खुशखबरी: होली से पहले इन कर्मचारियों को मिलेगी बकाया सैलरी, सरकार ने जारी किए 171 करोड़ रुपए
खुशखबरी: होली से पहले इन कर्मचारियों को मिलेगी बकाया सैलरी, सरकार ने जारी किए 171 करोड़ रुपए
नई दिल्ली। रिलायंस जियो के आने के बाद से सरकारी टेलिकॉम कंपनी BSNL और MTNL की आर्थिक स्थिति डगमगा गई है। कंपनी लगातार नुकसान में जा रही है। ऐसे में कंपनी के कर्मचारियों की सैलरी तक को रोक दिया गया। बीएसएनएल के कर्मचारियों को अब तक फरवरी की सैलरी नहीं मिली। ये पहली बार हुआ जब कर्मचारियों की सैलरी को रोका गया। हालांकि सरकार ने अब इन कर्मचारियों की टेंशन को दूर कर दिया है।
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होली से पहले मिलेगी बकाया सैलरी
देश की सरकारी टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारियों की सैलरी होली से पहले मिल सकती है। कर्मचारियों की सैलरी पर दूरसंचार विभाग ने MTNL के 2300 कर्मचारियों की बकाया सैलरी के भुगतान के लिए 171 करोड़ रुपए जारी किए हैं। जबकि बीएसएनएल के कर्मचारियों की बकाया सैलरी के लिए 850 करोड़ रुपए जारी करने का वादा किया है।
पहली बार रोकी गई सैलरी
दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की और उनसे आर्थिक तंगी का सामना कर रही इन कंपनियों के हाल से अवगत कराया। टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारियों के सैलरी भुगतान के लिए फंड की मांग की। जिसके बाद एमटीएनएल के कर्मचारियों को सैलरी और एरियर के भुगतान के लिए 171 करोड़ रुपए और बीएसएनएल मैनेजमेंट और कर्मचारी यूनियन के कर्मचारियों के लिए 850 करोड़ रुपए जारी करने का फैसला किया।
मांगनी पड़ी मदद
वित्त मंत्रालय से मिली मदद के बाद एमटीएनएल ने अपने कर्मचारियों को सैलरी बांटने का काम शुरू कर दिया है। एमटीएनएल के सैलरी खर्च को डीओटी पूरा करता है। वहीं बीएसएनएल को 21 मार्च से पहले 850 करोड़ रुपए दिए जाएंगे, जिसके बाद इन कर्मचारियों को बकाया सैलरी दी जाएगी। गौरतलब है कि बीएसएनएल पहली बार फरवरी में अपने 1.76 लाख कर्मचारियों को सैलरी नहीं दे पाई थी।
आमदनी के मुकाबले बढ़ा सैलरी का अनुपात
गौरतलब है कि एमटीएनएल में आमदनी के मुकाबले सैलरी का अनुपात बढ़कर 90 फीसदी तक पहुंच गया है। जबकि बीएसएनएल में यह करीब 67-70 फीसदी है। एमटीएनएल पर करीब 20,000 करोड़ का कर्ज है, जबकि उसकी सालाना आमदनी 2,700 करोड़ रुपए है। वहीं बीएसएनएल पर 13,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। वहीं रिलायंस जियो के आने के बाद इन कंपनियों के सामने अपने यूजर्स बेस को बचाकर रखना बड़ी चुनौती साबित हो रही है।