Seema Kushwaha : कौन हैं सीमा कुशवाहा, जिन्होंने चुनाव से पहले चुना मायावती का साथ, कभी IAS बनने का था सपना
इटावा, 20 जनवरी: दिल्ली के निर्भया केस में दोषियों को फांसी की सजा दिलाकर सुर्खियों में आने वाली वकील सीमा समृद्धि कुशवाहा एक बार फिर चर्चा में हैं। सीमा कुशवाहा ने उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मायावती का साथ चुना है और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का दामन थाम लिया है।
सीमा कुशवाहा का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के एक छोटे गांव में बेहद साधारण परिवार में हुआ था। संघर्षों के बीच सीमा ने मुकाम हासिल किया और आज वो किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। वन इंडिया हिंदी आपको सीमा कुशवाहा के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें बता रहा है।
कौन हैं सीमा कुशवाहा ?
सीमा समृद्धि कुशवाहा का जन्म 10 जनवरी 1982 को उत्तर प्रदेश में इटावा के बिधिपुर ग्राम पंचायत के उग्रापुर में हुआ था। उनके पिता बालादीन कुशवाहा ग्राम प्रधान भी रह चुके हैं। 12वीं के बाद ग्रेजुएशन के लिए सीमा औरैया चली गईं, उसी दौरान पिता की मौत हो गई। पिता के निधन के बाद परिवार पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया। घरवालों ने भी कहा कि अब उन्हें पढ़ाई के लिए खुद पैसों का इंतजाम करना होगा।
कॉलेज की फीस के लिए बेचनी पड़ी थी पायल
सीमा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कॉलेज की फीस के लिए उनके पास पैसे नहीं थे तो बुआ के दिए हुए सोने के कान के और पायल को बेच दिया। जो पैसे आए उससे कॉलेज की फीस भरी। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर किसी तरह ग्रेजुएशन किया। सीमा कानपुर गईं और कानपुर यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की। तब दीदी और जीजाजी ने कॉलेज की फीस दी। दीदी इटावा में रहती थीं, इसलिए एलएलबी की पहले साल सीमा को इटावा से कानपुर डेली अप-डाउन करना पड़ा। दूसरे साल कानपुर शिफ्ट हो गईं। वहां एक लोकल मैगजीन में पार्ट-टाइम जॉब करके कुछ पैसों का इंतजाम किया।
IAS बनना चाहती थीं सीमा
सीमा ने उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से 2006 में पत्रकारिता की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद, उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए भी किया। कानपुर से वकालत की पढ़ाई करने के बाद सीमा कुशवाहा दिल्ली गई थीं। दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के बाद सीमा ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की थी। सीमा के पति राकेश मुंगेर के संग्रामपुर प्रखंड के पौरिया गांव के रहने वाले हैं, जो गणित के टीचर हैं और दिल्ली में आईआईटी की तैयारी कराने वाली एक संस्था से जुड़े हुए हैं। बता दें, सीमा कभी आईएएस अधिकारी बनना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने तैयारी भी की थी।
निर्भया केस के दोषियों को दिलवाई फांसी
दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड ने सीमा का फैसला बदलवा दिया। जनवरी 2013 में जब साकेत कोर्ट में पहली बार इस मामले में चार्जशीट दाखिल हुई, तब सीमा कुशवाहा निर्भया के परिवार से संपर्क में आईं और इसके अगले साल 2014 में कानूनी तौर पर इस केस से जुड़ीं। सीमा, निर्भया के इंसाफ के लिए आंदोलन में शुरू से आखिरी तक शामिल रहीं। सीमा ने आखिरकार निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा दिलवाने के बाद ही दम लिया। इस दौरान सीमा एक बेटी की तरह निर्भया के पैरेंट्स के साथ रहीं और उन्हें हिम्मत नहीं हारने दी। निर्भया को इंसाफ दिलाने वाली सीमा को पूरे देश ने सैल्यूट किया था। सोशल मीडिया पर लोग सीमा के फैन हो गए हैं।
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