जब रावण ने बताई 'रामायण' से जुड़ी कुछ अनकही बातें
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में फ़िलहाल लॉकडाउन लागू है और सभी को घरों में ही रहने की हिदायत दी गई है. दूरदर्शन ने एक बार फिर से 1980 के दशक का लोकप्रिय पौराणिक धारावाहिक 'रामायण' का टेलिकास्ट शुरु किया है. इसे रामानंद सागर ने बनाया था. रामायण के आते ही इस शो ने एक बार फिर अपनी लोकप्रियता को साबित कर दिखाया है.
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में फ़िलहाल लॉकडाउन लागू है और सभी को घरों में ही रहने की हिदायत दी गई है.
दूरदर्शन ने एक बार फिर से 1980 के दशक का लोकप्रिय पौराणिक धारावाहिक 'रामायण' का टेलिकास्ट शुरु किया है. इसे रामानंद सागर ने बनाया था.
रामायण के आते ही इस शो ने एक बार फिर अपनी लोकप्रियता को साबित कर दिखाया है. जैसे ही ये शो शुरु हुआ इसने टीआरपी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये.
लोगों में उत्साह है इस शो से जुड़े कलाकारों और उनसे जुड़ी कहानियों के बारे में जानने का. हम आपको इस धारावाहिक से जुड़ी कुछ कहानियां बता रहे हैं.
अरुण गोविल को कैसे मिला था 'राम' का ऑफ़र
रामायण में राम का किरदार निभाने वाले अभिनेता अरुण गोविल ने बीबीसी को बताया, "मैंने अपना बचपन उत्तर प्रदेश के मेरठ में गुज़ारा. मेरठ यूनिवर्सिटी से ही पढ़ाई की और 17 साल की उम्र में बिजनेस के सिलसिले में मुंबई आया था. लेकिन फिर मैंने अभिनय करने का मन बना लिया. शुरुआती दौर में मैंने कई फ़िल्मों में साइड हीरो का किरदार निभाया और फिर राजश्री प्रोडक्शन हाउस ने मुझे फ़िल्म 'सावन को आने दो' में ब्रेक दिया."
ये फ़िल्म बेहद कामयाब रही और इसके बाद से अरुण गोविल का उनका फ़िल्मी सफर शुरू हो गया. लेकिन लोकप्रियता उन्हें धारावाहिक 'विक्रम और बेताल' में महाराज विक्रमादित्य के किरदार से मिली. ये सापात्हिक धारावाहिक दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाता था.
अरुण गोविल कहते हैं, "इसी धारावाहिक के चलते मुझे मौका मिला रामानंद सागर से मिलने का क्योंकि ये सीरियल उनके बेटे प्रेम सागर बना रहे थे. मैं उनसे मिलने गया और मैंने कई सारे स्क्रीन टेस्ट दिए. रामानंद सागर जी ने मुझसे कहा कि तुम्हें हम लक्ष्मण या भरत के किरदार के लिए चुन लेंगे."
"मेरे मन में राम का ही किरदार था. लेकिन मैंने उनसे कहा कोई नहीं, आप जैसा उचित समझें. बाद में उनकी सिलेक्शन टीम और रामानंद जी ने कहा की हमें तुम्हारे जैसा राम नहीं मिलेगा."
'एक घटना ने मुझे बहुत डरा दिया'
राम का किरदार करने के बाद अरुण गोविल की ज़िंदगी बदल गई. लोग सार्वजनिक जगहों पर अरुण को देखते तो उनके पांव छूने लगते और आशीर्वाद मांगते. लोग उनको उनके किरदार से अलग नहीं देख पाते थे.
अपनी पुरानी यादों को याद करते हुए अरुण कहते हैं, "मुझे याद है एक दिन मैं सेट पर टी-शर्ट पहन कर बैठा हुआ था. एक महिला आई और सेट पर काम करने वाले लोगों से पूछने लगी श्री राम कहां है. वो कह रही कि उसे मुझसे मिलना है" उसके गोद में एक बच्चा था. सेट पर काम करने वाले लोगों ने उसे मेरे पास भेज दिया."
