पुरुषों को बैठकर पेशाब करना चाहिए या खड़े होकर?
कई देशों में कई संस्कृतियों में बच्चों को सिखाया जाता है कि लड़के खड़े होकर पेशाब करते हैं जबकि लड़कियां बैठकर. अब कई सारे देशों के स्वास्थ्य विभाग, इस व्यापक रूप से फैली और स्वाभाविक सी धारणा को लेकर सवाल उठा रहे हैं. पुरुषों को पेशाब कैसे करना चाहिए? यह सवाल कई बार स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई को लेकर पूछा जाता है तो कुछ लोगों के लिए यह
कई देशों में कई संस्कृतियों में बच्चों को सिखाया जाता है कि लड़के खड़े होकर पेशाब करते हैं जबकि लड़कियां बैठकर.
मगर अब कई सारे देशों के स्वास्थ्य विभाग, इस व्यापक रूप से फैली और स्वाभाविक सी धारणा को लेकर सवाल उठा रहे हैं.
पुरुषों को पेशाब कैसे करना चाहिए? यह सवाल कई बार स्वास्थ्य और साफ़-सफ़ाई को लेकर पूछा जाता है तो कुछ लोगों के लिए यह समान अधिकारों का भी मामला है.
तो फिर सही कौन है? और सबसे ज़रूरी सवाल ये कि पुरुषों के लिए कौन सा तरीक़ा सही है?
अधिकतर पुरुषों के लिए खड़े होकर पेशाब करने से आसान तरीक़ा और कुछ नहीं है.
इससे काम जल्दी भी निपटता है और यह एक तरह से व्यावहारिक तरीक़ा भी है. क्या आपने कभी पुरुषों के सार्वजनिक मूत्रालयों के बाहर लंबी कतारें देखी हैं?
वास्तव में शायद ही आपने कभी वहां कोई कतार देखी होगी. पुरुष अंदर जाते हैं और कुछ ही देर में निकल आते हैं.
तुरंत निपट जाने वाले इस प्रक्रिया के पीछे दो कारण हैं-
- पुरुष तुरंत पेशाब कर सकते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा करने के लिए कई सारे कपड़े नहीं हटाने पड़ते.
- क्योंकि पुरुषों के यूरिनल्स क्यूबिकल्स (लघु कक्षों) की तुलना में कम जगह घेरते हैं. इसलिए यूरिनल लगे हों तो कम जगह में अधिक पुरुष पेशाब कर सकते हैं.
लेकिन कई विशेषज्ञ बताते हैं कि मूत्र विसर्जन करते समय शरीर की स्थिति कैसी है, इसका असर बाहर निकल रहे पेशाब की मात्रा पर भी पड़ता है.
पेशाब करने के पीछे का विज्ञान
आइए जानते हैं कि हम पेशाब करते कैसे हैं. पेशाब बनता है हमारे गुर्दों में. गुर्दे हमारे ख़ून से अपशिष्टों को अलग करते हैं.
फिर यह पेशाब ब्लैडर यानी एक थैली में इकट्ठा होता है. इसी कारण हम बार-बार टॉयलट जाने से बचते हैं, रात को आराम से सो पाते हैं और दिन में काम कर पाते हैं.
आमतौर पर ब्लैडर 300 से 600 मिलीलीटर तक पेशाब को इकट्ठा कर सकता है. मगर जब यह दो-तिहाई भर जाता है तो हमें पेशाब करने की ज़रूरत महसूस होने लगती है.
ब्लैडर को पूरी तरह ख़ाली करने के लिए हमारे नर्वस सिस्टम का पूरी तरह से ठीक होना ज़रूरी है. क्योंकि यही सिस्टम हमें बताता है कि कब टॉयलट जाना है और आसपास कोई जगह न हो तो कब तक और कितना पेशाब हम रोक सकते हैं.
जब हम पेशाब करने के लिए सुविधाजनक स्थिति में पहुंच जाते हैं तो हमारे पेल्विक फ़्लोर की मांसपेशियां और यूरेथ्रा को घेरने वाली एक गोल-सी मांसपेशी फैल जाती है.
फिर हमारा ब्लैडर सिकुड़ता है और पेशाब को यूरेथ्रा यानी मूत्रमार्ग में ख़ाली कर देता है. इस तरह से मूत्र शरीर से बाहर आ जाता है.
बैठना सही या खड़े रहना उचित?
एक स्वस्थ आदमी को पेशाब करने के लिए ज़ोर लगाने की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए. मगर कई बार पुरुषों के साथ ऐसे स्थायी या अस्थायी हालात पैदा हो जाते हैं कि उन्हें पेशाब करने में मुश्किल आने लगती है.
