भोपाल गैस त्रासदी : साजिदा के न पति रहा न बेटा
भोपाल।
मध्य
प्रदेश
की
राजधानी
भोपाल
के
देवकी
नगर
में
रहने
वाली
साजिदा
बानो
ने
पहले
पति
को
खोया
और
फिर
दो-तीन
दिसंबर
1984
को
रिसी
जहरीली
गैस
के
चलते
भोपाल
के
रेलवे
स्टेशन
पर
गोद
में
बच्चे
ने
भी
दम
तोड़
दिया।
पति
और
बच्चे
को
खोने
का
गम
आज
भी
उसे
साल
रहा
है।
दर्द की गवाही देती आंखें
साजिदा की आंखें उसके दर्द की गवाही दे जाती हैं। चेहरे पर छाई उदासी अपनों के बिछुड़ने की कहानी कहती है, अब तो हाल यह है कि उसके आधे दिन अस्पताल के बिस्तर पर ही कटते हैं।
साजिदा बानो के पति अशरफ अली यूनियन कार्बाइड संयंत्र में फिटर हुआ करते थे, वह अपने पति और दो बच्चों के साथ खुशहाल थी। उसकी खुशहाल जिंदगी को किसी की नजर लग गई और 28 दिसंबर 1981 को फासजीन गैस का टैंक खोलने से निकली गैस ने अशरफ की जान ले ली।
ट्रेन में बिगड़ गई बच्चों की तबियत
पति की मौत के बाद साजिदा बानो का अपने मायके कानपुर आना जाना रहता था, दो दिसंबर 1984 की दोपहर को वह अपने दोनों बच्चों अरशद (चार वर्ष) और शोएब (दो माह) के साथ गोरखपुर-मुंबई एक्सप्रेस से भोपाल के लिए निकली। वह तीन दिसंबर की सुबह जब भोपाल स्टेशन पहुंची तो वहां का हाल देखकर उसे यह समझ में नहीं आया कि आखिर हो क्या गया है।
साजिदा बानो बताती है कि वह ट्रेन से उतरती कि उससे पहले दोनों बच्चों की तबियत बिगड़ने लगी। उसे भी आखों में जलन हो रही थी और सांस लेने में परेशानी बढ़ती जा रही थी। कुछ ही देर में वह देखती है कि बड़ा बेटा अरशद बेहोशी की हालत में है। उसने दोनों बेटों को लिया और स्टेशन से बाहर निकली, तो उसे ऑटो रिक्शा बड़ी मुश्किल से मिला। जब तक वह अस्पताल पहुंची तब तक अरशद की मौत हो चुकी थी। वहीं शोएब की भी तबीयत बिगड़ी, मगर वह बच गया।
30
साल
बाद
भी
कम
नहीं
हुआ
दर्द
हादसे
के
वर्ष
30
बीतने
के
बाद
भी
साजिदा
बानो
अपने
दुखों
से
अब
तक
उबर
नहीं
पाई
है।
उसे
सांस
की
बीमारी
है,
कुछ
कदम
भी
आसानी
से
चल
नहीं
पाती
है।
पति
की
मौत
पर
उसे
अनुकंपा
नियुक्ति
जरूर
मिल
गई
है,
मगर
वेतन
का
एक
बड़ा
हिस्सा
उसके
इलाज
पर
खर्च
हो
जाता
है।
वहीं
बीमारी
के
चलते
उसका
हाल
यह
है
कि
आधे
दिन
गैस
पीड़ितों
के
उपचार
के
लिए
बने
अस्पतालों
में
कटते
हैं।
एक
बेटा
शोएब
भी
बीमारी
का
शिकार
है।
साजिदा बानो को अफसोस इस बात का है कि उसे गंभीर बीमारी है मगर सिर्फ 25 हजार रुपये ही मुआवजे के तौर पर मिले हैं। बेटा शोएब भी बीमार रहता है और उसे भी 25 हजार रुपये ही मिले हैं। वह कहती है, "उसे अब लगता नहीं है कि उनकी जिंदगी में कभी खुशियां भी आएंगी।"
आज
भी
याद
आता
है
वह
मंजर
साजिदा
बानो
अपने
साथ
हुई
घटना
को
याद
कर
कहीं
खो
जाती
है,
आंखों
से
आंसू
बहने
लगते
हैं
और
सांस
फूलने
लगती
है।
हाल
यह
होता
है
कि
वह
बैठकर
बात
तक
नहीं
कर
पाती
है।
वह
बताती
है
कि
कई
बार
तो
पति
और
बेटे
की
याद
आते
ही
उसकी
तबीयत
इतनी
बिगड़
जाती
है
कि
उसे
अस्पताल
जाना
पड़ता
है।
साजिदा बानो का परिवार तो एक उदाहरण भर है, जिसे यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी गैस ने तबाह किया है। ऐसे और भी हजारों परिवार हैं जो आज भी मर-मर कर जिए जा रहे हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।