"पहले तो वो मुझे पहचान नहीं पाई फिर उसने मुझे कुछ देर तक देखा और रोते हुए अपना बच्चा मेरे कदमों में रख दिया. मैं घबरा गया. मैंने कहा 'आप ये क्या कर रही हैं. छोड़िये मेरे पैरों को.' उसने रोते हुए कहा 'मेरा बेटा बीमार है. ये मर जाएगा आप इसे बचा लीजिये.' मैंने उन्हें हाथ जोड़कर समझाया कि 'ये मेरे हाथ में नहीं है, मैं कुछ नहीं कर सकता. आप इसे अस्पताल ले जाइये.' मैंने उन महिला को कुछ पैसे दिए. मैंने भगवान से उनके बेटे को ठीक करने की प्रार्थना की और फिर समझाया और अस्पताल जाने को कहा."
"वो उस वक्त वहां से चली गई लेकिन तीन दिन बाद वो फिर आई. इस बार भी उसका बेटा उसके साथ था. उस महिला को देख मुझे विश्वास हो गया कि अगर हम परमात्मा पर विश्वास रखें और प्रार्थना करें तो वो ज़रूर सुनता है."
सीता अपने किरदार से बाहर कभी नहीं आ सकीं
रामायण में सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका चिखलिया, अब शादी के बाद दीपिका टोपीवाला के नाम से जानी जाती हैं.
दीपिका की शादी बिज़नेसमेन हेमंत टोपीवाला से हुई है. लेकिन आज भी वह सीता के रूप में ही याद की जाती हैं.
वैसे तो दीपिका ने कई शोज़ में काम किया, लेकिन सीता बनकर उन्होंने जो जगह सबके दिलों में बनाई, वो आज भी उसी तरह कायम है.
दीपिका कहती है कि, "मेरे अंदर आज भी सीता ही है और मैं कभी इस किरदार से बहार ही नहीं निकल पाई. इसकी सबसे बड़ी वजह है लोग जिन्होंने मुझे इस किरदार से कभी बहार ही नहीं आने दिया. सिर्फ मैं ही नहीं, वो सभी कलाकार भी जो रामायण से जुड़े हैं वो कभी अपने किरदार से बाहर नहीं आ सके जबकि इस धारावाहिक को 30 साल से भी ज़्यादा वक़्त हो गया है."
दीपिका कहती हैं कि लोग अभी भी इस बात को समझते ही नहीं की उनका अपना भी कोई परिवार है.
वो कहती हैं, "मुझे खुद भी यकीन नहीं हो रहा कि लोग इतने सालों बाद भी हमें वही प्यार देंगे जो पहले दिया करते थे. मैंने तो सोचा था आज नेटफ्लिक्स का ज़माना है और कोई भी सीता का किरदार नहीं पसंद करेगा. लेकिन लोगों ने हमें उम्मीद से ज़्यादा प्रेम दिया है."
दीपिका ने 15 साल की उम्र में पहली फ़िल्म में काम किया था. उन्होंने कई फ़िल्मों में काम किया लेकिन उनकी पहचान आज भी सीता की ही है. वो कहती हैं कि लोग जब उनसे मिलने आते हैं तो उनसे आशीर्वाद लेते हैं और उनसे राम और लक्ष्मण के बारे में पूछते हैं.
दीपिका कहती हैं, "उन्हें लगता है कि अरुण मेरे पति है और मेरे देवर का नाम लक्ष्मण है. वो मानते हैं कि मेरे दो पुत्र है लव और कुश. वो ये समझ पाते कि अरुण का अपना परिवार है और मेरा अपना परिवार है."
रावण की मदद से मिला बीजेपी का टिकट
रामायण धारावाहिक के बाद दीपिका की लाइफ़ बदल गई थी. इसके बाद उन्हें बॉलीवुड फिल्मों के भी ऑफर आने लगे थे. यही नहीं दीपिका ने साल 1991 में बीजेपी के टिकट से वडोदरा सीट से चुनाव लड़ा और वो जीती भी थी.
दीपिका कहती है कि, "मैं गुजरात में एक फ़िल्म की शूटिंग कर रही थी तभी मेरी मुलाक़ात अरविन्द त्रिवेदी से हुई जिन्होंने धारावाहिक में रावण का किरदार निभाया था. उन्होंने मुझसे कहा कि 'आपको आडवाणी जी ढूंढ रहे हैं उन्हें आपका नंबर चाहिए.' मुझे लगा शायद ऐसे ही मिलना चाहते है."
