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26/11: खौफ और खून के वे खौफनाक 60 घंटे, जानिए कब, कहांं, क्या हुआ?

26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई आतंकी हमले में 164 लोग मारे गए थे।

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2008 Mumbai attacks: 26 नवंबर 2008 की वो खौफनाक रात... जिसका जिक्र होते ही रूह कांप जाती है। आज इस हमले को पूरे 12 बरस हो गए हैं लेकिन ना तो इस रात का खौफ दिल से गया है और ना ही घाव भरे हैं। जी हां, यहां बात हो रही है मुंबई आतंकी हमले की, जब 10 हमलावरों ने मुंबई में खून की होली खेली थी इस हमलेे में 164 लोग मारे गए थे।

क्या हुआ था उस रात...

रात के 8:0 बजे थे, आम तौर पर इस समय घर में बच्चे सोने की और ऑफिस वाले घर जाने की तैयारी कर रहे होते हैं लेकिन अचानक से इस रात को गोलियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी, टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग आई कि मुंबई में बड़ा आतंकी हमला हो गया है और देखते ही देखते चकाचौंध वाली खूबसूरत मुंबई 10 आतंकवादियों की बंधक बन गई। ये सभी 20-25 साल के नौजवान आतंकवादी थे जो सिर पर कफन बांधकर पाकिस्तान से मायानगरी में खून की होली खेलने आए थे।

क्या हुआ था उस रात को....आईये जानते हैं तस्वीरों के जरिए...

बोट के जरिए घुसे आतंकवादी

बोट के जरिए घुसे आतंकवादी

दिलवालों की मुंबई में घटना को अंजाम देने वाले दसों आतंकवादी एक बोट के जरिए मुंबई में दाखिल हुए थे क्योंकि पुलिस को कोलीवाड़ा इलाके में जांच के दौरान चार बोट मिली थी जिसमें भारी मात्रा में विस्फोटक था। ये सभी दसों आतंकवादी साथ में मुंबई में दाखिल नहीं हुए थे बल्कि अलग-अलग जगह से इन्होंने शहर में एंट्री की थी। जो सबूत मिले थे उसके मुताबिक आतंकवादियों को समुद्र में एक जहाज के जरिए अलग-अलग नावों में उतारा गया था और ये जहाज कराची से आतंकवादियों को लेकर भारत आया था। बोट से भारी मात्रा में गोला बारूद और विस्फोटक बरामद हुआ था।

रात सवा आठ बजे: पुलिस की गाड़ी पर कब्जा

रात सवा आठ बजे: पुलिस की गाड़ी पर कब्जा

जब ये हमलावर कोलाबा के पास कफ़ परेड के मछली बाज़ार पर उतरे थे और वहां से वे चार ग्रुपों में बंट गए और टैक्सी लेकर अपनी मंजिलो का रूख किया था कहते हैं कि इन लोगों की आपाधापी को देखकर कुछ मछुआरों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी लेकिन इलाक़े की पुलिस ने इस पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी और उसका खामियाजा हमें बाद में भुगतना पड़ा था। कहते हैं इनमें से एक ग्रुप ने कोलाबा पुलिस की दो गाड़ियों को बंदूक के दम पर छीना था।

 रात 8.30 से 9.00 बजे के बीच : लियोपार्ड कैफे पर लगा लाशों का ढेर

रात 8.30 से 9.00 बजे के बीच : लियोपार्ड कैफे पर लगा लाशों का ढेर

तब तक घड़ी रात के 8:30 बजा चुकी थी। 6 आतंकवादियों का एक दल पुलिस जीप से ताज की तरफ बढ़ा रहा था। तभी रास्ते में आया लियोपार्ड कैफे, जहां काफी भीड़-भाड़ थी और वहां पर भारी संख्या में विदेशी भी मौजूद थे जिनपर हमलावरों ने AK-47 तान दी और देखते ही देखते लियोपार्ड कैफे के सामने खून की होली खेली जाने लगी। बंदूकों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज उठा और लाशों का ढेर लग गया।

रात 9 बजे: छत्रपति शिवाजी टर्मिनल

रात 9 बजे: छत्रपति शिवाजी टर्मिनल

आतंकवादियों के निशाने पर ताज होटल था इसलिए वो गोलियां बरसाते हुए ताज की ओर बढ़े, घड़ी रात के 9 बजा रही थी। ताज होटल से मात्र 2 किमी की दूरी पर आतंकवादियों के दूसरे गुट ने कार्रवाई शुरू की। हमलावर सीएसटी स्टेशन यानी विक्टोरिया टर्मिनल के एक प्लेटफॉर्म पर पहुंच चुके थे। आतंकवादियों की संख्या तीन से ज्यादा थी। इन लोगों ने प्लेटफॉर्म पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी और वहां मातम पसर गया। यहां सबसे ज्यादा 58 लोग मौत के शिकार हुए थे।

रात 9.20 मिनट पर: कामा अस्पताल में बड़ा धमाका

रात 9.20 मिनट पर: कामा अस्पताल में बड़ा धमाका

विक्टोरिया टर्मिनल से निकलने के बाद हमलावर कामा अस्पताल पहुंच गए। जहां रात के दस बजते ही एक बड़ा धमाका हुआ, ये धमाका एक टैक्सी में हुआ क्योंकि उसमें बम रखा था और उसने टैक्सी ही नहीं लोगों के भी परखच्चे उड़ा दिए। कामा अस्पताल एक चैरिटेबल अस्पताल है, इसका निर्माण एक अमीर व्यापारी ने 1880 में कराया था। कामा अस्पताल के बाहर ही मुठभेड़ के दौरान आतंकवाद निरोधक दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे, मुंबई पुलिस के अशोक काम्टे और विजय सालसकर शहीद हुए थे।

