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मेंटल हेल्थ चैटबॉट: मानसिक रोग इंसान नहीं समझ पाते, मशीनें कैसे समझेंगी?

मेंटल हेल्थ से जुड़े लोगों की मदद के लिए ऐसे ऐप बनाए जा रहे हैं जो बिलकुल इंसानों की तरह आपसे बात कर सकेंगे.

By शुभम किशोर
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मेंटल हेल्थ चैटबॉट: मानसिक रोग इंसान नहीं समझ पाते, मशीनें कैसे समझेंगी?

"हैलो, तुम कैसे हो?"

"बिल्कुल ख़राब."

"लगता है आज तुम्हारा दिन अच्छा नहीं ग़ुज़रा है. मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं. बताओ क्या हुआ?"

"कुछ नहीं बस ऑफ़िस का स्ट्रेस"

"लगता है बहुत बिज़ी दिन था, ऐसा क्या हुआ बताओ..."

ये देखकर आपको लगेगा कि दो इंसान आपस में बात कर रहे हैं लेकिन आप ग़लत समझ रहे हैं. ये बातचीत एक इंसान यानी मेरे और एक आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंट चैटबॉट के बीच हुई लंबी बातचीत (चैट) का हिस्सा है.

मेंटल हेल्थ चैटबॉट
Getty Images
मेंटल हेल्थ चैटबॉट

चैटबॉट की मदद

एक मेंटल हेल्थ मोबाइल ऐप पर मौजूद इस चैटबॉट को तनाव से ग़ुज़र रहे लोगों से बात करने के लिए बनाया गया है.

इसे बनानी वाली कंपनी का दावा है कि ये बॉट एंग्ज़ाइटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों की तकलीफ़ कम करने में मदद कर सकता है.

मेंटल हेल्थ से जुड़े लोगों की मदद के लिए कई कंपनियां ऐसे ऐप पर काम कर रही हैं, जो परेशानी के समय आपसे बात कर सकें.

पूरी बातचीत के दौरान चैटबॉट को किसी तरह के इंसानी मदद की जरूरत नहीं होती लेकिन कोशिश की जाती है ये बॉट बिल्कुल इंसानों की तरह आपसे बात करें.

मेंटल हेल्थ चैटबॉट को समझने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि चैटबॉट कैसे काम करते हैं.

क्या हैं आर्टिफ़िशयल इंटेलीजेंट चैटबॉट

चैटबॉट शब्द का अर्थ है चैट करने वाला एक बॉट - यानी रोबोट जो आपसे बातें कर सकता है.

लेकिन हमारे दिमाग में रोबोट की जैसी धारना है, ये वैसा नहीं होता. ये कोई दिखने या छू सकने वाली मशीन नहीं है.

ये एक कंप्यूटर प्रोग्राम है जो किसी मोबाइल एप्लीकेशन पर मौजूद होता है.

इन्हें इस तरीके से प्रोग्राम किया गया जाता है कि आपकी बातों को समझ सके और उसका जवाब दे सके.

आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस टेक्नॉलॉजी की मदद से ये ख़ुद से सीखता है और अपने आप को बेहतर बनाता है.

मेंटल हेल्थ चैटबॉट: मानसिक रोग इंसान नहीं समझ पाते, मशीनें कैसे समझेंगी?

कस्टमर केयर

किसी फूड ऐप पर या कस्टमर केयर से जुड़ी वेबसाइट पर ऐसे बॉट का इस्तेमाल आम है.

आमतौर पर पूछे जाने वाले सवालों का जवाब बॉट ही दे देते हैं, जैसे कि ऑर्डर का अपडेट, उससे जुड़ी शिकायतें और रिफंड.

ऐसे बॉट ने कंपनियों का काम बहुत आसान और तेज़ कर दिया है.

लेकिन कई जटिल और नए सवालों में यह फंस जाते हैं या ये कहे उस जवाब के लिए उन्हें ट्रेन ही नहीं किया होता है और ऐसे में वो सवाल उनकी समझ से बाहर के होते हैं.

ऐसी स्थिति में इन सवालों के जवाब के लिए आपको किसी कस्टमर केयर एग्ज़ेक्यूटिव से बात करा दी जाती है.

मेंटल हेल्थ चैटबॉट: मानसिक रोग इंसान नहीं समझ पाते, मशीनें कैसे समझेंगी?

कुछ महीनों पहले जब कोरोना के कारण लॉकडाउन किया गया था तो ट्रैवल वेबसाइट पर लोग अपनी यात्राओं से जुड़े कई ऐसे सवाल पूछ रहे थे जिनके लिए ये बॉट तैयार नहीं थे. नतीजा ये हुआ कि वो जवाब नहीं दे पाए.

कस्टमर केयर एग्ज़ेक्यूटिव भी इतनी संख्या में नहीं थे कि सबकी परेशानियां सुन सके.

इसके कारण कई लोगों के सवालों के जवाब कई दिनों तक नहीं मिले और इसका नतीजा ये हुआ कि कई रिफंड महीनों तक फंसे रहें.