"आडवाणी जी से मेरी मुलाक़ात हुई और उन्होंने मुझसे कहा 'आपकी आवाज़ बहुत अच्छी है. मैं चाहता हूँ कि आप भारतीय जनता पार्टी की मेंबर बनें.' इसके बाद मैं राजनीति से जुड़ गई. लेकिन इसके बाद मेरी शादी हुई और बेटी भी हुई जिसके बाद मैं कुछ खास कर नहीं पाई. तब मैंने थोड़ा ब्रेक ले लिया था."
सुनील को पहले दिया गया था शत्रुघ्न का किरदार
रामायण धारावाहिक में लक्ष्मण का किरदार अभिनेता सुनील लाहिरी ने निभाया था. रामायण के बाद सुनील इस कदर मशहूर हो गए कि लोग उन्हें असल जिंदगी में लोग लक्ष्मण के नाम से पुकारने लगे. यही नहीं 80 के दशक में जब वो कहीं जाते थे तो लोग उनकी पूजा करने लगते थे.
सुनील ने 'रामायण' के अलावा कई और धाराविहिकों और फिल्मों में भी काम किया है.
सुनील कहते हैं कि पहले उन्हें शत्रुघ्न के किरदार के लिए चुना गया था और लक्ष्मण के किरदार के लिए अभिनेता शशि पुरी का नाम फ़ाइनल किया गया था. लेकिन किसी वजह से जब शशि पुरी ने रोल लेने से मना कर दिया तब उन्हें लक्ष्मण के किरदार का मौका मिला.
वो कहते हैं, "इसके बाद से मेरी ज़िन्दगी ही बदल गई."
बड़ी फ़िल्मों के ऑफ़र्स जाने का था दुःख
1987 में 'रामायण' के प्रसारण के बाद सुनील ने कई और धारावाहिकों में भी काम किया. उन्हें कई फ़िल्मों के भी प्रस्ताव आने लगे.
वो कहते है, "रामायण की लोकप्रियता देखने के बाद कई बड़ी फिल्मों के प्रस्ताव मेरे पास आने लगे थे. उन दिनों मेरा थोड़ा नुक़सान ज़रूर हुआ था."
"कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. ये बात मेरे लिए सही साबित हुई क्योंकि उस दौरान अगर मैं वो फिल्में करता तो शायद आज के जो कुछ ग्रेट स्टार हैं उनमें से एक मैं भी एक होता. लेकिन ये नहीं हो पाया. उस समय मैं ये फ़िल्म छूट जाने के बारे में सोच कर ज़रूर थोड़ा दुखी था. लेकिन इस धारावाहिक को करने के बाद मुझे आज ये अनुभव हुआ है कि इसने मुझे अमर कर दिया है. इस धारावाहिक से जुड़े सभी कलाकार हमेशा के लिए अमर हो गए हैं."
"रामायण को करने के बाद मुझ पर एक ज़िम्मेदारी बन गई थी की कोई भी काम करूं तो उस तरह का ही करूं औक काम के लिए नीचे ना गिरूं. इसलिए हमेशा इसका ख़याल रखा और आगे भी रखूँगा. मेरी ज़िन्दगी बहुत साधारण है और मेरी दाल रोटी चल जाती है. कोई दिक्कत नहीं है. मैं फिलहाल बहुत कुछ लिखता रहा हूँ और आगे अच्छी वेबसेरिज़ और अभिनय करता रहूँगा."
सब चाहते थे कि अमरीश पूरी, रावण का किरदार निभाएं
रामानंद सागर के धारावाहिक रामायण में लंकापति रावण का रोल निभाकर अरविंद त्रिवेदी ने खासी लोकप्रियता बटोरी थी.
अरविंद मूल रुप से मध्य प्रदेश के शहर इंदौर से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने 250 से भी ज़्यादा गुजराती फ़िल्मों में काम किया है.
अरविन्द ने बीबीसी को बताया कि को गुजरात में थिएटर से जुड़े थे. जब उन्हें पता चला कि रामानंद सागर 'रामायण' बना रहे है और किरदारों की कास्टिंग कर रहे हैं तो वो ऑडिशन देने के लिए गुजरात से मुंबई आए. वो केवट का किरदार निभाना चाहते थे.
वो कहते हैं, "इस धारावाहिक में रावण के किरदार के लिए सबकी मांग थी की अभिनेता अमरीश पूरी को कास्ट किया जाए. मैंने केवट के किरदार के लिए ऑडिशन दिया और जब मैं जाने लगा तो मेरी बॉडी लैंग्वेज और ऐटिट्यूड देख कर रामानंद सागर जी ने कहा 'मुझे मेरा रावण मिल गया'."
