क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

Indian Constitution: क्या भारत के संविधान के प्रावधान विदेशों से लिये गये हैं?

Google Oneindia News

भारत के संविधान को लेकर एक सबसे बड़ा तथ्य बार-बार बताया जाता है कि यह कई देशों से लिए गए प्रावधानों का एक संकलन है. जबकि वास्तविकता में ऐसा नहीं है.

Indian Constitution

दरअसल, भारतीय स्वाधीनता संग्राम कई तरीकों से लड़ा जा रहा था. एक तरफ क्रांतिकारी गतिविधियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को हिलाया हुआ था तो दूसरी तरफ गाँधी के अहिंसक प्रयोगों ने भी तत्कालीन सरकार के लिए कई तरह की समस्याएं पैदा कर दी थी. इसके अलावा श्यामजी कृष्ण वर्मा के इंडिया हाउस से लेकर सुभास चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज सहित विदेशों में भी भारतीय स्वाधीनता संग्राम को लेकर अनेकों प्रयास जारी थे.

इन्ही प्रयासों में से एक प्रयास भारत के संवैधानिक स्वराज का भी था. अधिकतर इतिहासकारों अथवा लेखकों ने भारत की संवैधानिक यात्रा को मात्र संविधान सभा यानि 1946 से 1950 तक सीमित कर दिया है. उनके अनुसार इस कालखंड में ही भारत का संविधान लिखा और समझा गया. बाद के सालों में इसे एक सत्य मान लिया गया जबकि सच्चाई इसके एकदम विपरीत है.

यह ठीक है कि भारत का संविधान जो आज हमारे सामने है वह 9 दिसंबर 1946 से लेकर 26 नवम्बर 1949 के बीच 2 साल 11 महीनों और 18 दिनों की एक लम्बी मेहनत का परिणाम है. संविधान सभा में कुल 308 सदस्य थे जोकि पिछले कई दशकों से भारतीय स्वाधीनता संग्राम में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से हिस्सेदार रहे थे. इसलिए इन बीतें सालों में जो कुछ भारतीय संवैधानिक स्वाधीनता के लिए प्रयास किये गए उसका उनके दिल-दिमाग में एक गहरा असर पड़ना लाजमी था.

उस बात की पुष्टि का सबसे बड़ा तथ्य यह था कि संविधान के ड्राफ्ट में आश्चर्यजनक रूप से 7,635 बार बदलाव के अनुरोध सामने आये जिसमें से 2,473 को स्वीकार किया गया. यही नहीं, भारत के संविधान को अगर विदेशों में बने संविधान से तुलना करें तो यह सबसे लम्बी चली चर्चाओं में से एक था. जबकि अमेरिका में मात्र 4 महीने, कनाडा में 2 साल 5 महीनें और दक्षिण अफ्रीका में 1 साल में ही संवैधानिक प्रक्रियाओं को निपटा दिया गया.

अब बात करते है कि क्या भारत का संविधान वास्तव में विदेशों से लिया गया था? इसका जवाब है, नहीं. हमारे संविधान निर्माताओं को एक बात स्पष्ट थी कि हमें एक ऐसे संविधान का निर्माण करना है जोकि भारतीय सांस्कृतिक विरासत को सहेजते हुए दुनियाभर में समसामयिक जो कुछ घट रहा है उसे भी समेट ले. यानि हम समय से पीछे भी न चले और हमारा संविधान दुनिया का सबसे जीवंत संविधान बन जाए. इसके लिए उस दौर में लगभग 64 लाख रुपए की भारी-भरकम राशि भी खर्च की गयी.

इसको समझने के लिए हमें संविधान सभा से पहले के उस दौर में जाना होगा जहाँ हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम के सेनानी भारत के नागरिकों को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए प्रयासरत थे. इसकी शुरुआत हुई 'द कॉन्स्टिट्यूटन ऑफ इंडिया बिल 1895' में जिसे स्वराज बिल भी कहा जाता है. इस बिल का लेखक कौन था यह अभी तक अज्ञात है लेकिन एनी बेसंट के अनुसार यह बालगंगाधर तिलक से प्रेरित था क्योंकि स्वराज शब्द का सबसे पहले राजनैतिक इस्तेमाल उन्होंने ही शुरू किया था.