अब सवाल यह है कि चैटबॉट जब हर परिस्थिति के लिए तैयार नहीं होते तो उनका मानसिक तौर पर परेशान लोगों से बात करना कितना सही है?

मेंटल हेल्थ के क्षेत्र में चैटबॉट का इस्तेमाल

मेंटल हेल्थ के क्षेत्र में बॉट का इस्तेमाल अभी शुरुआती चरणों में हैं. इन्हें बनाने वाले लोगों का कहना है कि ये इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.

दावा है कि बॉट लोगों को अपनी बात आसानी से रखने में मदद करते हैं.

आमतौर पर मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों के साथ एक बड़ी समस्या होती है कि वो अपनी बात किसी से कह नहीं पाते, उन्हें लगता है कि सामने वाला व्यक्ति उनके प्रति कोई अलग राय बना लेगा.

मेंटल हेल्थ चैटबॉट
Getty Images
मेंटल हेल्थ चैटबॉट

मशीनों के साथ यह दिक्कत नहीं है, आप उन्हें कुछ भी कह सकते हैं, वो आपको लेकर कोई राय नहीं बना सकते.

उन्हें इस तरह से प्रोग्राम किया जाता है कि जब वो आपसे बात करें तो आपको लगे कि कोई आपकी बातों को ध्यान से सुन रहा है और आपको सही सलाह दे रहा है.

वायसा नाम की एक कंपनी ने ऐसा ही चैटबॉट बनाया है, उनका दावा है कि वो दुनियाभर के 17 लाख लोगों की मदद कर चुके हैं.

वायसा की को-फाउंडर जो अग्रवाल कहती हैं, "लोग एक चैटबॉट से खुलकर बात करते हैं, ख़ासकर शुरुआत में जब उन्हें इतना कॉन्फ़िडेंस नहीं होता और जब उन्हें लगता है कि सामने वाला सोचेगा कि मैं कमज़ोर हूं, मैं इतना भी नहीं संभाल सकता, यह कोई बुरा अनुभव करने वाली बात नहीं है, हर कोई झेल लेता है, मुझसे क्यों नहीं झेला जा रहा, ये सब आप चैटबॉट को बता सकते हैं,"

"एक थेरेपिस्ट को 2-3 सेशन लग जाते हैं मरीज़ को इतना कंफर्टेबल बनाने में. असल में जब आप चैटबॉट से बात करते हैं, तो आपको लगता है कि आप अपनी डायरी में लिख रहे हैं और वह डायरी आपको वापस बता रही है. आपको लगता है कि आप खुद से बात कर रहे हैं, तो जो डर होता है कि दूसरा क्या सोचेगा वो चला जाता है"

मेंटल हेल्थ चैटबॉट
Getty Images
मेंटल हेल्थ चैटबॉट

इंसान नहीं समझते, मशीनें समझेंगी?

दिल्ली के रहने वाले संदीप अरोरा डिप्रेशन से ग़ुजर चुके हैं, मेंटल हेल्थ के लिए चैटबॉट के इस्तेमाल का ख़्याल उन्हें कुछ खास पंसद नहीं आया.

वो मानते हैं कि मानसिक रोग से जुड़ी समस्याएं एक आम इंसान की समझ में नहीं आतीं, हर किसी का दिमाग एक अलग तरीके से काम करता है. इसे शुरुआत से ही सही तरीके से समझने की ज़रूरत होती है और ये सिर्फ एक थेरेपिस्ट या डॉक्टर कर सकता है.

बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, "मेरे दिमाग में यह बात हमेशा रहेगी कि मैं एक मशीन से बात कर रहा हूं, किसी इंसान से नहीं. अगर कोई इमरजेंसी है जैसे कि मेरे दिमाग में अभी कुछ ऐसा चल रहा है जिससे मैं उबर ही नहीं पा रहा, मैं अपनी नस काटने वाला हूं, तो मैं चैटबॉट को क्या लिखूंगा. अगर आप किसी इंसान से बात करेंगे तो वो आपके अंदर से कुरेद कर निकाल लेगा, आपसे लड़-झगड़ कर, नाराज़ हो कर, प्यार से समझाकर, इधर-उधर की बातें कर के वह चीज़ें निकाल लेगा. लेकिन एक चैट बॉट को मैं कभी नहीं लिखूंगा कि मुझे ख़ुद को ख़त्म करने का मन कर रहा है."

दिल्ली में रहने वाली रश्मि ने भी एक ऐसे ही बॉट से बातचीत की.

वो कहती हैं, "शुरुआत में तो मुझे सही लगा लेकिन थोड़ी देर बाद ऐसा लगने लगा कि वो मेरी बातों को नहीं समझ पा रहा, और जब वो नहीं समझ रहा था तो पुराने सवाल दोहरा रहा है."

"ये उन लोगों के लिए सही है जिन्हें थोड़ी एंग्ज़ाइटी है, लेकिन जो क्लिनिकल डिप्रेशन में हैं, उनके लिए कई बार फ़ोन को हाथ में उठाना ही बहुत मुश्किल होता है. ऐसे में ये उम्मीद करना कि वो फ़ोन उठा कर किसी एक ऐप को खोले और उससे चैट करे, ये शायद मुमकिन नहीं है."

