राहुल-अखिलेश के रोड शो की तस्वीरों ने कुछ यूं बयां किया यूपी का दर्द!
आगरा के दयालबाग से लेकर घंटाघर तक जब राहुल गांधी और अखिलेश यादव का रोड शो निकला तो तमाम ऐसी तस्वीरें कैमरे में कैद हुईं जो यूपी के कई बड़े मुद्दों पर चर्चा करने पर मजबूर करती हैं। पेश है एक चर्चा।
अजय मोहन
उत्तर प्रदेश के सो कॉल्ड करन-अर्जुन यानी राहुल गांधी और अखिलेश यादव के रोड शो के ठीक पहले आगरा के दयालबाग से लेकर घंटाघर तक, 12 किलोमीटर के रास्ते में जितने भी नीचे लटकते हुए या झूलते हुए बिजली के तार मिले, उन्हें हटा दिया गया। पेड़ों की टहनियों को काट दिया गया, ताकि मीडिया के कैमरे में कोई ऐसी तस्वीर कैद नहीं हो पाये, और तस्वीर के वायरल होने पर पिछले पांच साल के शासन पर कोई सवाल नहीं उठे। अखिलेश यादव जी! आप तार और टहनियां कटवा सकते हैं, लेकिन सड़क के दोनों ओर दिखने वाली मजबूरियों पर पर्दा नहीं डाल सकते।
मैं इस रोड शो का हिस्सा नहीं था, लेकिन कैमरे में जो तस्वीरें कैद हुईं, उन्हें देखने के बाद कई सारी बातें उभर कर सामने आयीं। ये वो बातें हैं, जिनका सीधा ताल्लुक उत्तर प्रदेश के वर्तमान हालात और भविष्य से जुड़ा है। ये वो बाते हैं, जो सपा के 298 और कांग्रेस के 105 उम्मीदवारों के भविष्य को तय करते वक्त मन में जरूर आयेंगी। खैर चलिये अब सीधे तस्वीरों पर चलते हैं ओर शुरू करते हैं एक छोटी सी चर्चा।
समाप्ति की ओर मुलायम युग
जी हां इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुलायम का युग अब समाप्ति की ओर है। जिस तरह से समाजवादी पार्टी में एक बड़ा दंगल देखने को मिला, उससे यह साफ है कि आगे सपा में अखिलेश की ही चलने वाली है। खैर पार्टी के सदस्यों को यह नहीं भूलना चाहिये कि आज जिस साइकिल पर अख्ािलेश सवार हैं, वो पिता मुलायम सिंह यादव ने ही दिलायी है और उस साइकिल को पाने के लिये उन्होंने कड़ी मेहनत की है। और जिस अखिलेश सरकार ने पिछले पांच साल यूपी में शासन किया, वह भी उन्हीं की देन है। परिवर्तन तो अब हो रहा है, क्योंकि सपा मुलायम काल से बाहर निकल कर अखिलेश काल में प्रवेश कर रही है।
बड़े संकेत दे रहा जन सैलाब
अखिलेश-राहुल के इस रोड शो में उमड़ा जन सैलाब बड़े संकेत दे रहा है। ये संकेत हैं उस जनता की ओर से जो सपा-कांग्रेस के गठबंधन को स्वीकार कर सकते हैं। दो रोड शो में जिस तरह से लोगों की भीड़ उमड़ी उससे यह साफ है कि भारतीय जनता पार्टी के लिये राहें कठिन होने वाली हैं और मायावती के सपने टूटने वाले हैं। खैर जनता के मन की बात 11 मार्च को पता चल जायेगी।
गुण मिले पर विचार?