10 बजकर 15 मिनट: ताज पर कब्जा

10 बजकर 15 मिनट: ताज पर कब्जा

रात के तकरीबन 10 बजकर 15 मिनट हो चुके थे। आतंकवादी ताज महल होटल को निशाना बना चुके थे। गुंबद में लगी आग आज भी लोगों के मन मस्तिष्क पर छाई हुई है, होटल पर जब हमला हुआ तो वहां डिनर का समय था और बहुत सारे लोग डिनर हॉल में जमा थे तभी अचानक अंधाधुंध गोलियाँ चलने लगीं। सरकारी आंकड़ों की मानें तो ताजमहल होटल में 31 लोग मारे गए और चार हमलावरों को सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया था।

ताज के बाद ओबेरॉय होटल पर कब्जा

ताज के बाद ओबेरॉय होटल पर कब्जा

ताज के बाद हमलावरों के निशाने पर ओबेरॉय होटल था,इस होटल में भी हमलावर ढेर सारे गोला-बारूद के साथ घुसे थे। माना जाता है कि उस समय उस होटल में 350 से ज़्यादा लोग मौजूद थे, यहां हमलावरों ने कई लोगों को बंधक भी बना लिया? राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के जवानों ने यहांं दोनों हमलावरों को मार दिया लेकिन तब तक 32 लोगों की जान जा चुकी थी।

नरीमन हाउस

नरीमन हाउस

इसके अलावा हमलावरों ने नरीमन हाउस को भी निशाना बनाया था यहां भी हमलावरों ने कई लोगों को बंधक बनाया था, जिस इमारत में हमलावर घुसे थे वह यहूदियों की मदद करने के लिए बनाया गया एक सेंटर था, यहां के हमलावरों से निपटने के लिए एनएसजी कमांडो को कार्रवाई करने के लिए हेलिकॉप्टर से बगल वाली इमारत में उतरना पड़ा था। यहां सात लोग और दो हमलावर मारे गए थे।

 ओबरॉय होटल से 50 ग्रेनेड मिले

ओबरॉय होटल से 50 ग्रेनेड मिले

ताज होटल, ओबेरॉय होटल, नरीमन भवन में दर्जनों लोगों की जानें हमलावरों के निशाने पर थी। इनसे निपटने के लिए सुरक्षा बल, एनएसजी, एटीएस, मुंबई पुलिस के जवान चारों तरफ फैल गए। ऑपरेशन शुरू हो गया। शुक्रवार रात साढ़े नौ बजे यानी कि अगले दिन तक होटल ताज, ओबेरॉय होटल, नरीमन भवन को आतंकियों के कब्जे से मुक्त करा लिया गया। ओबरॉय होटल से 50 ग्रेनेड मिले।

164 लोग मारे गए

164 लोग मारे गए

इस हमले में 164 लोग मारे गए जबकि करीब 370 लोग घायल हुए। इसमें 8 विदेशी मारे गए और 22 घायल हुए। ऑपरेशन में 15 पुलिस अफसर-कर्मचारी और दो एनएसजी कमांडो भी शहीद हुए थे। जबकि 10 हमलावरों में से 9 तो मौत के शिकार हुए थे लेकिन 1 आतंकी अजमल आमिर कसाब जिंदा पकड़ा गया था जिसे सजा के तौर पर फांसी से लटका दिया गया था।

अशोक चक्र से सम्मानित शहीद पुलिस अफसर हेमंत करकरे

अशोक चक्र से सम्मानित शहीद पुलिस अफसर हेमंत करकरे

इस हमले में जिंदा आतंकी अजमल आमिर कसाब को पकड़ने वाले अशोक चक्र से सम्मानित शहीद पुलिस अफसर हेमंत करकरे को देश कभी नहीं भूल सकता है। अपनी सूझ-बूझ और वीरता से ही इन्होंने इतने बड़े आप्रेशन को अंजाम दिया था।

असली हीरो 'सीजर'

असली हीरो 'सीजर'

ये वो नाम है, जिसका ऋण देश कभी नहीं चुका सकता। 26 नवंबर, 2008 में हुए हमले में इसने कई लोगों की जान बचाई थी। यह नरीमन हाउस की टीम के साथ लगातार तीन दिन तक आतंकियों का मुकाबला करता रहा था। इस हमले के दौरान से आतंकियों का पता लगाने वाले डॉग स्क्वायड का यह आखिरी कुत्ता था। हाल ही में इसने दुनिया को अलविदा कहा है।

खौफ और खून के वे 60 घंटे

खौफ और खून के वे 60 घंटे

तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से लड़ते रहे, इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियां चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती जुड़ती रही । खौफ और खून के वे 60 घंटे आज भी लोगों के जेहन में ताजा है जिसका दर्द शायद कभी नहीं मिटेगा।

Comments
English summary
Mumbai Terror attack were a series of attacks that took place in November 2008, when 10 members of Lashkar-e-Taiba, an Islamic militant organisation based in Pakistan,While the terrorists are yet living freely in Pakistan.
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