लव-कुश के मंत्रमुग्ध करने वाले गीतों में विलीन हो गया कोरोना का कष्ट
नई दिल्ली। अद्भुत ! अकल्पनीय !! आलौकिक !!! एक तरफ कोरोना की कष्टमय अनुभूति तो दूसरी तरफ करुणा का लहराता सागर। सागर की इन उत्ताल तरंगों में भय, संताप और दुख विलीन हो गये और मन जैसे त्रेता युग के रामराज्य में पहुंच गया। उत्तर रामायण की अंतिम दो कड़ियों ने चेतना के नये द्वार खोल दिये। इस धारावाहिक के दृश्य, संवाद, गीत, संगीत ने मन के तारों को झंकृत कर दिया। ऐसा लगा कि जब श्रीराम के दरबार में सचमुच का लव-कुश संवाद हुआ होगा तो कुछ ऐसा ही दृश्य रहा होगा। माता सीता ने जब मिथ्या आक्षेप से आहत हो कर धरती माता से गोद में लेने की पुकार की होगी तो राजा-प्रजा के हृदय पर ऐसा ही आघात लगा होगा। राजधर्म और निज धर्म की दुविधा में फंसे मर्याद पुरुषोत्तम जब वास्तव में चिंता निमग्न होंगे तो अयोध्या का कुछ ऐसा ही हाल रहा होगा। इस धारावाहिक को बनाने वाले विद्वान डॉ. रामानंद सागर को शत-शत नमन जिन्होंने इस डिजिटल युग में संस्कारों की महत्ता एक बार फिर प्रतिस्थापित की। धारावाहिक के गीत-संगीत रचने वाले विद्वान रवीन्द्र जैन जी को भी कोटि-कोटि नमन जिन्होंने रामायण के अनुरूप अपनी साहित्यिक योग्यता का प्रदर्शन किया। दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपनी इस अनुपम कृति से सदैव जीवित रहेंगे।
उत्तर रामायण, सेकेंड लास्ट एपिसोड
लव-कुश श्रीराम के दरबार में रामायण की कथा सुनाने आते हैं। दोनों भाई एक कर्णप्रिय गीत के माध्यम से रामकथा के हर प्रसंग का सजीव वर्णन करते हैं। रवीन्द्र जैन जी जैसा कोई साहित्य अनुरागी ही ऐसे गीत की रचना कर सकता था। इस गीत को स्वर दिया है कविता कृष्णमूर्ति, हेमलता, रवीन्द्र जैन, सुधा मलहोत्रा, शोभा जोशी और अरुण इंगले ने। स्वर और संगीत का यह अद्भुत संगम है। गीत सुन ऐसा लगता है जैसे किसी ने कानों में मिसरी घोल दी हो।
हम
कथा
सुनाते
हैं
राम
सकल
गुणधाम
की...
ये
रामायण
है
पुण्यकथा
श्रीराम
की...
सीता प्रसंग
कुश की भूमिका स्वप्निल जोशी ने निभायी है जब कि लव की भूमिका मयूरेश क्षेत्रमादे ने निभायी है। इन दो छोटे बालकों ने अपने अभिनय की अमिट छाप छोड़ी है। जब वे माता सीता का प्रसंग गाते हैं तो भावनाओं को समुद्र उमड़ जाता है-
कालचक्र
ने
घटनाक्रम
में
ऐसा
चक्र
चलाया...
राम-सिया
के
जीवन
में
फिर
घोर
अंधेरा
छाया...
अवध
में
ऐसा
एक
दिन
आया...
निष्कलंक
सीता
पे
प्रजा
ने
मिथ्या
दोष
लगाया
अवध
में
ऐसा
एक
दिन
आया...
