#ArjanSinghRIP: उस महा-सेनापति के हाथों वायुसेना में जन्म
नई दिल्ली। असंख्य दीपकों के प्रकाशपुंज से अधिक तेजस्वी सूरज जब समय के चक्र के आगे अस्त होने के लिए विवश हो जाता है तो नन्हा सा मिटटी का टिमटिमाता दिया अपनी सामर्थ्य भर प्रकाश बिखराने के लिए कमर कस लेता है। वायुसेना के मार्शल अर्थात महासेनापति अर्जन सिंह लाखों सैनिकों, विशेषकर वायुसैनिकों को आजीवन अपने नेतृत्व से यही सन्देश देते रहे।
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लगभग एक शताब्दी की लम्बी आयु पूरी करके वह योद्धा अब अनंत में विलीन हो गया है लेकिन देश का वह अनमोल रत्न कभी बूढा नहीं हुआ। उसके शौर्य, सूझबूझ एवं युद्धकौशल से भारतीय सेना को 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान जो नेतृत्व मिला था उसकी चमक केवल एक युद्ध में असाधारण विजय पाकर नहीं समाप्त हुई।
विमानों को कुशलतापूर्वक उड़ा लेने वाला
साठ से भी अधिक तरह के विमानों को कुशलतापूर्वक उड़ा लेने वाला और दस दस शौर्य और विशिष्ट सेवा के सम्मानों से सुसज्जित यह योद्धा अपनी सेना का नेतृत्व उनके सामने निजी उदाहरण देकर करने में माहिर था। अंत तक उसका गरिमामय व्यक्तित्व यह सिद्ध करता रहा कि वह केवल एक महान सेनापति नहीं बल्कि एक बहुत महान इंसान भी था।
गरिमामय व्यक्तित्व
आज की तारीख में भारतीय वायुसेना के गिने-चुने वयोवृद्ध सेवानिवृत्त अधिकारी ही बचे हैं जिन्हें उनके नेतृत्व में काम करने का अवसर मिला लेकिन वे भी कम सौभाग्यशाली नहीं हैं जो उनके गरिमामय व्यक्तित्व को निकट से देख पाए थे। मेरे जीवन की एक बेहद मूल्यवान धरोहर वह छायाचित्र है जिसमें भारतीय वायुसेना में कमीशन पाने का वह अविस्मरणीय क्षण कैद है जब तत्कालीन वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल अर्जन सिंह ने मेरे कंधे पर एक फीती लगाकर पाइलट अफसर की रैंक में मुझे कमीशन प्रदान किया था।उसी के साथ अपने वायुसेनाध्यक्ष के हाथों " वायुसेनाध्यक्ष मैडल' नामक पुरस्कार पाकर भी मैं फूला नहीं समा रहा था जो मुझे अपने बैच में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए मिला था। इस पुरस्कार से सम्मानित करने के बाद जिस स्नेह और गर्मजोशी से उन्होंने साधुवाद दिया था उससे मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा था।
एक पायलट ऑफिसर के लिए काफी बड़ी बात
वह रोमांचक क्षण जब भी याद आता है, मैं अपने सौभाग्य पर फूला नहीं समाता हूं। नए नए कमीशन प्राप्त एक पायलट ऑफिसर के लिए यही बहुत बड़ी बात थी लेकिन तब मेरी सबसे बड़ी अभिलाषा थी एक दिन वह भी आये जब मैं उनके साथ किसी विमान की कॉकपिट में उनके सहकर्मी अर्थातक्र्यू के रूप में बैठूं, तब वे मेरे लिए वे केवल वायुसेनाध्यक्ष नहीं बल्किमेरे विमान के कप्तान होंगे।
जेनरल की रैंक में सेनाध्याक्ष
मुझे आज भी खेद है कि सं 1969 की जुलाई में वे वायुसेनाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए और उसके केवल छः महीने बाद ही मेरी नियुक्ति वायुसेना मुख्यालय की संचार स्क्वाड्रन ( तथाकथित वी आई पी स्क्वाड्रन) में हुई। इस थोड़ी सी देर में मैं वह स्वर्णिम अवसर चूक गया जब मैं विमान की कॉकपिट में उनके चालक दल का सदस्य बन कर उनका मार्ग निर्देशन करता। इस घाटे की भरपाई हुई एक दूसरी हस्ती को निकट से जानने का अवसर पाकर, यह दूसरी हस्ती थे फील्ड मार्शल सैम मानेकशा जो तब जेनरल की रैंक में सेनाध्याक्ष थे।
गौरवमंडित व्यक्तित्व
वीआई पी स्क्वाड्रन के जहाज़ों में बहुतेरी बार उस अनोखे सेनापति को उड़ाने का अवर पाने के बाद भी मन में यह अवसाद तो है ही कि काश भारतमाता के सपूत,वायुसेना के गौरव और वायुसेना में मुझे औपचारिक रूप से एक कमीशंड अधिकारी बनाने वाले इस महासेनापति को और नजदीक से जानने का अवसर मुझे मिल पाता। सौभाग्य से दिल्ली में हरवर्ष आयोजित वायुसेना दिवस उत्सवों में मार्शल अर्जनसिंह का गौरवमंडित व्यक्तित्व बार बार निकट से देखने का अवसर मिलता रहा, जीवन के दसवें दशक में उन का तनकर खड़े होना, उमकी मीठी मुस्कान, उनकाचुम्बकीय व्यक्तित्व मेरे जैसे जिन वायुसैनिकों को मिलता रहा है वे वास्तव में बहुत सौभाग्यशाली हैं।