उत्तर प्रदेश पुलिस के 'त्रिनेत्र' से अपराधी गिरफ़्त में आएंगे?
भीड़-भाड़ वाली सड़कें चाहे लखनऊ की हों या दिल्ली की, ऐसी जगहों पर इतने लोग एक साथ इकट्ठे होते हैं कि पुलिस के लिए लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक मुश्किल काम हो जाता है. चप्पे-चप्पे पर नज़र रखनी होती है. किसी पर शक़ होने की स्थिति में उसके पिछले रिकॉर्ड की जांच करना ज़रूरी हो जाता है और ये काम बहुत चुनौतीपूर्ण है.
भीड़-भाड़ वाली सड़कें चाहे लखनऊ की हों या दिल्ली की, ऐसी जगहों पर इतने लोग एक साथ इकट्ठे होते हैं कि पुलिस के लिए लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक मुश्किल काम हो जाता है.
चप्पे-चप्पे पर नज़र रखनी होती है. किसी पर शक़ होने की स्थिति में उसके पिछले रिकॉर्ड की जांच करना ज़रूरी हो जाता है और ये काम बहुत चुनौतीपूर्ण है.
यही समस्या तब भी आती है जब किसी अभियुक्त को थाने में लाया जाता है. ऐसे में भी उसका कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड है या नहीं ये पता लगाना ज़रूरी है.
आमतौर पर किसी अपराधी की जानाकारी थाने में दर्ज होती है. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में हज़ारों थाने हैं.
मान लीजिए अगर कोई अपराधी लखनऊ में पकड़ा जाता है. इस शहर में ये उसका पहला अपराध है. लेकिन इससे पहले वो मेरठ में ऐसा ही कुछ कर चुका है. ऐसे में एक सेंट्रलाइज्ड रिकॉर्ड नहीं होने की वजह से इन दो अपराधों की कड़ियां जोड़ना मुश्किल है और इसमें काफ़ी समय लग सकता है.
उत्तर प्रदेश पुलिस एक मोबाइल ऐप की मदद से इस काम को करने की कोशिश कर रही है.
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त्रिनेत्र ऐप
त्रिनेत्र ऐप में अपराधियों की सभी डिटेल अपलोड की जा सकती है और ज़रूरत पड़ने पर 'फेशियल रिकग्नीशन' यानी चेहरा पहचानने की तकनीक का इस्तेमाल कर अभियुक्त या संदिग्ध की तस्वीर से मिलान करके पता लगाया जा सकता है कि उसका कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड है या नहीं.
वाराणसी में एसपी (सुरक्षा) सुकीर्ति माधव ने बताया, "अगर मैं इस ऐप में आपकी तस्वीर लेकर देखूंगा और आपका कोई आपराधिक इतिहास रहा होगा तो ये ऐप उसे पकड़ लेगा. इस ऐप का फ़ेस रिक्गनिशन सिस्टम डेटाबेस में आपका चेहरा तलाशता है कि इस चेहरे के किसी व्यक्ति का पहले से रिकॉर्ड तो नहीं है."
सुकीर्ति माधव ने बताया कि अगर ये सर्च रिज़ल्ट औसत या ख़राब से बेहतर नहीं है तो इसका मतलब हुआ कि आपका कोई आपराधिक इतिहास यहां पर नहीं है.
उन्होंने बताया, ''जब एक व्यक्ति जेल जाता है तो हो सकता है कि उसके साथ उस अपराध में और भी कोई व्यक्ति जेल गया हो. ये ऐप इसका भी विश्लेषण करता है. इस तरह से हमें पूरे गैंग को ट्रैक करने में मदद मिलती है."
सीसीटीवी कैमरे पर भी किसी संदिग्ध के नज़र आने पर उसकी तस्वीर निकाल कर इससे मैच किया जा सकता है.
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'कोई भी डेटा सुरक्षित नहीं'
पुलिस का कहना है कि अभी तक इसमें पांच लाख से ज़्यादा अपराधियों की डिटेल्स अपलोड की जा चुकी है. कुछ शुरुआती सफलताएं भी मिली है.
हालांकि इस ऐप से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सवाल भी है. सवाल ये कि क्या ऐसे लोगों का ये डेटा सुरक्षित है?
इस बारे में उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक ओपी सिंह भरोसा दिलाते हैं. उन्होंने कहा, "पुलिस विभाग के लिए डेटा सुरक्षा भी उतनी ही अहम है. हमने वो सारे एहतियाती कदम उठाए हैं जो लिए जाने चाहिए थे. हमने कॉमन यूजर ग्रुप के मोबाइल नंबरों को इससे जोड़ा है. मैं नहीं मानता कि कोई इससे छेड़खानी कर सकता है."
लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जाने-माने एडवोकेट और साइबर एक्सपर्ट विराग गुप्ता की राय डीजीपी ओपी सिंह से अलग है.
विराग गुप्ता कहते हैं, "आज की तारीख़ में व्हाट्सऐप लीक मामले के बाद ये ज़ाहिर है कि डेटा कहीं पर भी सुरक्षित नहीं है और कोई भी सिस्टम हैक किया जा सकता है. भारत में सबसे ज़्यादा तकलीफ़देह बात ये है कि यहां डेटा प्रोटेक्शन का कोई क़ानून नहीं है. इस वजह से लोगों के अंदर डेटा में सेंध लगाने में इस बात का कोई डर भी नहीं है."
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जेलों के सुरक्षा के लिए भी नई तकनीक
इसके अलावा जेलों की सुरक्षा के लिए 'जार्विस' नाम के एक सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है.
इसमें सीसीटीवी से नज़र रखी जाती है, किसी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि के होने पर मशीन ख़ुद ही अलर्ट जारी करती है.
स्टैक्यू टेक्नॉलॉजी के सीईओ अतुल राय ने बताया, "अभी हम 70 जेलों से फ़ीड इकट्ठा कर रहे हैं. हमें अलग-अलग लोकेशन से वीडियो फ़ीड मिल रहा है. इस फ़ीड पर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से विश्लेषण करते हैं. ये हमें कई तरह की चेतावनियां जारी करने में मदद करता है. ये ज़रूरी है कि ये अलर्ट पुलिस हेडक्वॉर्टर तक सही समय में पहुंच जाए."
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पुलिसिंग को बेहतर बनाने के लिए लगातार और अपराधियों की पहचान के लिए तो तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर हो रहा है, लेकिन क्या ये तकनीकें एक संकेत हैं कि आने वाले दिनों में पुलिस पब्लिक सर्विलांस सिस्टम का भी सहारा ले सकती है?
इसके जवाब में उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने कहा कि पुलिस आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित सार्वजनिक निगरानी की तरफ़ मुड़ रही हैं लेकिन अभी इसमें वक़्त लगेगा.
उन्होंने कहा, ''अगर हम सीसीटीवी और फ़ेशियल रिक्गनिशन टेक्नॉलॉजी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करें, जैसे हम एयरपोर्ट पर करते हैं, तो उस तरह से हम करें तो शायद हम पब्लिक सर्विलांस की तरफ़ बढ़ेंगे. लेकिन हमें लोगों की निजता का भी ख़याल रखना है. हमारे देश के क़ानून हैं और उन क़ानूनों के अनुपालन का ध्यान रखते हुए हम पुलिसिंग करना चाहते हैं."