जन्माष्टमी विशेष: भगवान श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह का साक्षी है बुलंदशहर, इस मंदिर से किया था हरण
बुलंदशहर। 12 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्स्व देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी आस्था व उल्लास के साथ मनाया जा रहा हैं। हालांकि, कोरोना वायरस संक्रमण का असर भी इस बार छाया हुआ है। कृष्ण जन्माष्टमी 2020 के मौके पर जानिए उत्तर प्रदेश के अवंतिका देवी मंदिर के बारे में, जो आज भी श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का साक्षी है।
द्वापर युग की है यह पौराणिक कथा
आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के विवाह से जुड़ी हुए एक पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे है, जो द्वापर युग की है। किंवदंतियों के मुताबिक, बुलंदशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर नगर था। कुण्डिनपुर नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे जिनके नाम रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहिन थीं सती रुक्मिणी।
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रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पति के रूप में मांगा था
राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ कुण्ड (रुक्मिणी कुण्ड) में स्नान करके माता अवंतिका देवी के मंदिर में जाकर माता अवंतिका देवी का नाना प्रकार से पूजन करती थीं। पूजन करने के पश्चात् प्रतिदिन माता भगवती अवंतिका देवी से प्रार्थना करती थीं, ‘हे जगतजननी! हे करुणामयी मां भगवती!! मुझे श्रीकृष्ण ही वर के रूप में प्राप्त हों।'
रुकमी ने किया था कृष्ण से विवाह का विरोध
राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती हैं तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। लेकिन जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने सती रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया था।
ब्राह्मण के हाथ भेजा था रूक्मिणी ने भगवान कृष्ण को संदेश
राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास द्वारिका संदेश भेजा था कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरन चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है। इसलिए वह वहां आकर उसकी रक्षा करे। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार इसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण उस समय किया जब वह मंदिर में पूजन करने गयी थीं।
यहां हुआ था कृष्ण से रुकमी का युद्ध
जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बैठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासिन्ध तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाओं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय उनकी मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर आ गए। घोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएं हार गयीं। उसी समय से कुण्डिनपुर का नाम अहार पड़ गया।
शक्ति पीठ के रूप में विराजमान है मां अवंतिका देवी
अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महत्व एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है। पृथ्वी पर जितनी भी सिद्धपीठ हैं वह सब सतीजी के अंग हैं, लेकिन यह सिद्धपीठ सतीजी का अंग नहीं है। कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर जगत जननी करुणामयी माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदम्बा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी' के नाम से प्रतिष्ठित हैं।
ये हैं मान्यता
अवंतिका देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देशी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था और बाद में इसी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मिणी का विवाह भी हुआ था।
श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह रस्मों पर आधारित हैं गांव के नाम
बुजुर्गों के अनुसार, अहार क्षेत्र के आसपास के करीब दो दर्जन से ज्यादा गांवों के नाम आज भी श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह की रस्मों पर आधारित हैं। अहार क्षेत्र के गांव मोहरसा में श्रीकृष्ण का मोहर बंधा था, इसलिए इसका नाम मोहरसा पड़ा। दराबर गांव में श्रीकृष्ण जी का दरबार लगता था। बामनपुर गांव में श्रीकृष्ण की बरात का ब्रह्मभोज हुआ था। गांव सिहालीनगर में श्रीकृष्ण का मोहर मोर के पंखों से बनाया गया था। गांव सिरोरा में श्रीकृष्ण का मोहर सिराया गया था। गांव खंदोई में ब्रह्मभोज के लिए मिट्टी के बर्तन बने थे। यहां पर आज भी मिट्टी के बर्तनों का बहुत बड़ा मेला लगता है। गांव मोहरसा स्थित ऐतिहासिक चामुंडा देवी मंदिर पर वर्ष में दो चैत्र और आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को विशाल मेला लगता है, जहां द्वापर युग की याद में श्रद्धालु मिट्टी के बर्तनों की खरीदारी करने आते हैं। लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते मेले का आयोजन नहीं होगा।
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