श्रम उत्पादकता की समस्या आर्थिक विकास के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा
नई दिल्ली: भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था को लेकर ये कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या ये मंदी चक्रीय है या फिर संरचनात्मक। दोनों तरफ से इसके तर्क जा दिए जा रहे हैं। पिछली चार तिमाहियों में ग्रोथ 8 फीसदी से घटकर 6 फीसदी के नीचे आ गई है। ये किसी की भी धारणा नहीं थी कि एक साल की तिमाहियों में इतनी गिरावट देखने को मिलेगी। यदि ये गिरावट वास्तविक क्षमता के साथ होती, तो कोर महंगाई की दर से 6 फीसदी से 3 फीसदी पर नहीं आती, जैसा कि है।
इकोनिमिक्स टाइम्स में छपे एक आपनियन के मुताबिक, इससे ये साफ साबित हो रहा है कि आउटपुट गैप खुल गए हैं। इसलिए ये चुनौती नहीं कि मंदी का कुछ हिस्सा चक्रीय है। लेकिन चुनौती ये है कि इससे कैपे निपटना है। इसने राजकोषीय घोटाले को लेकर नए सिरे से कोलाहल मचा दिया है। पिछले सप्ताह ही राजकोषीय छूट की आशंकाओं को देखते हुए बांड को 20 बेसिस प्वाइंट्स (बीपीएस) को कठोर कर दिया है। जो कि आरबीआई की 35 बीपीएस दर में कटौती के बाद सभी नरम हो गए है।
लेकिन चक्रीय दवाब के अलावा मंदी के संरचनात्मक उपक्रम हैं। हाल के वर्षों में घरेलू खपत में तेजी से गिरावट के साथ बचत में कमी आई है। जो कि 23 फीसदी से गिरकर 17 फीसदी पर आ गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो आय में वृद्धि की दर बहुत नीचे गिर गई है। ये अपने परिवार की बचत को कम करने के साथ अपने वित्त उपभोग के लिए कर्ज लेने को मजबूर कर रही है। ये एक बिंदु से ज्यादा अस्थिर है। यदि मजदूरी और इनकम में तेजी नहीं आएगी तो ये खपत को गिराने के लिए मजबूर करेगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजदूरी की खपत सबसे अधिक देखी जाती है। पिछले पांच सालों में वास्तविक ग्रामीण मजदूरी में सिर्फ 0.9 फीसदी की सालाना बढ़ोतरी हुई है। जबकि नॉन-ड्यूरेबल्स में औसत 6.5 फीसदी की बढोतरी हुई है। ग्रामीणों की मुख्य खपत इसी में होती है। जब तक श्रम उत्पादकता नहीं बढ़ती है, मजदूरी और आय मजबूत खपत वृद्धि का समर्थन नहीं कर सकते हैं। गौरतलब है कि पिछले दो सालों में निवेश में 10 फीसदी की बढोतरी हुई है लेकिन मजदूरी में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
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