1975 Emergency: आजाद भारत का वो दौर जब लोगों की जबरन नसबंदी कर दी गई
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नई दिल्ली। इमरजेंसी या आपातकाल देश का वो काला अध्याय है, जो जब भी खुलता है, लोगों की आंखों को नम कर जाता है। कहते हैं उस दौर में लोगों से जीने का हक भी छीन लिया गया था, इस बारे में तो साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने गलती भी मानी थी, देश की सर्वोच्च अदालत ने भी माना था कि इस दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था, इसी कारण आज भी कांग्रेस को इमरजेंसी के लिए कोसा जाता है।
क्या हुआ था तब...
26 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक यानी कि 21 महीने भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।
नसबंदी अभियान
आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे, नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। पीएम इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया था। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान चलाया गया। कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी कहते हैं कि उस समय यूथ कांग्रेस ने बहुत अच्छा काम भी किया था लेकिन नसबंदी प्रोग्राम ने खेल खराब कर दिया क्योंकि यूथ कांग्रेस और अधिकारियों ने जबरदस्ती शुरू की और जनता में आक्रोश फैल गया, जयप्रकाश नारायण ने भी इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था
क्यों लगाया गया था आपातकाल ?
आपातकाल की जड़ें 1971 में हुए लोकसभा चुनाव से जुड़ी हुई हैं जब इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से राजनारायण को हराया था। लेकिन राजनारायण ने हार नहीं मानी और चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में फैसले को चैलेंज किया। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया। कोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी पर विपक्ष ने इस्तीफे का दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने से मना कर दिया , इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी।
'मेरे खिलाफ साजिश रची जा रही है'
आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था कि जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी, आपातकाल लगाने के पीछे सबसे प्रमुख कारण यही था कि इंदिरा गांधी को अपनी पीएम की कुर्सी बचानी थी, हालांकि 19 महीने बाद 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया था।
कांग्रेस को अपनी पार्टी में भी विरोध का डर
आपातकाल की घोषणा के पहले ही सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए गए थे, उनकी गिरफ्तारी का उद्देश्य संसद को ऐसा बना देना था कि इंदिरा गांधी जो चाहें करा लें, उन दिनों कांग्रेस को अपनी पार्टी में भी विरोध का डर पैदा हो गया था इसीलिए जब जयप्रकाश नारायण सहित दूसरे विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया तो कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य चंद्रशेखर और संसदीय दल के सचिव रामधन को भी गिरफ्तार कर लिया गया था।
जनता ने सिखाया सबक
इमरजेंसी के दौरान सरकार ने जीवन के हर क्षेत्र में आतंक का माहौल पैदा कर दिया था, जिसका सबक जनता ने 1977 में एकजुट होकर न केवल कांग्रेस बल्कि इंदिरा गांधी को भी धूल चटा दी, 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी दोनों हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया।
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