8.6 फीसदी की दर पर पहुंची मुद्रास्फीति, जानिए क्यों बढ़ी उपभोक्ताओं और RBI की चिंता?
नई दिल्ली। लॉकडाउन के बीच खुदरा मुद्रास्फीति ने एक बार फिर से रफ्तार पकड़ी है और इसका एक बड़ा हिस्सा खाद्य मुद्रास्फीति के साथ जुड़ा हुआ है। कोरोना संकट में आपूर्ति में रुकावटों के बाद उछाल देखा गया और खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आई। अप्रैल महीने के मुकबाकले यह मार्च, 2020 में 7.8 प्रतिशत से बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गई। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण मुद्रास्फीति का दृष्टिकोण बेहद अनिश्चित है और दालों की बढ़ी कीमतें चिंता का विषय है।
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एक रिपोर्ट के मुताबिक सब्जियों, अनाज, दूध, दालें, खाद्य तेल और चीनी की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया है। पिछले साल के अंत में बढ़ती महंगाई और प्याज की कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ गई थी। और पीछे जाएं तो दिसंबर 2013 के बाद पहली बार खाद्य मुद्रास्फीति बढ़कर 10.01% हो हुई थी जो पहली बार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य पदार्थों का भार 40 प्रतिशत के बराबर है। जिसका अर्थ है कि खाद्य कीमतों में वृद्धि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को अधिक बढ़ा सकती है।
सीपीआई
खाद्य
भार
उत्पाद-
वेटेज
अनाज
और
उत्पाद-
24.8%
अंडा,
मछली
और
मांस-
10.3%
दूध
और
दूध
उत्पाद-
16.9%
तेल
और
वसा-
9.1%
फल-
7.4%
सब्जियां-
15.5%
दालें
और
उत्पाद-
6.1%
चीनी
और
मसालों-
3.5%
चाट
मसाला-
6.4%
समस्या यह है कि अगले कुछ महीनों में हम खाद्य कीमतों में फिर से बढ़ोतरी देख सकते हैं। वास्तव में, मछली और मांस, जो खाद्य भार का 10.3 प्रतिशत है पहले ही बढ़ चुका है। इसके अलावा देशबंदी के कारण बुवाई के मौसम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, जिसका असर अगले कुछ महीनों में खाद्य उत्पादन और कीमतों पर पड़ सकता है।
क्यों
चिंतित
है
आरबीआई?
भारतीय
रिजर्व
बैंक
के
पास
मूल्य
स्थिरता
बनाए
रखने
के
लिए
महत्वपूर्ण
आदेश
है।
इसका
मतलब
है
इसे
सभी
उपलब्ध
साधनों
के
साथ,
नकद
रिजर्व
अनुपात
और
रेपो
दर
सहित
कीमतों
को
नियंत्रित
करना
होगा।
वर्तमान
में,
भारतीय
रिजर्व
बैंक
4
प्रतिशत
की
मुद्रास्फीति
दर
को
लक्षित
कर
रहा
है।
मार्च
में
भारत
का
खुदरा
मुद्रास्फीति
या
उपभोक्ता
मूल्य
सूचकांक
(CPI)
भारतीय
रिजर्व
बैंक
के
5.84
प्रतिशत
के
अनुमान
स्तर
से
ऊपर
था।
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