कारगिल जंग के वक्त हमारे पास नहीं थे जरूरी हथियार, दोगुनी कीमत में विदेश से खरीदने पड़े: जनरल वीपी मलिक
चंडीगढ़. भारत के पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने दावा किया है कि वर्ष 1999 में हुई कारगिल की जंग के वक्त हमारे पास जरूरी हथियार (रडार भी) नहीं थे। हमें बाद में ये दोगुनी कीमत चुकाकर खरीदने पड़े थे। अचानक सैन्य जरूरतें पूरी न हो पाने की देरी की वजह से हमें न केवल युद्ध में नुकसान उठाना पड़ा, बल्कि अमेरिकन कंपनी को दोगुना राशि चुकाकर आनन-फानन में तकनीक खरीदनी पड़ीं।
बकौल वीपी मलिक, ''ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि डीआरडीओ ने कहा था कि हम ये रडार्स 2 साल के अंदर बनाकर सेना को दे सकते हैं। लेकिन तीन साल में भी डीआरडीओ रडार नहीं बना पाया। उसी दौरान हमें कारगिल में युद्ध से जूझना पड़ा। यदि डीआरडीओ वो मुहैया करा देता तो इतना नुकसान ही न होता। हमें अब वाकई कुछ करना है तो कम से कम डीआरडीओ की रीस्ट्रक्चरिंग जरूर कर दें।'
कारगिल के वक्त नहीं थे हमारे पास जरूरी साधन
वीपी
मलिक
ने
यह
बातें
चंडीगढ़
में
शुरू
हुए
मिलिट्री
लिट्रेचर
फेस्टिवल
में
'मेक
इन
इंडिया'
थीम
पर
बोलते
हुए
कहीं।
चंडीगढ़
में
यह
तीसरा
मिलिट्री
लिट
फेस्ट
है
और
शुक्रवार
को
इसका
पहला
दिन
था।
यहीं,
रिटायर्ड
जनरल
वीपी
मलिक
ने
एक
और
बात
कही।
मलिक
ने
आगे
कहा,
"कई
देशों
ने
2
दशक
पहले
हुए
कारगिल
युद्ध
के
दौरान
अचानक
पड़ी
सैन्य
जरूरतों
को
पूरा
करने
के
लिए
उपग्रह
चित्रों,
हथियारों
और
गोला-बारूद
के
लिए
भारत
पर
ओवरचार्ज्ड
किया
था।
महंगी
बिक्री
और
शर्तों
के
जरिए,
उन्होंने
हमारा
उतना
शोषण
किया
जितना
वे
कर
सकते
थे।"
विदेश से महंगे दामों पर मिले थे 70 के दशक के हथियार
"जब हमने कुछ बंदूकों के लिए एक देश से संपर्क किया, तो शुरू में उन्होंने हमसे वादा किया, लेकिन बाद में पुराने हथियारों की आपूर्ति की। हमारे पास गोला-बारूद जरूरत से कम मौजूद थे और जब अन्य देश से संपर्क किया गया, तो हमें 1970 के पुराने गोला-बारूद दिए गए। हर जरूरी खरीद में, हमारे साथ ऐसा हुआ।"
हर पुरानी सेटेलाइट इमेज के लिए 36,000 रुपये देने पड़े
"युद्ध में हमें इलाकों की जानकारी के लिए, सेटेलाइट इमेज की जरूरत पड़ी। एक देश से जो सेटेलाइट इमेज सरकार ने खरीदीं, उस हर इमेज के लिए 36,000 रुपये का भुगतान करना पड़ा। और, वे इमेज लेटेस्ट भी नहीं थे, बल्कि तीन साल पहले के चित्र थे।"
कारगिल से पाकिस्तानियों को खदेड़ने में इसलिए लगे कई महीने
मालूम
हो
कि,
जनरल
मलिक
ने
कारगिल
युद्ध
के
दौरान
भारतीय
सेना
का
नेतृत्व
किया
था।
उन्हें
उस
समय
की
ज्यादातर
बातें
पता
हैं।
उन्होंने
चंडीगढ़
में
कारगिल
की
जंग
के
वक्त
के
ऐसे
ही
कई
खुलासे
किए
हैं।
पाकिस्तानी
घुसपैठियों
को
कारगिल
से
खदेड़ने
के
लिए
भारतीय
फौजों
को
कई
महीने
का
वक्त
लगा
था,
जिसकी
मुख्य
वजह
सैन्य-संचार
और
रडार्स
की
व्यवस्था
न
हो
पाना
रहा
था।
DRDO को प्रोजेक्ट कॉन्ट्रेक्ट बेस पर दिए जाएं,रिजल्ट पर बात हो
मलिक के अलावा रिटायर्ड ले. जनरल अरुण साहनी ने भी कहा कि स्वदेश में आधुनिक युद्ध तकनीक के लिए डीआरडीओ की रीस्ट्रक्चरिंग जरूरी है। इन्हें प्रोजेक्ट कॉन्ट्रेक्ट पर दिए जाने चाहिए, जिनका समय तय हो। रिजल्ट पर बात होनी चाहिए। आर्मी को जो चाहिए वो सब हमारे देश में मिल सकता है, अगर सारी चीजें ठीक हो जाएं तो। यह हम सालों से कहते आ रहे हैं कि युद्ध देशी हथियारों से भी जीता जा सकता है।