खुद अरुण गोविल भी इस बात को स्वीकारते है कि उन्होंने और टीम ने रामानंद सागर से कहा था कि अभिनेता अमरीश पूरी इस किरदार के लिए पूरी तरह से फिट है.
ट्रेन में सीट नहीं मिलती, तो खड़े होकर पहुँचता था सेट पर
अरविंद त्रिवेदी का किरदार इतना दमदार था कि जब उनकी आवाज टीवी पर दशानन लंकेश के रूप में गूंजती थी, तो लगता था कि वास्तविक रावण ही छोटे पर्दे पर उतर आया है.
रावण के रूप में दिखने वाला उनका चौड़ा माथा और चेहरे पर गुस्से के भाव ऐसे होते थे, जैसे मानो यही रावण है.
अरविन्द कहते हैं कि उनके लिए रावण बनना आसान नहीं था और शूटिंग के लिए तैयार होने में उन्हें पांच घंटे लगते थे. उनका मुकुट ही केवल दस किलो का हुआ करता था और उस पर उन्हें दूसरे कई आभूषण और भारी-भरकम वस्त्र भी पहनने होते थे.
वो कहते हैं, "रामायण की शूटिंग गुजरात-महाराष्ट्र बॉर्डर के पास उमरगाम में हुआ करती थी मैं हमेशा बंबई से ट्रेन पकड़ कर उमरगाम जाया करता था. ट्रेन में सीट भी नहीं मिलती थी इसलिए खड़े होकर जाना पड़ता था. लेकिन जब धारावाहिक टीवी पर आने लगा तो लोग मुझे ट्रेन में बैठने के लिए सीट दे दिया करते थे और पूछा करते थे कि अब धारावाहिक में आगे क्या होने वाला है. मैं सबसे मुस्कुरा कर कहा करता था आप इसी प्रकार घारावाहिक देखो, पता चलेगा."
'उपवास रख कर किया करता था शूटिंग'
रामायण की शूटिंग को के दिनों को याद करते हुए अरविन्द त्रिवेदी कहते हैं, "मैं असल ज़िन्दगी में भी राम भक्त और शिव भक्त हूँ इसलिए जब भी शूटिंग पर जाया करता तो पूरा दिन उपवास रखता क्योंकि मुझे इस बात का दुःख होता कि दिए हुए स्क्रिप्ट के हिसाब से मुझे श्रीराम को उल्टे-सीधे शब्द बोलने हैं."
"मैं पूरा दिन उपवास रखता और शूटिंग शुरू होने से पहले राम और शिव की पूजा आराधना करता और जब शूटिंग ख़त्म हो जाती तो कपड़े बदलकर रात को अपना उपवास खोलता. शूटिंग के दौरान यही मेरी दिनचर्या होती."
जब हज़ारों लोग सेट पर रोने आए
अरविंद कहते हैं कि असल ज़िन्दगी में भी वो अरुण गोविल को प्रभु ही पुकारते हैं. वो कहते हैं,
"इस सीरियल के बाद मैं लोगों के लिए अरविंद त्रिवेदी नहीं, लंकापति रावण हो गया था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि रावण का किरदार निभाकर मैं इतना मशहूर हो जाऊंगा और भारत ही नहीं, बल्कि विदेश में भी लोग मुझे पहचानेंगे. लोग मेरा नाम याद रखेंगे, मैंने कभी नहीं सोचा था."
"जिस दिन सीरियल का आख़िरी एपिसोड शूट किया जा रहा था उस दिन उमरगाम और उसके असपास के इलाक़ों से हज़ारों लोग सेट पर आ गए थे. सभी लोग उस दिन बहुत रोये थे. वो मंज़र आज भी मेरी आँखों के सामने घूम जाता है."
रामायण में रावण का किरदार निभाने के बाद अरविंद त्रिवेदी ने राजनीति में भी कदम रखा. 1991 में अरविंद त्रिवेदी गुजरात की साबरकांठा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए.
2002 में उन्हें भारतीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफ़सी) (CBFC)के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया.
फिलहाल अरविंद त्रिवेदी का ज्यादातर समय भगवान राम की भक्ति में ही बीतता है और वो तीर्थ यात्रियों की सेवा के साथ दानपुण्य का काम भी करते हैं.