कोरबा में धुआं-धुआं हुई उज्जवला योजना
कोरबा। मोदी सरकार ने देश भर में उज्जवला योजना के तहत 7 करोड़ गैस सिलेंडर गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों को दिये। छत्तीसगढ़ का कोरबा शहर भी इस स्कीम का हिस्सा बना। लेकिन देखते ही देखते कोरबा में उज्जवला योजना धुआं-धुआं हो गई। यानी चूल्हे और सिगड़ी के जिस प्रदूषण से गरीब महिलाओं को दूर ले जाने का सपना भाजपा सरकार ने देखा, वो यहां हर रोज़ धुआं हो जाता है।
हम बात कर रहे हैं कोरबा के चिमनी भाट्टी इलाके की। शहर के बस स्टैंड से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित चिमनी भाटी इलाके में सुबह धुएं से होती है, दोपहर आस-पास के फैक्ट्री से निकलने वाले धुएं के बीच कट जाती है और शाम को फिर से घने कोहरे जैसा दिखने वाला धुआं चिमनी भाट्टी व आस-पास के इलाकों को आगोश में ले लेता है। असल में यहां पर घरों में एलपीजी सिलेंडर होने के बावजूद अंगीठी यानी सिगड़ी पर भोजन पकाया जाता है।
कोरबा की चिमनी भाट्टी इलाके में रहने वाली ट्यूशन टीचर नीलम गुप्ता बताती हैं कि इस इलाके में सुबह से शाम तक धुआं छाया रहता है। सुबह उठते ही हर घर के बाहर सिगड़ी जलायी जाती है। दोपहर को करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पावर प्लांट से धुआं आता है। उसके बार शाम होते ही भोजन पकाने के लिये एक बार फिर से हर घर दूसरे में सिगड़ी जलायी जाती है।
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बात अगर रसोई गैस की करें, तो घर में गैस होने के बावजूद यहां के लोग कोयला जलाना ही पसंद करते हैं। यह धुआं सेहत के लिये हानिकारक है, यह वो जानते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता।
गैस है पर रीफिल नहीं करते
एक रिपोर्ट के अनुसार चिमनी भाट्टी व आस-पास के इलाकों में 2014 में करीब 5000 सिलेंडर थे। उज्जवला योजना के तहत 3000 से ऊपर सिलेंडर वितरित किये गये, लेकिन रीफिल अब भी 5000 सिलेंडर की ही होती है। इससे साफ है कि यहां पर घरों में सिलेंडर हैं लेकिन रीफिल नहीं होते। करीब 20 साल से यहां रह रहीं गृहणी अनु तिवारी बताती हैं कि यहां अधिकांश लोग गरीबी रेखा से नीचे वाले लोग हैं, जिनके पास सिलेंडर भरवाने का पैसा नहीं होता। जितना पैसा आता है, घर गृहस्थी में खर्च हो जाता है। एक साथ सात सौ से आठ सौ रुपए जुटाना कठिन हो जाता है। अब सब्सिडी आती है, तो उसके बारे में पता करने कौन बैंक जाये, पासबुक अपडेट करवाये।
कहां से लाते हैं कोयला
वैसे कोरबा स्वयं भारत की सबसे बड़ी कोयले की खानों में से एक है। जाहिर है यहां पर कोयले की कमी तो हो ही नहीं सकती। लेकिन चिमनी भाट्टी इलाके के लोग कोयला कैसे जुटाते हैं, यह जानकर आपको हैरानी होगी। यहां पर दिन भर दो दर्ज से अधिक कोयले से भरी माल-गाड़ियां निकलती हैं। इलाके के शुरू होने के ठीक पहले एक रेलवे क्रॉसिंग है, जहां से गुजरते वक्त ट्रेन रुकती है। जैसे ही यहां पर ट्रेन रुकती है, छोटे-छोटे बच्चे कोयला बटोरने के लिये रेलवे लाइन पर कूद पड़ते हैं। अगर माल गाड़ी से कोयला गिरा, तो वो बटोर लिया, नहीं गिरा तो चढ़ कर गिरा लिया। यहां के बच्चों की छुट्टियां तो घर के लिये कोयला एकत्र करने में ही गुज़र जाती हैं।
प्रदूषण का असर स्वास्थ्य पर
दिन रात कोयले के जलाये जाने और आस-पास की फैक्ट्रियों से उठने वाले धुएं के कारण कोरबा के लगभग सभी इलाके भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। चिमनी भट्टी इलाका भी इससे बचा नहीं है। आप इस ग्राफ में देख सकते हैं। यह डाटा 13 जून 2019 की दोपहर का है। उस दिन यहां PM2.5 का स्तर 86 तक पहुंच गया था। जबकि उसी दिन पिछले 24 घंटों के ग्राफ में आप देख सकते हैं कि यहीं का पीएम2.5 अधिकतम 538 तक पहुंच गया था। वहीं आज यानी 1 जुलाई की बात करें तो यहां पर पीएम 2.5 का स्तर 83 पर पहुंच चुका है। पिछले चौबीस घंटे में अधिकतम 333 रहा। ये आंकड़े साफ दर्शा रहे हैं कि यहां का धुआं खुले तौर पर हृदय व फेफड़े संबंधी बीमारियों को दावत दी जा रही है।
प्रदूषण का असर स्वास्थ्य पर
इनन सबके बीच अहम बात यह है कि यहां के लोगों को प्रदूषण की फिक्र भी नहीं है। जब हमने पूछा कि इस तरह से सिगड़ी जलाने पर प्रदूषण फैलता है, और उससे लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर होता है। यहां तक फेफड़ों से संबंधी बीमारियां तक हो जाती हैं। इस पर अनु तिवारी ने जवाब दिया कि बात अगर प्रदूषण की ही है, तो पहले पावर प्लांट से फैलने वाले प्रदूषण को कम कीजिये। जितना धुआं वहां से निकलता है, उसका एक प्रतिशत भी हमारी सिगड़ी से नहीं निकलता। कोयले के धुएं से अस्थमा के साथ-साथ हृदय संबंधी रोग होने की आशंका बनी रहती है।
क्या कहते हैं चिकित्सक
एनटीपीसी कोरबा के चीफ मेडिकल ऑफीसर डा. बी के मिश्रा ने वनइंडिया से बातचीत में कहा, कि यहां पर फेफड़ों से संबंधी बीमारियों के मरीज ज्यादा आते हैं। जाहिर है यह प्रदूषण का स्तर है। इसमें कोई शक नहीं है कि जिस तरह का धुआं कोरबा के आसमान में हर रोज़ छा जाता है, उसकी जद में ज्यादा समय तक रहने पर गंभीर असर पड़ता है। रही बात सिगड़ी जला कर धुआं फैलाने की, तो उसे लोगों को जागरूक करके ही रोका जा सकता है।