
BBC Documentary Ban: नेहरू, इंदिरा और मनमोहन सिंह भी लगा चुके हैं कई प्रतिबंध

BBC Documentary Ban: ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (BBC) द्वारा 2002 के गुजरात दंगों पर एक डॉक्यूमेंट्री सीरीज रिलीज की गयी। जिसका नाम 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' है। अब इस सीरीज को भारत सरकार द्वारा बैन कर दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इससे जुड़े वीडियो को ब्लॉक करने के लिए यूट्यूब और ट्विटर को भी निर्देश जारी किए हैं। जिसे लेकर देश ही नहीं विदेशों में भी काफी हंगामा मचा हुआ है।
दरअसल, देश में किसी फिल्म, अथवा किताब पर बैन लगने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी आजाद भारत की पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा कई दफा अलग-अलग मुद्दों से जुड़े मामलों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसमें मुख्यतः सरकार, समाज या व्यक्ति विशेष के खिलाफ भ्रामक जानकारी या द्वेष फैलाना वाला साहित्य शामिल होता हैं। वैसी सामग्रियों (किताब व पंपलेट) पर बैन लग चुका है। वहीं फिलहाल BBC की डॉक्यूमेंट्री पर यह आदेश IT Rules 2021 की आपात शक्तियों के तहत दिया गया है। यह डॉक्यूमेंट्री गुजरात दंगा 2002 पर आधारित है। इस वायरल हो रहे वीडियो को पीएम मोदी के खिलाफ प्रोपेगेंडा बताया गया है।
इंदिरा गांधी ने भी नेहरू पर लिखी किताब को बैन किया
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री से पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी अपने पिता जवाहर लाल नेहरू पर लिखी गई एक पुस्तक को प्रतिबंधित कर दिया था। इस पुस्तक का नाम 'Nehru-A Political Biography' था। जवाहरलाल नेहरू पर लिखी इस किताब में उनकी राजनीतिक अक्षमता को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
इस पुस्तक के लेखक एक ब्रिटिश इतिहासकार मायकल एडवर्ड्स (Michael Edwards) थे। यह 1971 और 1973 में प्रकाशित हुई लेकिन भारत में 1975 में तत्कालीन इंदिरा सरकार ने इस पर बैन लगा दिया। प्रतिबंध लगाने का एकमात्र कारण तथ्यात्मक त्रुटियां (Factual Errors) बताया गया था। जबकि इस किताब के लेखक माइकल एडवर्ड ने दावा किया था कि यह पुस्तक उसने 25 सालों तक मेहनत करके लिखी थी।
इसी प्रकार उसी लेखक (माइकल एडवर्ड) ने एक और किताब लिखी थी, जिसमें उसने महात्मा गांधी के बारे में लिखा था। इस किताब का नाम 'The Myth of the Mahatma' थी। इस पर भी दिसंबर 1986 में राज्यसभा में प्रतिबंध लगाने की मांग की गयी थी। हालांकि, ऐसा नहीं हो सका था। देखा जाए तो यह दोनों पुस्तकें भी एक प्रकार से ब्रिटिश प्रोपेगेंडा का हिस्सा थी। जिन पर तत्कालीन सरकारों का ध्यान आकर्षित हुआ था। हालांकि, एक पर तो प्रतिबंध लगा दिया गया लेकिन दूसरी पर ऐसा न हो सका।
'द ग्रेट सोल' और 'नाइन ऑवर्स टू रामा'
इसी तरह 29 मार्च 2011 में इसी तरह पुलित्जर अवॉर्ड विजेता और न्यूयॉर्क टाइम्स के एडिटर रह चुके जोसेफ लेलिवेल्ड की किताब द ग्रेट सोल को भी भारत सरकार द्वारा बैन किया गया था। इस किताब में महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए समय और महात्मा गांधी की सेक्सुएल लाइफ पर कुछ सनसनीखेज बातें लिखी गई हैं। किताब में धर्म को लेकर बापू के विचारों पर भी आपत्ति जताई गई थी और कुछ गंभीर आरोप भी लगाए गए थे।
वहीं 'नाइन ऑवर्स टू रामा' नाम की एक किताब, जो प्रोफेसर वोल्पर्ट द्वारा साल 1962 में लिखी गई थी। इस किताब पर भी जमकर हो हल्ला मचा था। इस किताब में बापू के अंतिम दिनों के बारे में काल्पनिक तरीके से लिखा गया है। कहा जाता है कि इस किताब को इसलिए बैन किया गया क्योंकि इसमें महात्मा गांदी के लिए खराब सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम के बारे में लिखा गया है, जो की तथ्यात्मक तौर पर गलत है।
द प्राइस ऑफ पावर
1983 में द प्राइस ऑफ पावर नाम की इस किताब पर भी तत्कालीन सरकार ने पाबंदी लगा दी थी। इस किताब के लेखक Seymour Hersh थे। उन्होंने इस किताब में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के साथ रिश्तों को लेकर खुलासा किया गया था। साथ ही इसमें मोरारजी देसाई के बारे में आपत्तिजनक बाते लिखी गईं थी। जिसके खिलाफ उन्होंने केस भी किया था।
जिन्ना: इंडिया, पार्टिशन, इंडिपेनडेंस
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साल 2009 में पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह द्वारा लिखित किताब 'Jinnah: India, Partition, Independence' को भी बैन कर दिया गया था। इस किताब में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के लिए कांग्रेस के टॉप लीडर (नेहरू-पटेल) को ज्यादा जिम्मेदार ठहराया था और जिन्ना को पॉजिटिव पेश किया गया था। इसलिए इस पर बैन लगा दिया गया था।
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