हालाँकि, यह बिल पारित तो नहीं हुआ लेकिन यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय संविधान की लड़ाई कई सालों पहले इसी देश में शुरू हो गयी थी. फिर 'इंडियन कौंसिल एक्ट 1909' में आया. यहाँ से भारतीयों को सरकारी कामकाजों में भागीदार बनाने का एक कदम उठाया गया.

इसके बाद 1919 में 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट' आया जोकि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारतीयों को स्वशासन देने का एक शुरूआती कदम था. फिर 1925 में 'कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल' ड्राफ्ट किया गया जिसमें मूलभूत अधिकारों जैसे तत्त्व भी शामिल थे.

साल 1928 में मोतीलाल नेहरू द्वारा बने गयी नेहरू रिपोर्ट को भारतीय संवैधानिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है. इस रिपोर्ट में मूलभूत अधिकारों का पूरा एक अध्याय जोड़ा गया था. इन मांगों को देखते हुए 1929 में तत्कालीन वायसराय इरविन ने भारत को आशिंक रूप से संप्रभुता देने की मांग को स्वीकार किया.

इसके बाद कांग्रेस द्वारा 26 जनवरी 1930 को लाहौर अधिवेशन में पारित 'पूर्ण स्वराज' का प्रस्ताव आया जिसमें भारतीय स्वाधीनता संग्राम को एक नया मोड़ मिला. 1932 का महात्मा गाँधी और डॉ आंबेडकर के बीच 'पूना पैक्ट' ने भारतीयों के बीच फैली असमानता को दूर करने का एक प्रयास किया. फिर आता है 'गवर्नमेंट ऑफ इंडिया 1935 एक्ट', जोकि इन सभी उपरोक्त प्रयासों सहित लन्दन में हुए गोलमेज सम्मेलनों का एक व्यवस्थित परिणाम था.

इसके अलावा, इसी दौर में, एम.एन. रॉय द्वारा 1944 में प्रस्तावित 'कॉन्स्टिट्यूटन ऑफ फ्री इंडिया' का ड्राफ्ट, और हिन्दू महासभा का 'द कॉन्स्टिट्यूटन ऑफ द हिंदुस्तान फ्री स्टेट एक्ट 1944' भी आये. अगले साल डॉ. आंबेडकर द्वारा 'स्टेट एंड माइनॉरिटी' नाम से एक प्रकाशन सामने आया.

इसी दौरान, 'आल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन' की संविधान में अनुसूचित जातियों के अधिकारों को संविधान में सुरक्षित रखने की मांग सामने आई. 1946 में श्रीमन नारायण अग्रवाल का 'गांधियन कॉन्स्टिट्यूटन ऑफ फ्री इंडिया' दस्तावेज सार्वजनिक किया गया. फिर सप्रू कमेटी, बीएन राव का संविधान, आल इंडिया वूमन कांफ्रेंस, और कैबिनेट मिशन प्लान में भी भारत का संभावित संविधान कैसा हो उस पर गंभीर रूप से सभी ने मिलकर चर्चा की.

Indian Constitution: भारतीय संविधान के साथ की गई सबसे चर्चित 'छेड़छाड़'Indian Constitution: भारतीय संविधान के साथ की गई सबसे चर्चित 'छेड़छाड़'

यह है भारत की संवैधानिक यात्रा जिसके लगभग सभी अवयव भारतीय संविधान सभा में देखने को मिलते है, क्योंकि इस संवैधानिक यात्रा की लड़ाई में जो लोग शामिल थे, उनमें से कई संविधान सभा के सदस्य बने. अतः यह कहना कि भारत का पूरा संविधान विदेशों से लिया गया है, यह अतिशयोक्ति से ज्यादा कुछ नहीं है.

Comments
English summary
Indian Constitution Have provisions of Constitution of India been taken from abroad?
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X