उत्तराखंड की राजनीति के माहिर खिलाड़ी हरीश रावत के सियासी सफर पर एक नजर
2014 में उन्होंने जिस तरह से उत्तराखंड में विजय बहुगुणा गुट को किनारे किया और फिर अपना बहुमत साबित किया वो उनकी राजनीतिक चतुरता को दर्शता है। एक नजर हरीश रावत के राजनातिक करियर पर।
देहरादून। देश के पांच राज्यों में फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें उत्तराखंड भी शामिल हैं, जहां मार्च में एक नई सरकार सत्ता संभालेगी। प्रदेश में इस समय कांग्रेस सत्ता में है और प्रदेश में पार्टी के पुराने नेता हरीश रावत मुख्यमंत्री। हरीश रावत इस समय कांग्रेस पार्टी का चेहरा हैं। हरीश रावत लंबे समय तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के वफादार सिपाही माने जाते रहे और उत्तराखंड के गठन के बाद उनकी भूमिका नए प्रदेश में काफी बढ़ गई। 2014 में उन्होंने जिस तरह से उत्तराखंड में विजय बहुगुणा गुट को किनारे किया और फिर अपना बहुमत साबित किया वो उनकी राजनीतिक चतुरता को दर्शता है। एक नजर हरीश रावत के राजनीतिक करियर पर।
हरीश रावत 69 साल के हो चुके हैं। 1947 में अल्मोड़ा में जन्में हरीश रावत ने बहुत कम उम्र में ही राजनीति की सीढ़ियां चढ़ना शुरू कर दिया था और लगातार वो इसमें तरक्की भी करते रहे। रावत ने वकालत की पढ़ाई की लेकिन मन रमा राजनीति में। राजनीतिक जीवन में ही उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। उन्होंने 1973 में कांग्रेस की जिला युवा इकाई के सबसे कम उम्र के प्रमुख चुने जाने का उन्होंने रिकॉर्ड बना दिया। उनकी राजनीति में बड़ा मोड़ तब आया जब 1980 में अल्मोडा सीट से भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जशी को हराकर वो लोकसभा पहुंचे। इसके बाद वो 1984 और 1989 में भी अल्मोडा से लोकसभा पहुंचे। 1992 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद संभाला, जिसकी जिम्मेदारी वे 1997 तक संभालते रहे।
उत्तर प्रदेश से अलग होकर नाय राज्य उत्तराखंड बनने के बाद हरीश रावत प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए। 2002 में कांग्रेस ने रावत को उत्तराखण्ड से राज्यसभा के सदस्य के रुप में भेजा। 2009 में हरीश रावत हरिद्वार सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी और उन्हें कई अहम जिम्मेदारियां सौंपी गईं। मनमोहन सिंह की सरकार में रावत केंद्र में कैबिनेट मंत्री बने। 2012 में उत्तराखंड में चुनाव हुआ तो भाजपा को सत्ता से हटाकर कांग्रेस की सरकार बनी। हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद का तगड़ा दावेदार माना जा रहा था लेकिन विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया।
बहुगुणा के सत्ता संभालने के बाद से लगातार प्रदेश में हरीश रावत और विजय बहुगुणा के खेमों में टकराव की खबरें आती रहीं। जून-2012 में आई प्राकृतिक आपदा से निपटने में उत्तराखंड की सरकार पर नाकामी के आरोपों के चलते हरीश रावत ने अपने पत्ते बिछाए और फरवरी 2014 को प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। मार्च में अपनी पार्टी के विधायकों की बगावत के बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा लेकिन उन्होंने फिर से अपना बहुमत साबित किया और मुख्यमंत्री बने। जिसने उनका कद उत्तराखंड की राजनीति में काफी बढ़ा दिया।
तीन दशकों से ज्यादा के राजनीतिक करियर में हरीश रावत के नाम पर ढेरों कामयाबियां हैं तो आरोपों की भी कमी नहीं है। इस सबके बावजूद रावत ने मुश्किलों से पार पाने वाले नेत की छवि बनाई है। आज उनके दम पर ही कांग्रेस उत्तराखंड में वापसी राह तलाश रही है। राजनीति के अलावा रावत खिलाड़ी बी रहे हैं। छात्र जीवन में हरीश रावत ने विश्वविद्यालय स्तर पर अपने कॉलेज का कई खेलों में प्रतिनिधित्व किया है। रावत फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी और एथलेटिक्स के खिलाड़ी रहे हैं। दुनिया के कई देशों की यात्राएं भी हरीश रावत कर चुके हैं।
1980-84:
सातवें
लोकसभा
चुनाव
में
जीत
हसिल
कर
संसद
पहुंचे।
1984-89:
8वें
लोकसभा
चुनाव
में
फिर
से
लोकसभा
सदस्य
चुने
गये।
1989:
9वें
लोकसभा
चुनाव
में
लगातार
तीसरी
बार
लोकसभा
सदस्य
चुने
गये।
23
मार्च1990:
कमेटी
ऑन
ऑफिसयल
लैंग्वेज
के
सदस्य
चुने
गये।
1990:
जनसंचार
मंत्रालय
के
कमेटी
में
सदस्य
चुने
गये।
2001-2007:
उत्तराखंड
कांग्रेस
कमेटी
की
अध्यक्ष
रहे।
2002:
राज्यसभा
के
लिये
चुने
गये।
2009:
15वें
लोकसभा
चुनाव
में
चौथी
बार
लोकसभा
सदस्य
चुने
गये।
2009-
18
जनवरी
2011:
राज्य
मंत्री
चुने
गये।
2012:
केंद्र
में
कैबिनेट
मंत्री
बने।
2014:
उत्तराखंड
के
मुख्यमंत्री
बने।