दोस्त को मगरमच्छ के पंजों से खींच लाई छात्रा, बस्ता फेंक देर तक लड़ी लड़ाई
नई दिल्ली। स्कूल में पढ़ने वाली एक छात्रा ने दोस्ती की मिसाल पेश की है। ये बच्ची अपनी दोस्त की जान बचाने के लिए न केवल मगरमच्छ से ही भिड़ गई, बल्कि खुद अपनी जान की भी परवाह नहीं की। मगरमच्छ ने उसकी दोस्त को अपने जबड़ों में बुरी तरह पकड़ रखा था लेकिन बच्ची ने हिम्मत नहीं हारते हुए बेहद बहादुरी से लड़ाई की और अपनी दोस्त को उसके चंगुल से खींच ले आई। इस बच्ची ने जिस बहादुरी का परिचय दिया उसकी हर कोई तारीफ कर रहा है। वहीं इस पूरी लड़ाई में 9 साल की इस बच्ची को कोई चोट नहीं आई। हालांकि, जिस बच्ची को मगरमच्छ ने पकड़ा था वो जरूर गंभीर रूप से घायल है और अस्पताल में भर्ती है।
9 साल की बच्ची को मगरमच्छ ने पकड़ा
पूरा मामला जिम्बाब्वे का बताया जा रहा है। खबरों के मुताबिक, सिंड्रेला गांव में नौ साल की बच्ची लाटोया मुवानी अपने दोस्तों के साथ तैर रही थी। इसी दौरान एक बड़े से मगरमच्छ ने उस पर हमला कर दिया और लाटोया को अपने जबड़ों में पकड़ लिया। जैसे ही मगरमच्छ लाटोया को खींच कर ले जाने लगी तो उसकी चीख सुनकर उसकी दोस्त रेबेका मुंकोम्ब्वे ने मगरमच्छ पर पलटवार का फैसला लिया। रेबेका ने तुरंत ही मगरमच्छ की आंख पर अपने पैर से हमला किया। जिसकी वजह से वो मगरमच्छ बुरी तरह से हिल गया।
दोस्त ने निभाई दोस्ती, मगरमच्छ से भिड़ गई
मगरमच्छ को भी शायद इस बात की उम्मीद नहीं रही होगी कि कोई उस पर पलटवार कर सकता है। इस मगरमच्छ ने लाटोया का हाथ-पैर पकड़ रखा था, जैसे ही लाटोया की चीख रेबेका ने सुनी वो तुरंत ही इस बड़े से मगरमच्छ से भिड़ गई और उसकी आंख में तब तक हमला किया जब तक उसने लाटोया का पैर और हाथ नहीं छोड़ दिया। जैसे ही मगरमच्छ की पकड़ से लाटोया छूटी तो रेबेका उसे अपने साथ लेकर तुरंत ही तैरकर नदी के किनारे आ गई। आंख पर हमले के बाद मगरमच्छ ने दोबारा इस बच्चियों पर हमला नहीं किया।
मगरमच्छ के आंखों पर हमला कर ऐसे बचा ली दोस्त की जान
वहीं जानकारी के मुताबिक, इस पूरे घटनाक्रम में जान बचाने वाली रेबेक्का को कोई चोट नहीं आई है। लेकिन उसकी दोस्त लाटोया को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है। बच्ची की सेवा कर रही नर्स ने बताया कि लाटोया को हल्की चोटें आई हैं और उसके जल्दी ठीक होने की उम्मीद है। वहीं रेबेक्का ने बताया कि जिस समय ये घटना हुई उन सभी फ्रेंड्स में मैं सबसे बड़ी थी। इसीलिए मैंने खुद लाटोया को बचाने का फैसला लिया। उन्होंने ये भी बताया कि जैसे ही लाटोया मगरमच्छ के चंगुल से छूटी मैं उसे तुरंत ही लेकर नदी के किनारे आ गई।
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