इसमें दो राय नहीं कि इस जोड़ी की मैच-मेकिंग के पीछे प्रशांत किशोर जैसे कई पुरोधाओं का हाथ है। जोड़ी अच्छी है या बुरी, इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन इतनी कामना जरूर करूंगा कि अगर ये दोनों सफल हों, तो इस मैच का सफल होना बेहद जरूरी है। दोनों के गुण मिल चुके हैं बस विचार मिलने की देर है। कहीं ऐसा न हो कि दोबारा से सत्ता हाथ लगने के बाद उत्तर प्रदेश वैचारिक मतभेदों की बलि चढ़ जाये।
मुस्लिम फेक्टर
यूपी में पिछले पांच वर्षों में सपा सरकार ने मुसलमानों के लिये कई हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिये। माइनॉरिटी कमीशन की स्थापना की। 1000 करोड़ रुपए खर्च कर मदरसों व वहां के छात्रों का उत्थान किया। पढ़े बेटियां, बढ़ें बेटियां योजना के अंतर्गत मुस्लिम बेटियों को 25-25 हजार रुपए दिये गये। गरीब मुस्लिम परिवारों में बेटियों की शादी के लिये 30-30 हजार रुपए दिये, मुस्लिम वृद्ध महिलाओं को विशेष पेंशन, आदि से लेकर कब्रिस्तानों के रखरखाव तक पर पैसा खर्च हुआ। लेकिन कहीं न कहीं यूपी के मुसलमान अखिलेश यादव से खफा-खफा नजर आ रहे हैं। राज्य के मुस्लिम वाकई में खफा हैं, या नहीं, यह बड़ा मुद्दा नहीं है, बड़ा मुद्दा है विकास की मुख्य धारा से जुड़ने का, जिससे वो अब भी कटा-कटा महसूस कर रहे हैं।
हरियाली भी और मजबूती भी
हम यहां तस्वीर में दिखाई दे रही जर्जर इमारत और उसके सामने के पेड़ की बात नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बुनियादी ढांचे की, जिसे मजबूती की सख्त जरूरत है। पीलीभीत के पूरनपुर और उन्नाव के अजगैन जैसे कसबों में बिजली की व्यवस्था वैसी ही है, जैसी पांच साल पहले थी। कानपुर, उन्नाव, आगरा, मुरादाबाद में प्रदूषण का स्तर आज भी वैसा ही है, जैसा पांच साल पहले था। बेरोजगारी के हालात भी कुछ खास नहीं बदले। और इन सबकी वजह से अंदर ही अंदर यूपी कमजोर पड़ता जा रहा है। अखिलेश और राहुल की नजर इस इमारत पर पड़ी हो या नहीं, कम से कम यूपी के कई क्षेत्रों की जर्जर अवस्था पर एक नजर इन्हें जरूर डालनी चाहिये।
गरीबी और तनाव
सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय की 2016 में आयी रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के ग्रामीण भागों में 33.4 फीसदी जनता और शहरी इलाकों में 32.8 फीसदी जनता गरीबी रेखा के नीचे बसर कर रही है। वहीं श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार बेरोजगारी के मामले में यूपी 9वें स्थान पर है। ग्रामीण यूपी में बेरोजगारी दर 76 है, जबकि शहरी उत्तर प्रदेश में यह दर 67 है। पूरे यूपी की दर 74 है। यानी 74 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। वहीं राष्ट्रीय औसत 50 फीसदी है। जाहिर है गरीबी और बेरोजगारी दोनों ही यहां की जनता के लिये तनाव के बड़े कारण हैं, जिन्हें गंभीरता से लेना ही होगा।
सुर है पर ताल नहीं
हमारा तात्पर्य उन संसाधनों से है, जो होते हुए भी काम के नहीं। किसान के पास जमीन है पर खेती के लिये पैसा नहीं, जोताई के लिये ट्रैकटर नहीं। बच्चों के पास लैपटॉप है, पर चार्ज करने के लिये बिजली नहीं। इंटरनेट है पर स्पीड नहीं, बिजली के खंभे हैं, पर तारों में करंट नहीं। स्कूल हैं, पर बच्चों के लिये बेंच नहीं। कहीं किताबें हैं, लेकिन पढ़ाने के लिये शिक्षक नहीं, तो कहीं शिक्षक हैं, तो स्कूल में बच्चे नहीं। ऐसी तमाम चीजें हैं, जिन पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है।
