पटाखों की दुकान वाले 50 फीसदी छूट देकर ऐसे कमाते हैं 200 फीसदी मुनाफा
नई दिल्ली। भले ही इस दिवाली कई जगह से इस तरह की खबरें आ रही हैं कि लोग चीन के सामान का विरोध कर रहे हैं, लेकिन पटाखों में अभी भी चीन के पटाखों ने घरेलू पटाखा इंडस्ट्री की नाक में दम कर रखा है। कई लोग चीन की झालर और लाइटों का तो इस दिवाली विरोध कर रहे हैं, लेकिन पटाखों ने भारतीय मार्केट में कब्जा कर रखा है।
दे रहे 50-70 फीसदी का डिस्काउंट
अधिकतर बड़े ब्रैंड इस बात की शिकायत कर रहे हैं कि सैकड़ों कंपनियां और छोटे मैन्युफैक्चरर थोक व्यापारियों से मिलीभगत करके अधिकतम खुदरा मूल्य यानी एमआरपी को मनमाने ढंग से प्रिंट कर रहे हैं। ऐसे में वे अपने प्रोडक्ट पर 50-70 फीसदी तक डिस्काउंट के ऑफर देकर ग्राहकों को गुमराह कर रहे हैं।
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कमा रहे 200 फीसदी मुनाफा
बड़े ब्रांड्स का आरोप है कि इस तरह के कंपनियां मोटा मुनाफा कमा रही हैं। बहुत ही कम कीमत पर बनने वाले पटाखों की कीमत बहुत ही अधिक रखी जा रही है और फिर उस पर मामूली डिस्काउंट का लालच दिया जा रहा है। भले ही ग्राहकों को ये लग रहा हो कि उन्हें तगड़ा डिस्काउंट दिया जा रहा है, लेकिन बावजूद इसके ये कंपनियां 200 फीसदी तक मुनाफा कमा रही हैं।
कैसे चल रहा है ये खेल
ग्राहकों को बेवकूफ बनाकर उनसे पैसे ऐंठे जाने का ये खेल आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लीजिए किसी पटाखे की लागत 20 रुपए है। इन पटाखों पर थोक व्यापारियों के साथ मिलीभगत करके 350 रुपए से 400 रुपए एमआरपी प्रिंट करवाई जा रही है। जब इसे दुकानों पर बेचा जाता है तो दुकानदार तगड़ा डिस्काउंट देते हैं, लेकिन बावजूद इसके मोटा मुनाफा कमाने का खेल चल रहा है।
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कैसे मिल सकती है इस धांधली से निजात
इस धांधली से निजात पाने के लिए सरकार को कुछ अहम कदम उठाने की जरूरत है। आपको बता दें कि किसी भी प्रोडक्ट पर टैक्स उसकी लागत के हिसाब से लगती है। बड़े ब्रैंड मांग कर रहे हैं कि सरकार को ये टैक्स लागत पर न लगाकर एमआरपी पर लगाना चाहिए।
ऐसा करने से पटाखे बनाने वाली कंपनियां एमआरपी मनमाने ढंग से प्रिंट नहीं करेंगी, क्योंकि ऐसा करने से उनके पटाखों की कीमत काफी बढ़ जाएगी और कोई थोक व्यापारी उन्हें नहीं खरीदेगा।
ब्रैंड क्यों नहीं करते ऐसा?
पटाखों के संगठित बाजार में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाली श्री कालीश्वरी फायर वर्क्स (मुर्गा ब्रैंड) के एमडी ए पी सेलवराजन से जब यह पूछा गया कि ब्रैंड ऐसा क्यों नहीं करते, तो उन्होंने कहा कि अगर ब्रैंड ऐसा करेंगे तो ब्रैंड इतने बड़े प्राइस टैग में टिक नहीं पाएगा। उन्होंने कहा कि इस तरह से सालों की मेहनत के बाद जो नाम कमाया है वह भी मिट्टी में मिल जाएगी।
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माननी पड़ती हैं शर्तें
एक डीलर ने बताया कि एमआरपी के मामले में बड़े थोक विक्रेताओं की ही चलती है और वे किसी मैन्युफैक्चरर को जो ऑर्डर देते हैं, उसे थोक विक्रेताओं की शर्तें माननी पड़ती हैं। यहां आपको बताते चलें कि एक ही फैक्ट्री से बने एक ही पटाखे की कीमत दिल्ली, गुड़गांव, मेरठ, चंडीगढ़ या देश के अन्य स्थानों पर अलग-अलग हो सकती है।
शुरुआत में नहीं देते डिस्काउंट
शुरुआत के दिनों में पटाखा बेचने वाले ग्राहकों को किसी भी तरह का डिस्काउंट नहीं देते हैं, क्योंकि उस समय पटाखे बहुत ही कम लोगों के पास होते हैं और दुकानदार मोटी कीमत पर पटाखे बेचकर मोटी कमाई करना चाहते हैं। जैसे-जैसे दिवाली नजदीक आती जाती है, तो पटाखों के दाम भी घटते जाते हैं।