राजनीति उफ़ान पर या सिर्फ़ 2019 की तैयारी है?