नगर निगमों के लिये एक सुझाव
रोड शो के दौरान अखिलेश यादव की नजर भले ही इस टूटे पाइप पर नहीं पड़ी होगी, लेकिन यथार्थ तो यह है कि राज्य के सभी शहरों, गांवों, और कस्बों में ऐसे टूटे पाइपों की संख्या करोड़ों में होगी। यहां हम सरकार को एक मात्र सुझाव देना चाहेंगे। वो यह कि जिन गरीबों के पास सीवर या पीने के पानी के टूटे पाइप जुड़वाने का पैसा नहीं है, वे अपनी मासिक आय के सर्टिफिकेट की कॉपी संलंग्न करते हुए नगर-निगम को सूचना दे। नगर निगम की टीमें ऐसे मामलों पर तत्परता के साथ आगे आयें और पाइप जोड़ दें। इसके लिये सरकार को अलग से बजट लाना होगा। शुरुआत में इस काम में भले ही पांच-छह सौ करोड़ का खर्च आयेगा, लेकिन समय रहते यह खर्च कम हो जायेगा। खास बात यह है कि बीमारियों का फैलना भी कम हो जायेगा।
एक नजर टूटे मकानों पर भी
आम तौर पर केंद्र और राज्य सरकारें नये मकान बनाने की योजनायें चला देती हैं। एक योजना ऐसी भी चलायी जानी चाहिये, जिसके अंतर्गत जिन मकानों की छतें टूटी हुई हैं, टीनें ढहने की कगार पर हैं, और उनके नीचे रह रहे लोगों की जान खतरे में है। इससे हादसे कम होंगे और गरीबों को बड़ा सहारा मिलेगा और नेताओं के रोड शो में ऐसी तस्वीरें कम दिखायी देंगी।
असुरक्षित हैं गृहणियां
सच पूछिए तो टूटे व जर्जर मकानों में रहने वाले परिवारों में महिलाएं ही हैं, जो सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। क्योंकि पुरुष काम पर बाहर चले जाते हैं, ज्यादा समय गृहणियां ही घर पर रहती हैं। टूटी दीवारों और जर्जर मकानों को देख-देख उनका भी मन परेशान होना लाजमी है, लेकिन क्या करें छोटी-छोटी खुशियों में ही ये अपना जीवन खोज लेती हैं। ऐसे में जर्जर मकानों के लिये भी एक योजना बेहद जरूरी है।
एक सुझाव युवाओं के लिये
यहां हम सरकार से कुछ नहीं कहेंगे, क्योंकि बेटियों की सुरक्षा केवल पुलिस के हाथों में नहीं। हम उन युवाओं से एक अपील करना चाहेंगे, जो अपनी मसल पावर दिखाकर रौब झाड़ने में ज्यादा विश्वास रखते हैं। कृपया इस मसल पावर का प्रयोग बेटियों, बहनों और माताओं की सुरक्षा में करें। उत्तर प्रदेश को ऐसे युवाओं की सख्त जरूरत है।
उम्मीदें कायम हैं
उत्तर प्रदेश की जनता को अपनी आने वाली सरकार से बड़ी उम्मीदें हैं। सरकार चाहे सपा-कांग्रेस की बने, चाहे भाजपा या बसपा की। इन्हें उम्मीद है यूपी के चौतरफे विकास की। यह महज चंद घोषणाओं और लैपटॉप बांटने से नहीं होने वाला। इसके लिये वृहद स्तर पर काम की जरूरत है।
प्रकाशमय सुबह का इंतजार
हम यह नहीं कह रहे हैं कि अखिलेश सरकार ने यूपी को अंधेरे में धकेला। बल्कि सच पूछिए तो कई क्षेत्रों में इस सरकार ने बेहतरीन काम किये, लेकिन अब दिन ढल रहा है, रात हो रही है। और 11 मार्च को अगली सुबह होगी। यूपी के प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वो प्रदेश में रह रहा हो या प्रदेश से बाहर या फिर सात समुंदर पार, सभी को दरकार है उस सुबह का जब प्रदेश को नई दिशा मिलेगी। अंत में वोटरों से केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि वोट देते वक्त वो इस खबर को याद करने के बजाये अपने घर, परिवार, मोहल्ले, गांव, कस्बे और जिले के बारे में सोचें।