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कोरोना : नींद क्या आपको भी आजकल कम आ रही है? जानिए क्यों?

कोरोना से ठीक होने वाले मरीज़ आजकल नींद न आने की शिकायत कर रहे हैं. इसके कई दुष्प्रभाव हैं- याददाश्त घटना, फ़ैसले लेने की क्षमता कम होना, संक्रमण और मोटापा बढ़ना. इन ख़तरों को नज़रअंदाज़ ना करें.

By BBC News हिन्दी
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भारत में 2019 में एक गद्दा बनाने वाली कंपनी ने 'स्लीप इंटर्नशिप' की 20 पोस्ट के लिए इश्तेहार निकाला था. उन्हें जवाब में 1.7 लाख आवेदन मिले.

'स्लीप इंटर्नशिप' के दौरान 100 रातों तक 9 घंटे सोने की शर्त रखी गई थी. कंपनी इसके लिए प्रत्येक इंटर्न को 1 लाख रुपये देने के लिए तैयार थी.

विज्ञापन देख कर हर किसी ने सोचा, "इसमें कौन सी बड़ी बात है. मैं भी 100 दिन तक 9 घंटे सो सकता हूँ. और कर दिया अप्लाई. लेकिन इंटरव्यू के बाद पता चला ये कितना मुश्किल है."

अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो एक बार ठहर जाइए.

रिसर्च बताती है कि कोरोना के दौर में बीमारी से ठीक हुए हर 10 में से 3 मरीज़ को नींद से जुड़ी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है. महामारी के पहले भी 10 में से 3 लोग नींद से जुड़ी किसी ना किसी तरह की दिक़्क़त से जूझ रहे थे.

लेकिन नींद से जुड़ी हर दिक़्क़त बीमारी हो, ये ज़रूरी भी नहीं है.

इसलिए जानने की ज़रूरत है कब नींद न आना आपके लिए बीमारी बन सकती है और कब आपको डॉक्टर की सलाह लेने की ज़रूरत है.

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नींद के स्टेज

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाएड साइंसेस (IHBAS) के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ओम प्रकाश बताते हैं कि नींद की एक साइकल 90 मिनट की होती है. एक रात की नींद में अमूमन हम ऐसी 4-5 साइकल पूरी करते हैं.

"90 मिनट की साइकल के पहले चरण को नॉन रैपिड आई मूवमेंट (NREM) स्लीप कहते हैं. आम बोलचाल की भाषा में हम इसे गहरी नींद कहते हैं, ये दूसरे चरण के मुक़ाबले ज़्यादा लंबी होती है, तकरीबन सोने के पहले 60-70 मिनट तक ये चलती है.

दूसरे चरण को रैपिड आई मूवमेंट (REM) स्लीप कहा जाता है. इसी वक़्त में हम सपने ज़्यादा देखते हैं. अधिकतर इस समय की नींद की बातें हमें याद रह जाती है.

जब हम सो रहे होते हैं तो धीरे-धीरे एनआरईएम घटती जाती है और आरईएम बढ़ती जाती है.

जितने लोग भी नींद से जुड़ी बीमारियों की बात करते हैं, उनको इन्हीं दो चरणों से जुड़ी समस्या होती है.

जिन्हें एनआरइएम (NREM) चरण से जुड़ी समस्या होती है वो कहते हैं मुझे होश ही नहीं रहा, बहुत अच्छी नींद आई. जबकि आरइएम के चरण में जिनको दिक़्क़त होती है वो कहते हैं मैं सुबह जल्दी उठ गया, सो नहीं पाया ठीक से."

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नींद से जुड़ी समस्या, कब बन जाती है बीमारी

नींद से जुड़ी बीमारियों की बात करें तो वो कई तरह की हो सकती है- जैसे नींद ना आना, ज़्यादा सोना, नींद में खर्राटे भरना, नींद में 'टेरर एटैक' आना. कोरोना के बाद जिन लोगों को नींद से जुड़ी दिक़्क़तें आ रही हैं, अमूमन वो किसी तरह का डिस्ऑर्डर नहीं है. कुछ लोग इसके अपवाद हो सकते हैं.