भवनाओं का आवेग आंसुओं की धार में बाहर निकल पड़ता है
इस गीत को सुन कर मन उद्वेलित हो जाता है। भवनाओं का आवेग आंसुओं की धार में बाहर निकल पड़ता है। संतप्त मन ऐसे विचरने लगता है जैसे वह अयोध्या की सभा में उपस्थित हो। यह दृश्य फिल्मांकित था लेकिन हृद्य को किसी सत्य घटना की तरह तरंगित कर रहा था। जिसने भी इस दृश्य को देखा वह संवेदना के प्रवाह में प्लावित हो गया। कोरोना ने दिलों को बांट दिया था लेकिन उत्तर रामायण के कारुणिक प्रसंग ने इस भेद को मिटा दिया। सोशल मीडिया पर मुस्लिम समुदाय के कई दर्शकों ने अपनी राय जाहिर की। मोहम्मद सैफ अली खां ने ट्वीट किया- "लव-कुश के गाने का दृश्य बहुत ही भावुक करने वाला है। रामानंद सागर का निर्देशन अतिसुदंर है। रामायण हमें सब कुछ सिखाता है- प्यार, दुख दर्द और दया। इसलिए यह सबसे अधिक देखा जाने वाला सीरियल है। वृहत प्रणाम।" किसी सीरियल के प्रभाव की यह चरम स्थिति है। काल्पनिक है लेकिन चमत्कारिक है।
बाल अभिनय की पराकाष्ठा
लव-कुश माता कौशल्या, कैकयी और सुभद्रा से पूछते हैं कि जब सीताजी मिथ्या आरोप के कारण गृह त्याग कर रहीं थी तब आपने क्यों नहीं रोका ? आप लोगों की ममता का आंचल कैसे सीमट गया ? फिर वे गुरुदेव वशिष्ठ से पूछते हैं कि इस अवसर पर आपका परम ज्ञान कहां लोपित हो गया तो प्रतिउत्तर में सभी लोग सिर झुका लेते हैं-
ममतामयी मांओं के आंचल सिमट कर रह गये...
गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर घट कर रह गये...
न रघुकुल, न रघुकुल नायक...
कोई न हुआ सिय का सहायक...
मानवता खो बैठे जब सभ्य नगर के वासी...
तब सीता का हुआ सहायक वन का एक संन्यासी...
टेलीविजन के पर्दे पर यह दृश्य भावविह्वल करने वाला है। बाल कलाकार के रूप में स्वप्निल जोशी और मयूरेश ने मंत्रमुग्ध कर दिया।
उत्तर रामायण, अंतिम एपिसोड
इस कड़ी में रामानंद सागर ने अपनी लेखकीय क्षमता और शोधवृति का अतुलनीय प्रमाण पेश किया है। श्रीराम जब लव-कुश से उनके पुत्र होने का प्रमाण मांगते हैं तो वहां प्रबल संवाद होता है। श्रीराम राजधर्म निभाने के लिए निज हित को न्योछावर कर देते हैं। प्रजा सुख के लिए सीता का मोह त्याग देते हैं। इतना ही नहीं अंत में अपने वचन की रक्षा के लिए प्रिय भाई लक्ष्मण का भी परित्याग कर देते हैं। रामानंद सागर ने अपने कथानक का मूल आधार तुलसीदास रचित रामचरित मानस और वाल्मीकि रचित रामायण को बनाया है। इसके अलावा उन्होंने तमिल के कंब रामायण से भी प्रसंग लिये हैं। रामायण के स्क्रीनप्ले और डायलॉग के लिए उन्होंने 25 से अधिक प्रचलित रामकाथाओं पर शोध किया था। रामायण या उत्तर रामायण के कथानक में शास्त्रीय आधार पर कुछ कमियां निकाली जा सकती हैं लेकिन इस सीरियल ने धर्म, संस्कृति और संस्कार की स्थापना के लिए एक नया उत्साह पैदा किया है। इस सीरियल का प्रसारण 32 साल पहले हुआ था। तीन दशक बाद जब इसका पुनर्प्रसारण हुआ तो आज की युवा पीढ़ी भी इसके मोहपाश में बंध गयी। आज की युवा पीढ़ी को इस सीरियल ने आनंदित किया,यही इसकी परम विशिष्टता है।
लक्ष्मण ने बताया 'रामायण' सीरियल के वक्त कितनी मिलती थी सैलरी, बोले- उस समय खर्चे कम होते थे