विदेशी निवेशकों का भारत पर फिर बढ़ा भरोसा, FPI के जरिए नबंवर में हुआ रिकॉर्ड निवेश
मुंबई। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआइ) ने नवंबर में निवेश का एक बार फिर से रिकॉर्ड बना है। जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बूस्ट माना जा रहा है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने नवंबर में भारतीय बाजार में 62,951 करोड़ रु का निवेश किया है। ये निवेश उन्होंने 3 से 27 नवंबर तक की अवधि में किया है। एफपीआई नवंबर में लगातार दूसरे महीने भारतीय बाजारों में शुद्ध निवेशक बने रहे।
नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड ने जब से एफपीआई के आंकड़े उपलब्ध कराने शुरू किए हैं तब से इक्विटी सेगमेंट में किया गया ये सर्वाधिक निवेश है। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार एफपीआई ने नवंबर में शेयरों में शुद्ध रूप से 60,358 करोड़ रुपये का निवेश किया है। 62,951 करोड़ रु के कुल निवेश में से 60,358 करोड़ रु इक्विटी बाजार में निवेश किए गए हैं, जबकि बाकी 2593 करोड़ रु का निवेश डेब्ट सेगमेंट में किया गया है। अक्टूबर में भारतीय बाजारों में एफपीआई ने 22,033 करोड़ रुपये का कारोबार किया था।
ग्रो के को फाउंडर और सीओओ हर्ष जैन ने वर्तमान सकारात्मक प्रवृत्ति का विश्लेषण करते हुए कहा कि वैश्विक निवेशक विकसित बाजारों की तुलना में उभरते बाजारों में निवेश को अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। इसकी वजह है कि उभरते बाजारों में उन्हें लाभ होने की अधिक संभावना है। उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसे अन्य उभरते बाजारों में भी इसी तरह की प्रवृत्ति देखी गई।
जैन ने कहा, 'एफपीआई ने भारत में कुछ बड़ी ब्लू चिप्स कंपनियों में निवेश किया है। उनका ज्यादातर निवेश बैंकिंग क्षेत्र में आया है। ऐसे में उनका निवेश का प्रवाह कुछ शेयरों में केंद्रित है।मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा, 'नवंबर में कुछ अनिश्चितताएं पीछे छूट गई हैं। इसके अलावा माना जा रहा है कि नवंबर में कुछ अनिश्चितताएं पीछे रह गई है, जिससे एफपीआई ने काफी निवेश किया। अमेरिकी चुनाव को लेकर काफी असमंजस था, मगर अब स्थिति साफ होने से अनिश्चितता कम हो गई है।
श्रीवास्तव ने कहा कि नवंबर में एफपीआई निवेश को निर्धारित करने वाले अन्य प्रमुख कारकों में एक अमेरिकी डॉलर में कमजोरी और आकर्षक वैल्यूएशन का कम होना माना जा रहा है। घरेलू मोर्चे पर सबसे बड़ी चुनौती COVID-19 मामलों को नीचे लाना और अर्थव्यवस्था को विकास के पथ पर वापस लाना होगा। उन्होंने कहा कि मैक्रोइकॉनॉमिक परिदृश्य में सुधार हुआ है जो यह सुनिश्चित करता है कि एफपीआई प्रवाह बरकरार है।
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