डॉक्टर ओम प्रकाश कहते हैं कि दरअसल नींद में किसी तरह की परेशानी होना और उससे जुड़ी बीमारी होने में फ़र्क़ है. ठीक वैसा ही जैसे भूख लगना एक समस्या है, लेकिन उसकी वजह से जो सामने आए वही खा लेना एक डिस्ऑर्डर या बीमारी है.

सभी लोगों को महीने में तीन चार बार नींद न आने की शिकायत रहती है. ऐसी स्थिति में किसी के साथ ऐसा हो तो बीमारी नहीं कह सकते. कोरोना के बाद 10 में से क़रीब 3 लोगों को ये शिकायत हो रही है. इसका मतलब समस्या तो है पर बीमारी का रूप नहीं लिया है.

डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी, या लंग से जुड़ी बीमारी वालों में ये ज़्यादा देखी जा रही है. इसके कई दुष्प्रभाव हैं- याददाश्त घटना, फ़ैसले लेने की क्षमता कम होना, संक्रमण और मोटापा बढ़ना. इन ख़तरों को सभी जानते हैं, लेकिन नज़रअंदाज़ करते हैं.

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नींद की बीमारी के शुरुआती लक्षण

डॉक्टर ओम प्रकाश नींद की बीमारी के शुरुआती लक्षण को तीन तरीक़े से समझाते हैं.

पहला - नींद के घंटे में कमी

दूसरा - नींद की गुणवत्ता पर ध्यान

तीसरा - नींद की टाइमिंग में दिक्क़त

यहाँ ये भी ध्यान देने वाली बात है कि नींद की ज़रूरत हर आदमी को एक सी नहीं होती.

कुछ लोग दिन में 5-6 घंटे सो कर तरोताज़ा महसूस करते हैं. इन्हें 'शॉर्ट टर्म स्लीपर' कहते हैं और कुछ लोग 8-10 घंटे सोते हैं जिन्हें 'लॉन्ग टर्म स्लीपर' कहते हैं.

अगर 5-6 घंटे सोने वाले की नींद घट कर 2-3 रह गई है और 8-10 घंटे सोने वाले की नींद 5-6 घंटे रह गई है, तो नींद से जुड़ी बीमारी के ये शुरुआती लक्षण हो सकते हैं.

अगर ये समस्या 2-3 हफ़्ते तक लगातार बनी रहती है, तो ये बीमारी का शुरुआती दौर हो सकता है. इसके लिए पहले आप जनरल फिजिशियन से सलाह ले सकते हैं. अगर वो आगे आपको मनोचिकित्सक के पास जाने की सलाह देते हैं तो उनसे संपर्क किया जा सकता है.

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दूसरा लक्षण है नींद की गुणवत्ता. एक आदमी 8-10 घंटे सो रहा है, लेकिन 4-5 बार बीच में उठता है, तो उसे अच्छी नींद न आने की शिकायत होती है. ये भी एक इशारा है कि दिक़्क़त शुरुआती दौर में है.

तीसरे लक्षण में दिक़्कत टाइमिंग की होती है. कुछ लोगों को समस्या होती है कि बिस्तर पर जाने के घंटों बाद नींद आती है. वो करवटें ही बदलते रह जाते हैं. इसे 'इनिशियल इनसोम्निया' कहते हैं.

कुछ लोग होते हैं जिन्हें नींद तो जल्दी आ जाती है, लेकिन बीच रात में उठ जाते हैं, ऐसे लोगों की दिक़्क़त को 'मिडिल इनसोम्निया' कहते हैं. तीसरी कैटेगरी उन लोगों की होती है, जिनकी नींद सुबह होने से कुछ देर पहले ही खुल जाती है. इन्हें 'टर्मिनल इनसोम्निया' की दिक़्क़त होती है.

इन तीनों में से किसी तरह की दिक़्क़त अगर किसी को लगातार रहती है, तो उन्हें डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

एक आसान सा तरीक़ा नींद से जुड़ी बीमारी के बारे में पता लगाने का sleephyginetest भी होता है. जिसमें चंद सवालों के जवाब देकर आप पता लगा सकते हैं कि आपका लक्षण किस तरह का है, और इसी में बीमारी का इलाज छुपा है.

