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जानिए इस खतरनाक दाल से जुड़ी 10 बातें, जिस पर से हट चुका है बैन

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नई दिल्‍ली। खेसारी दाल , जिसे सबसे खतरनाक दाल माना जाता है, अब वापसी को तैयार हो चुकी है। इंडियन एक्‍सप्रेस की खबर के मुताबिक इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने इस पर लगे बैन को हटा लिया है।

इंडियन एक्‍सप्रेस की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्‍चर रिसर्च की ओर से कहा गया है कि फूड सेफ्टी एंड स्‍टैंड अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एफएसएसएआई को इस पर लगे बैन को हटाने की जानकारी दे दी गई है।

इस दाल को वर्ष 1961 में बैन किया गया था और उस समय कहा गया था कि इसके सेवन से व्‍यक्ति न्‍यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर जिसे लै‍थरिज्‍म कहते हैं, उसका शिकार हो सकता है। इस बीमारी में व्‍यक्ति के पैरों में अपंगता आ जाती है।

अब जबकि दाल के बढ़ते हुए दामों और देश में बढ़ती इसकी किल्‍लत के बीच इसकी वापसी हो रही है तो आपको इससे जुड़ी कुछ खास बातों को जान लेना भी जरूरी है।

नागपुर के रहने वाले 73 वर्ष के एक माइक्रोलॉजिस्‍ट शांतिलाल कोठारी के हवाले से इंडियन एक्‍सप्रेस ने लिखा है कि अगर किसान इस दाल की खेती करते हैं तो किसानों की आत्‍महत्‍या में कमी आ सकती है। एक नजर ड‍ालिए इस दाल से जुड़ी 10 खास बातों पर।

पैसे की जगह दाल का होता था प्रयोग

पैसे की जगह दाल का होता था प्रयोग

खेसारी दाल भारत में कभी इस कदर लोक‍प्रिय थी कि कई इलाकों में पेमेंट के तौर पर इसका प्रयोग होता था। न्‍यू साइंटिस्‍ट मैगजीन में वर्ष 1984 में छपी एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया था।

1907 में लगा बैन

1907 में लगा बैन

वर्ष 1907 में जब देश में भयंकर सूखा पड़ा तो मध्‍य प्रदेश स्थित रीवा के महाराजा ने इस दाल की खेती को बैन कर दिया था।

जानवरों पर खतरनाक असर

जानवरों पर खतरनाक असर

इस दान को लाकहोली दाल के नाम से भी जाना जाता है। किसी समय में इसका प्रयोग चारे के रूप में होता था। लेकिन सरकार ने इसके बुरे प्रभावों को देखने के बाद किसानों को इसकी खेती न करने के लिए कह दिया था।

लेकिन कुछ राज्‍यों में जारी रहा प्रयोग

लेकिन कुछ राज्‍यों में जारी रहा प्रयोग

वर्ष 1961 में देश की सभी राज्‍य सरकारों ने इसे बैन कर दिया। लेकिन पश्चिम बंगाल में इसका प्रयोग जारी रहा। साथ ही वर्ष 2000 में राज्‍य का दर्जा हासिल करने वाले छत्‍तीसगढ़ में भी इसका प्रयोग हो रहा था।

किसानों का विरोध

किसानों का विरोध

वर्ष 1970 में खेसारी दाल की खेती करने वाले किसानों के खिलाफ सख्‍त कदम उठाया गया। सरकारी अधिकारियों ने किसानों की फसलों का जला दिया और उनके पास मौजूद बैलों को भी जब्‍त कर लिया।

शुरू हुई इसकी बिक्री

शुरू हुई इसकी बिक्री

2008 में महाराष्‍ट्र में कांग्रेस की सरकार ने इस दाल पर से बैन हटा दिया। इसके साथ ही इस दाल का प्रयोग और इसकी बिक्री शुरू हो गई।

शरीर का निचला हिस्‍सा बेकार

शरीर का निचला हिस्‍सा बेकार

कई रिसर्च में इस बात की पुष्टि हुई है कि इस दाल के सेवन से लैथरिज्‍म नामक डिसॉर्डर पैदा होता है इसकी वजह से शरीर के निचले हिस्‍से में अपंगता फैल जाती है। ऐसा दाल में मौजूद डी-अमीनो-प्रो-पियोनिक एसिड की वजह से होता है।

दूसरी दालों में मिलावट के साथ बिक्री

दूसरी दालों में मिलावट के साथ बिक्री

बैन के बावजूद इस खतरनाक दाल को दूसरी दालों में मिलावट करके बेचा जा रहा है। ऐसा कई वर्षो से हो रहा है।

अरहर दाल जैसी आती है नजर

अरहर दाल जैसी आती है नजर

यह दाल बिल्‍कुल अरहर की दाल जैसी नजर आती है और अरहर की दाल की कीमत 200 रुपए प्रति किलो होने की वजह से खेसारी दाल को इस दाल में मिलावट करके बेचा जा रहा है। मिलावट वाली दाल को गरीबों को बेचा जा रहा है।

आसान है दूसरी दालों के साथ मिलाना

आसान है दूसरी दालों के साथ मिलाना

खेसारी दाल बाजार में 40 रुपए से 50 रुपए प्रति किलो की कीमत में मौजूद हैं। ऐसे में यह आसानी से मुहैया हो जाती है और अरहर दाल से इसको अलग कर पाना भी काफी मुश्किल होता है।

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English summary
10 things you should know about harmful and dangerous khesari dal. This was banned in 1961 now Indian Council for Medical Research has decided to lift this ban.
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