दिल्ली दंगे के दो आरोपी बरी, जज ने रूसी नोवल का जिक्र करते हुए दोहराई ये बात
नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने साल 2020 के दिल्ली दंगों के संबंध में दो आरोपियों पर से हत्या के प्रयास के आरोप हटाते हुए उन्हें बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 307 के तहत आरोप का समर्थन नहीं करता है। कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशन जज अमिताभ रावत ने रूसी लेखक फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की की नोवल क्राइम एंड पनिशमेंट का हवाला देते हुए कहा कि सौ खरगोशों से आप एक घोड़ा नहीं बना सकते, सौ संदेह एक सबूत नहीं बनाते हैं।
दोनों आरोपी बाबू और इमरान धारा 143, 144, 147, 148,149, 307 के तहत अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्तों को उपरोक्त अपराधों के लिए हथियार के साथ गैरकानूनी हिंसा में शामिल होने और 25 फरवरी, 2020 को मौजपुर लाल बत्ती के पास होने वाले दंगों में भाग लेने के लिए आरोपित किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी दावा किया गया कि आरोपियों ने इरादे के साथ राहुल को गोली मारने का काम किया था।
अदालत ने अभियोजन पक्ष के इस तर्क को भी खारिज कर दिया और कहा कि यह मानने के लिए कोई आधार नहीं है कि इन दोनों आरोपी व्यक्तियों ने धारा 307 आईपीसी के तहत परिभाषित हत्या के प्रयास का अपराध किया है। जज ने कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का कहना है कि आरोप लगाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ आरोप तय करने के लिए कुछ सामग्री होनी चाहिए, सबूत होने चाहिए सिर्फ शक के आधार पर सबूत को आकार नहीं दिया जा सकता है। आरोप पत्र में धारा 307 आईपीसी या आर्म्स एक्ट के तहत उन्हें कुछ भी नहीं दर्शाया गया है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की की नोवल क्राइम एंड पनिशमेंट में कहा गया है कि सौ खरगोशों से आप घोड़ा नहीं बना सकते और सौ संदेहों से कोई सबूत नहीं बना सकते हैं। इसलिए IPC की धारा 307 और आर्म्स एक्ट से बरी किया जाता है।