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कोरोना के बाद नींद की दिक़्क़त

चेन्नई की इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ की निदेशक डॉक्टर पूर्णा चंद्रिका कहती हैं, "कोरोना के दौर में लोगों का लाइफ़स्टाइल बहुत बदल गया है. बीमार होने पर अचानक से आइसोलेशन में रहना पड़ता है, कभी अस्पताल में जाना पड़ता है. जो बीमार नहीं हैं उनका भी बाहर जाना, लोगों से मिलना, शारीरिक श्रम बुरी तरह प्रभावित है. सोशल मीडिया पर निर्भरता बढ़ती जा रही है."

"तरह-तरह की अनिश्चितताओं से लोग जूझ रहे हैं. लोग दिन भर घर पर रहते हैं, इस वजह से उनका डेली रुटीन गड़बड़ हो गया है. इन सबका असर लोगों की नींद और स्लीप साइकल पर पड़ रहा है. इसलिए ये परेशानी अब आम सी बनती जा रही है. नींद न आना अपने आप में एक बीमारी हो सकती है या दूसरी बीमारी का लक्षण भी हो सकता है."

कोरोना से ठीक होने के बाद लोगों में ये दिक़्क़तें ज़्यादा देखने को मिल रही हैं. ऐसे लोगों में डॉक्टर भी शामिल हैं.

साल 2020 में मेडिकल जर्नल द लैंसेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, चीन में कोरोना के दौरान 35 साल या उससे कुछ साल अध‍िक उम्र के 7236 लोगों के स्‍लीप पैटर्न का अध्ययन किया गया. इनमें से एक तिहाई लोग हेल्‍थ केयर वर्कर्स थे.

इस अध्ययन में पाया गया कि 35 फ़ीसदी लोगों में जनरल एंग्ज़ाइटी और 20 फ़ीसद में डिप्रेशन यानी अवसाद और 18 फ़ीसद ख़राब नींद के लक्षण पाए गए. इसकी वजह थी - लोग कोरोना महामारी के बारे अधिक चिंतित थे.

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क्या है इलाज

डॉक्टर पूर्णा और डॉक्टर ओम प्रकाश दोनों स्लीप हाइजीन अच्छे से अपनाने की सलाह देते हैं. स्लीप हाइजीन का मतलब है कि सोने के पहले या सोते समय किन नियमों का पालन करते हैं. अच्छी नींद के लिए नीचे दिए गए टिप्स अपनाएँ:

  • सोने से दो घंटे पहले चाय- कॉफ़ी न पिएं.
  • भारी भोजन न करें.
  • सोने से पहले स्मोकिंग तो बिल्कुल ही ना करें.
  • सोने के लिए एक बिस्तर और जगह तय रखें, वहाँ खाना, पढ़ना, खेलने जैसा काम ना करें.
  • दिन में छोटी सी झपकी भी लेनी हो तो अपने बिस्तर पर ना लें.
  • सोने से दो घंटे पहले स्क्रीन टाइम बिल्कुल न रखें.
  • बार बार अगर बाथरूम जाने की दिक़्क़त आती है तो आप डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें.
  • अगर आपको शुगर या ब्लड प्रेशर की शिकायत है तो वो दवाएँ समय पर ज़रूर लें
  • रोज़मर्रा के कामकाज में एक तय रूटीन का पालन करें, जिसमें सोने, उठने और व्यायाम का समय निर्धारित हो.

इन तरीकों को अपनाने से बहुत हद तक आपकी समस्या दूर हो सकती है.

लेकिन अगर इसके बाद भी समस्या बीमारी का रूप लेती है तो डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें. डॉक्टर पूर्णा नींद आने के लिए 'ड्रग कोर्स' के इस्तेमाल की सलाह भी देती हैं. ये कोर्स 2-3 हफ़्ते के लिए होता है, जिसमें कुछ दवाइयां दी जाती है. लेकिन घबराइए नहीं, ये नींद की गोलियां ऐसी नहीं होतीं जो आपको 'एडिक्ट' बना दें. ये 2-3 हफ़्ते खाने के बाद आप पूरी तरह ठीक हो सकते हैं.

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English summary
patients recovering from coronavirus complaining of Sleep Disorders
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