देखते ही देखते रहस्यमयी तरीके से नारंगी हुआ नदी का पानी, बाहर आकर दम तोड़ रहे अंदर रहने वाले जीव
नई दिल्ली: एक ओर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम में तेजी से बदलाव हो रहा, तो वहीं दूसरी ओर फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकल जमीन और पानी के स्रोतों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इन सब चीजों को लेकर प्रकृति लगातार इंसानों को चेतावनी दे रही, लेकिन सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा। अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाला वक्त इंसानों के लिए काफी मुश्किलों भरा रहेगा।
पानी हुआ नारंगी
अब स्लोवाकिया से गंभीर मामला सामने आया है, जहां रहस्यमयी ढंग से एक नदी का पानी नारंगी हो गया। इसके बाद उसके अंदर के जीव भी मरने लगे। साथ ही इस नदी पर निर्भर हजारों लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। जब स्थानीय प्रशासन को इसकी खबर मिली तो उसने तुरंत जांच के आदेश दिए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
गांव वालों ने बनाई दूरी
स्थानीय मीडिया के मुताबिक पूर्वी स्लोवाकिया में स्लाना नदी का पानी पूरी तरह से नारंगी हो गया है। इसे इंसानों द्वारा पैदा की गई आपदा के रूप में देखा जा रहा। जांच में पता चला कि पानी अभी जहरीला तो नहीं है, लेकिन बिना उबाले पीने लायक भी नहीं बचा। नदी का रंग देखकर ही आसपास के गांव वालों ने इससे दूरी बना ली है।
शवों को हटाया जा रहा
मामले में एक स्थानीय अधिकारी ने कहा कि पानी का रंग बदलते ही उनकी टीमें एक्शन में आ गई थीं, जांच में पता चला कि ये सब प्रदूषण की वजह से हो रहा है। उनकी कोशिश स्लाना नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने की है। नदी के अंदर रहने वाले जीवों को भी इससे नुकसान हुआ है, जिस वजह से बहुत सारे जीवों ने जान गंवाई। उनके शव को नदी के पास से हटाया जा रहा है।
लोहे की खदान है वजह
जांच करने पर पता चला कि ये सब नदी के पास मौजूद एक लोहे की खदान की वजह से हो रहा है। 2008 में लोहे की खदान के पॉकेट में खनन हुआ था, जो अभी तक नदी के नीचे मौजूद था, लेकिन बाढ़ की वजह से ये ऊपर आ गया। अब लोहे की जंग की वजह से पानी का रंग नारंगी हो गया है। स्थानीय प्रशासन के मुताबिक नदी के पानी का सिर्फ रंग बदला है, उसे जहरीला नहीं माना जा सकता।
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फरवरी से हालात चिंताजनक
टिबोर वर्गा नाम के एक शख्स ने कहा कि वो फरवरी से ही नदी की निगरानी कर रहे हैं। जब प्रदूषण शुरू हुआ था तो नदी में लोहा और जस्ता दिखता था। उस वक्त जीवों की धीरे-धीरे मौत हो रही थी, लेकिन अब मौतों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार से 200,000 यूरो ($ 211,460.00) मांगे गए हैं।