सरकार के लिए बजट खर्च जुटाना हो सकता है मुश्किल, RBI से लेनी पड़ सकती है मदद
नई दिल्ली- कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से देश की अर्थव्यवस्था भारी चुनौतियों की दौर से गुजर रहा है और भारत सरकार के लिए बजट का खर्च जुटाना मुश्किल हो रहा है और उसके पास विकल्प कम बचे हैं। इसलिए इस बात की संभावना है कि वह रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से एकबार फिर से मदद ले सकती सकती है। कारण ये है कि अर्थव्यवस्ता को पटरी पर लाने के जितने भी प्रयास हुए हैं, उसका उस हिसाब से परिणाम अभी तक नहीं देखने को मिल रहा है।
ब्लूमबर्ग सर्वे के आधार पर इकोनोमिक्स टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक केंद्र सरकार रिजर्व बैंक से सीधे सॉवेरेन बॉन्ड खरीदने को कह सकती है या दूसरी तरह की उपाय पर जोर देने को कह सकती है, जिससे कि सरकार के पास कुछ अतिरिक्त राजस्व पहुंच सके। इस वक्त कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते देश की अर्थव्यवस्था बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रही है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार जीडीपी के 7 फीसदी बजट घाटे का सामना कर रही है, जो कि कुछ अनुमानों के मुताबिक दो दशकों से भी अधिक वर्षों में सबसे ज्यादा है।
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रिपोर्ट में अमेरिका से लेकर जापान तक का हवाला देकर कहा गया है कि इस महामारी में वहां के केंद्रीय बैंक भी सरकार की वित्तीय स्थिति संभालने में सहयोग कर रहे हैं। इसमें इंडोनेशिया का उदाहरण देकर कहा गया है कि वहां का केंद्रीय बैंक सरकार की सहायता के लिए उससे अरबों डॉलर के बॉन्ड्स सीधे खरीदने के लिए राजी हो गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार के लोन मैनेजर अभी इस माथापच्ची में लगे हुएं कि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए मार्च तक 160 अरब डॉलर के उधार का प्रबंध कैसे करेंगे।
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के लिए एक और जोखिम तो ये है कि कहीं मौजूदा हालातों में इसकी क्रेडिट रेटिंग और न घटा दी जाए। इसकी मानें तो भारत चार दशकों बाद पहली बार इतना बड़ा आर्थिक संकट झेलने जा रहा है। ऊपर से दिक्कत ये है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को फिच रेटिंग्स और मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस ने पहले से ही इसकी गिरती वित्तीय स्थिति को देखते हुए निगेटिव वॉच में रखा हुआ है।
ब्लूमबर्ग सर्वे से जुड़े अर्थशास्त्रियों को लगता है कि इस वित्त वर्ष में भारत का बजट घाटा जीडीपी के 7 फीसदी तक पहुंच सकता है, जो कि पिछली बार 1994 में देखने को मिला था। जबकि, सरकार ने इसका लक्ष्य 3.5 फीसदी तय किया हुआ है। उधर आईएमएफ का मानना है कि देश का पब्लिक डेबिट अगले साल जीडीपी के 85.7 फीसदी तक पहुंच सकता है, जो कि इस वक्त 70 फीसदी के आसपास है। ऐसे में अगर आरबीआई सरकार से सीधे बॉन्ड खरीदता है तो रेटिंग घटने का खतरा कम हो सकता है। चर्चा है कि इसके लिए सरकार स्पेशल 'कोविड बॉन्ड' जारी कर सकती है। सरकार ने इस वित्त वर्ष में आरबीआई से लाभांश के रूप में 600 अरब रुपये लेने का बजट तय किया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में उसे इस एवज में रेकॉर्ड 1.76 ट्रिलियन रुपये मिले थे। बता दें कि आरबीआई हर साल सरकार को अपनी आमदनी और करेंसी नोट छापने के हिसाब से लाभांश देता है।
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