कंपनियां भी मानती हैं कि ऐसे चैटबॉट किसी डॉक्टर की जगह नहीं ले सकते.

आत्महत्या या यौन उत्पीड़न जैसे मामले

एक चैटबॉट उन्हीं परिस्थितियों को समझ सकता है जिनके लिए उसे ट्रेन किया गया है. मानसिक रोग के साथ सबसे बड़ी समस्या यहीं है कि इसका कोई एक पैटर्न नहीं होता. हर इंसान का दिमाग अलग तरीके से काम करता है.

कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं कि व्यक्ति आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं. ऐसे में चैटबॉट कारगर साबित नहीं हो सकते.

साल 2018 में बीबीसी के पत्रकार ज्यॉफ़ व्हाइट ने पाया कि कुछ चैटबॉट बच्चों के उत्पीड़न से जुड़ी बातों को नहीं समझ पाए.

मेंटल हेल्थ
Science Photo Library
मेंटल हेल्थ

वायसा का चैटबॉट भी इस टेस्ट में फ़ेल हो गया था. वायसा की जो अग्रवाल बताती हैं, "हमने उसके बाद कई बदलाव किए, ऐसे किसी मामले में अब वायसा एक हेल्पलाइन्स की डीटेल देता है."

आत्महत्या जैसी बातों पर भी कई चैटबॉट हेल्पलाइन की जानकारियां देते हैं ताकि उनपर फोन कर मदद ली जा सके.

चैटबॉट अच्छे हैं या बुरे?

ज्यादातर जानकार मानते हैं कि चैटबॉट के संयमित इस्तेमाल से फ़ायदा हो सकता है.

आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस से जुड़ी कंपनी इंटीग्रेशन विज़ार्ड्स के सीईओ कुणाल किसलय कहते हैं, "ये जटिल बीमारियों के लिए नहीं हैं, लेकिन शुरुआती दौर में मानसिक परेशानियों से ग़ुजर रहे लोगों के लिए इंसानों से बात करने से ज़्यादा आसान किसी चैटबॉट से बात करना हैं"

"वो अच्छे तरीके से लोगों को इंगेज करते हैं, उनसे सकारात्मक बातें करते हैं, उनका लक्ष्य वो होता है जिसमें इंसान फ़ेल हो गया है - दोस्ती करना"

दिल्ली की रहने वाली साइकोल़ॉजिस्ट शिखा ख़ांदपुर कहती हैं कि चैटबॉट लोगों के मन से झिझक दूर कर सकता है और जरूरत के समय मौजूद रहता है.

वो कहती है, "कई बार मानसिक परेशानी से ग़ुजर रहे लोगों को उस वक़्त कोई नहीं मिलता जब उन्हें ज़रूरत होती है, चैटबॉट उन्हें उसी वक़्त अपनी बातें रखने का एक प्लैटफ़ॉर्म देता हैं."

मनोचिकित्सक पूजाशिवम जेटली मानती हैं कि इसके फ़ायदे भी हैं और नुकसान भी, "कई बार हमारे पास लोग आते हैं उन्हें बात करने में दिक्कत होती है. चैटबॉट झिझक को कम कर सकता है. लेकिन कई बार हमें लगता है कि इस ऐप पर हमनें बात कर ली और हमें अच्छा महसूस होने लगता है. कई बार लोग उस थोड़ी सी राहत को पाकर एक बड़ी चीज़ को नज़रअंदाज़ भी कर सकते हैं."

टेक्नॉलॉजी में लगातार बदलाव आ रहे हैं, कई नई कंपनियां मेंटल हेल्थ चैटबॉट को लेकर नए प्रयोग कर रही हैं, तो क्या ये कभी इंसानों की जगह ले सकते हैं?

इसके जवाब में जेटली कहती हैं, " जहां तक मेंटल हेल्थ या थेरेपी का सवाल है, लोगों से बात करना और उन्हें छूने से बहुत फ़र्क पड़ता है. बिना बोले भी हम बहुत कुछ कहते है जिसका असर होता है. चैटबॉट एक शुरुआत हो सकती है, ये एक असिस्टेंट हो सकते हैं, लेकिन इंसानों की जगह नहीं ले सकते."

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चैटबॉट के अच्छे या ख़राब होने को लेकर कई रिसर्च हो रहे हैं, लोगों की राय इनपर बंटी हुई है, लेकिन अगर आप किसी चैटबॉट या कोई स्वास्थ्य से जुड़ी आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंट मेडिकल ऐप का इस्तेमाल करते हैं, तो इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि आमतौर पर वो किसी मेडिकल संस्था से प्रमाणित नहीं होते. उनकी दी गई जानकारियों के हर वक्त सही होने का कोई प्रमाण नहीं है.

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English summary
Mental Health Chatbot: Humans do not understand mental diseases, how will machine?
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