हाईप्रोफाइल अमृतसर सीट पर कमजोर हुई भाजपा सिद्धू के दांव से कैसे निपटेगी?
अमृतसर। सिक्खों की धार्मिक आस्था का केन्द्र अमृतसर लोकसभा क्षेत्र में हालांकि शुरू से भाजपा के प्रभाव वाला क्षेत्र रहा है। लेकिन पिछले चुनावों में अरूण जेटली को कैप्टन अमरिन्दर सिंह के हाथों मिली करारी हार व नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस में चले जाने के बाद भाजपा यहां जरूर कमजोर हुई है। भाजपा क्रिकेटर हरभजन सिंह को यहां से उतारने की कोशिशों में जुटी है, ताकि पार्टी का खोया जनाधार वापिस पाया जा सके। प्रत्याशी के मामले में आम आदमी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है, जबकि भाजपा व कांग्रेस अभी मंथन कर रही है।
अमृतसर सीट का खास महत्व
पंजाब के 13 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में से अमृतसर सीट का अपना एक खास महत्व है। पंजाब में शिरोमणी अकाली दल के साथ गठबंधन के चलते यहां से भाजपा ही अपना प्रत्याशी मैदान में उतारेगी। लेकिन इस बार कांग्रेस के मजबूत आधार को भेदना आसान नहीं है। अमृतसर लोकसभा चुनाव क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें से आठ पर कांग्रेस का कब्जा है, जबकि एक सीट पर अकाली दल को जीत मिली है। पिछले 61 साल में यहां कांग्रेस 12 बार चुनाव जीत चुकी है।
स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा
अमृतसर का इतिहास गौरवमयी रहा है। यहां स्वर्ण मंदिर आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है। अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा है। कहा जाता है कि अमृतसर शहर का नाम एक तालाब के नाम पर रखा गया है, जिसका निर्माण गुरू रामदास ने कराया था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का सबसे बड़ा नरसंहार अमृतसर के जलियांवाला बाग में ही हुआ था। इसी इतिहास के चलते यहां की सीट हमेशा से हाईप्रोफाइल रही है।
पहले भाजपा, फिर कांग्रेस के खाते में
अमृतसर लोकसभा सीट पर भाजपा का प्रभाव भी रहा है। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। 2004 से 2014 तक यहां से भाजपा के नवजोत सिंह सिद्धू चुनाव जीतते रहे हैं। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में सिद्धू को यहां से टिकट नहीं मिला। तो भाजपा ने वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को मैदान में उतारा गया, लेकिन जेतली को कांग्रेस के नेता अमरिंदर सिंह ने एक लाख से ज्यादा मतों से बुरी तरह हराया। उसके बाद 2016 के अंत में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सतलुज यमुना लिंक नहर के मामले पर पंजाब से नाइंसाफी का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया। फरवरी 2017 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस के गुरजीत सिंह औजला चुनाव जीत गए। फिलहाल यह सीट कांग्रेस के पास है।
माना जा रहा है कि इस बार कांग्रेस पार्टी नवजोत सिंह सिद्धू को मैदान में उतारेगी। हालांकि इससे पहले यहां से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चुनाव लड़वाने की चर्चा चल रही थी लेकिन आ रही खबरों के मुताबिक मनमोहन सिंह का चुनाव लडऩे का इरादा नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी सिद्धू की गैरमौजूदगी में क्रिकेटर हरभजन सिंह को अपने पाले में लाने की कोशिशों में जुटी है। हरभजन सिंह स्थानीय होने के साथ-साथ यहां खासे लोकप्रिय भी हैं। भाजपा नेता दावा कर रहे हैं कि पार्टी हरभजन सिंह के संपर्क में हैं। हरभजन भी संपर्क की बात स्वीकार करते हैं, लेकिन वह कहते हैं, अभी तक कुछ भी ठोस नहीं है। मेरी किसी भाजपा नेता से मुलाकात नहीं हुई है।
भाजपा हरभजन पर लगा सकती है दांव
युवाओं में लोकप्रिय 38 वर्षीय हरभजन सिंह भाजपा के समीकरणों में पूरी तरह फिट बैठते हैं। 2014 में अकालियों के खिलाफ आक्रोष के चलते भाजपा यह सीट हार गई थी। हरभजन सिंह ये नाराजगी भी दूर कर सकते हैं। यहां आम आदमी पार्टी पहले ही अमृतसर से उपकार सिंह संधू का नाम घोषित कर चुकी है। वह हाल ही में कांग्रेस छोडक़र आप में शामिल हुए हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी के चलते उन्होंने 2015 में अकाली दल से नाता तोड़ लिया था। इंद्रबीर सिंह बुलारिया के साथ उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा था। बुलारिया बादल सरकार में मुख्य संसदीय सचिव थे, लेकिन संधू अकाली-भाजपा सरकार का हिस्सा होते हुए भी लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे। अब वह आप के प्रत्याशी हैं।
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