प्लस वन नाम के एक साइंटिफ़िक पब्लिकेशन का एक अध्ययन कहता है कि जिन पुरुषों के प्रोस्टेट में सूजन हो और इस कारण दिक़्क़त होती हो तो उनके लिए बैठकर पेशाब करना लाभकारी हो सकता है.
इस अध्ययन में स्वस्थ पुरुषों और लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट सिम्टम्स LUTS से जूझ रहे पुरुषों के बीच तुलना की गई थी. LUTS को प्रोस्टेट सिंड्रोम भी कहते हैं.
इसमें पाया गया कि LUTS से जूझ रहे पुरुष अगर बैठ जाएं तो उनके यूरेथ्रल एरिया से दबाव कम हो जाता है. इससे उनके लिए पेशाब करने की प्रक्रिया सहज और संक्षिप्त हो जाती है.
मगर स्वस्थ पुरुषों में खड़े होकर या बैठकर पेशाब करने में कोई अंतर नहीं देखा गया.
अपने लिए सही फ़ैसला कैसे करें
ब्रिटेन में नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) पेशाब करने में दिक़्क़तों का सामना करने वाले पुरुषों को सुझाव देती है कि पेशाब करने के लिए किसी अच्छी जगह आराम से बैठ जाएं.
आपने ऐसा भी सुना होगा कि बैठकर पेशाब करने से प्रोस्टेट कैंसर नहीं होता और पुरुषों की सेक्स लाइफ़ बेहतर हो जाती है.
इन बातों में कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि इसका कोई साक्ष्य नहीं है और ऐसा कोई अध्ययन भी उपलब्ध नहीं है.
पुरुषों के कारण होने वाली दिक़्क़तें
पुरुष खड़े होकर पेशाब करते हैं तो उसके इधर-उधर फैलने का ख़तरा बना रहता है जो कि स्वच्छता के हिसाब से ठीक नहीं माना जाता.
जिन टॉयलेट्स को और लोग भी इस्तेमाल करते हैं, वहां इस तरह के हालात पैदा होना बेहद ख़राब स्थिति होती है. इसलिए, अब इस बात पर ज़ोर दिया जाने लगा है कि पुरुष बैठकर ही पेशाब करें.
2012 में स्वीडन से इसकी शुरुआत होती दिखती है जब एक स्थानीय राजनेता अपने क़स्बे के सार्वजनिक शौचालयों की हालत से इतने त्रस्त हो गए कि उन्होंने पुरुषों को दूसरों की सुविधा का भी ख्याल रखने के लिए प्रेरित करने के रचनात्मक तरीक़े ढूंढना शुरू कर दिया.
वो चाहते थे कि लोग स्वच्छता पर ध्यान दें और लोगों को सार्वजनिक शौचालयों में जाने पर किसी गंदी जगह पर पैर न रखने पड़ें.
यहां से एक बहस की शुरुआत हुई और अब कई यूरोपीय देशों- जैसे कि जर्मनी में सार्वजनिक शौचालयों को लेकर नियम है कि आप टॉयलट में जाकर खड़े होकर पेशाब नहीं कर सकते. आप भले ही पुरुष हैं, आपको बैठकर ही पेशाब करना पड़ेगा.
कुछ शौचालयों में ट्रैफ़िक संकेतों की तरह के संकेत लगे हैं कि यहां खड़े होकर पेशाब करना मना है. मगर जो पुरुष बैठकर पेशाब करते हैं, उन्हें वहां 'सिट्ज़पिंकलर' कहा जाता है और यह दर्शाया जाता है कि ऐसा करना मर्दाना व्यवहार नहीं है.
लोगों ने तो अपने घरों में भी ऐसे संकेत लगाना शुरू कर दिया है जिनमें पुरुष मेहमानों से बैठकर पेशाब करने की गुज़ारिश की जाती है.
2015 में, जर्मनी में एक कोर्ट केस काफ़ी चर्चा में रहा था. एक मकान मालिक ने अपने बाथरूम में लगे मार्बल के फ़्लोर को हुए नुक़सान के बदले मुआवज़ा मांगा था. मकान मालिक का दावा था कि किराएदार के पेशाब के कारण फ़र्श को नुक़सान पहुंचा है.
मगर जज ने किरायेदार के पक्ष में फ़ैसला सुनाया था. उनका कहना था कि पुरुषों के लिए खड़े होकर पेशाब करना मान्य तरीक़ा है और किराएदार ने ऐसा करके कुछ ग़लत नहीं किया."