कोरोना वायरस के बारे में बच्चों को कैसे समझाएं
दुनियाभर में जैसे-जैसे कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे इस वायरस से जुड़ी सही और ग़लत जानकारियां भी लोगों तक पहुंच रही हैं. यही जानकारियां आपके बच्चे तक भी पहुंच रही हैं. हो सकता है कि आप सही और ग़लत जानकारी के अंतर को समझ लें लेकिन बच्चे के लिए ऐसा करना मुश्किल होता है. साथ ही तरह-तरह की सनसनी वाली ख़बरों से मीडिया और सोशल मीडिया भरे पड़े हैं.
दुनियाभर में जैसे-जैसे कोरोना वायरस के मरीज़ों की संख्या बढ़ रही है वैसे-वैसे इस वायरस से जुड़ी सही और ग़लत जानकारियां भी लोगों तक पहुंच रही हैं.
यही जानकारियां आपके बच्चे तक भी पहुंच रही हैं. हो सकता है कि आप सही और ग़लत जानकारी के अंतर को समझ लें लेकिन बच्चे के लिए ऐसा करना मुश्किल होता है.
साथ ही तरह-तरह की सनसनी वाली ख़बरों से मीडिया और सोशल मीडिया भरे पड़े हैं. ये आपके बच्चे को डरा भी सकते हैं.
इसलिए बच्चे को इस तरह जानकारी दें कि वो बिना डरे सही बातें समझ जाए. ये आप कैसे कर सकते हैं आइए जानते हैं-
बच्चे ये सवाल पूछ सकते हैं
''क्या मैं बीमार पड़ सकता हूं?''
''क्या मेरा स्कूल बंद हो जाएगा?''
''क्या दादा या दादी मर जाएंगे?''
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डरने से बचाएं
पैरेंटिंग पर एक किताब 'व्हाट्स माय चाइल्ड थिंकिंग' के बारे में कंसल्टेंट और क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक अंगहारात रडकिन कहती हैं कि बच्चों से बात करते हुए आपकी आवाज़ की टोन बहुत मायने रखती है.
अंगहारात रडकिन कहती हैं, ''एक हद तक हमें डरावनी कहानियां पसंद हैं लेकिन हम उन्हें बहुत ज़्यादा नहीं सुनना चाहते. अपने बच्चे को कोरोना वायरस के ख़तरे से बचाने के लिए उसे आसान शब्दों में प्यार से बताएं कि वायरस कैसे फैलता है और इसके ख़तरे को कैसे कम कर सकते हैं जैसे कि हाथ धोते हुए प्यारे-प्यारे बहुत सारे बुलबुलों के ज़रिए.''
कोविड-19 कोरोना वायरस से होने वाली एक श्वसन संबंधी बीमारी है जिसमें बुखार होता है और फिर सूखी खांसी आती है. इसमें जुक़ाम भी हो सकता है. क़रीब एक हफ़्ते बाद, सांस लेने में परेशानी होने लगती है और कुछ मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती भी कराना पड़ता है.
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डॉक्टर्स के मुताबिक़ कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के खांसते या छींकते वक़्ते निकली बूंदों से फैलता है.
डॉक्टर रडकिन कहती हैं कि बच्चों से इस बारे में बात करना बहुत ज़रूरी है कि वो इससे कैसे बच सकते हैं. जैसे कि खांसते या छींकने वक़्त रुमाल या टिशु का इस्तेमाल करें और फिर उसे कूड़ेदान में ही फेंके. उन्हें साफ-सफ़ाई रखने के बारे में बता सकते हैं.
डॉक्टर बताती हैं, ''जब कोरोना वायरस के बारे में बच्चे से बातचीत ख़त्म हो जाए तो तुरंत किसी ऐसे टॉपिक पर बात शुरू कर दें जो हल्का-फुल्का हो. जैसे उसे लंच में क्या खाना है या शाम को होने वाले मैच में कौन जीतेगा.''
अपनी जानकारी पूरी रखें
माता-पिता के सामने अक्सर इस तरह की स्थितियां आती रहती हैं जिनमें बच्चों के सवालों के जवाब देना मुश्किल होता है. जैसे युद्ध, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, सेक्स एजुकेशन आदि. माता-पिता पूरी कोशिश करते हैं कि बच्चे को आसान तरीक़े से इन बातों को समझा सकें.
डॉक्टर रडकिन कहती हैं कि जो बच्चे किशोर होने वाले हैं वो जोख़िम का आकलन करने की अपनी क्षमता को विकसित कर रहे हैं. इसलिए ये जानना ज़रूरी है कि वो कोरोना वायरस को लेकर कितने परेशान हैं.
वह कहती हैं, ''इस बात के लिए स्पष्ट रहें कि आपके पास सभी जवाब नहीं हैं लेकिन जो लोग हमारे लिए फ़ैसले ले रहे हैं उनके पास ज़रूरत के मुताबिक़ सभी जानकारियां हैं.''
''माता-पिता याद रखें कि कोरोना वायरस के बारे में बच्चे से बात करने से पहले जितना हो सके अपनी जानकारी पूरी रखें. सरकार द्वारा जारी की जा रही सलाह पर नज़र रखें.''
अगर किसी लड़का या लड़की को कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाता है तो माता-पिता को सलाह दी जाती है कि वो उनके स्वास्थ्य को लेकर किसी भी तरह का जोख़िम न लें.
बच्चों की कम्यूनिकेशन चैरिटी 'आई कैन' में स्पीच लैंग्वेज थेरेपिस्ट डॉक्टर जॉन गिलमार्टिन का कहना है, ''आप बच्चों से कह सकते हैं कि इसमें थोड़ा दर्द महसूस होता है. इसलिए ये उतना भयानक नहीं है जितना वो इसे समझते हैं.''
कोरोना वायरस को लेकर सामने आई जानकारियों में ये कहा जा रहा है कि इससे बुज़ुर्गों और पहले से कोई बीमारी से ग्रस्त लोगों को ज़्यादा ख़तरा है. ऐसे में बच्चों को अपने दोस्तों और घर के बुज़ुर्गों को लेकर चिंता हो सकती है.
डॉक्टर रडकिन सलाह देती हैं कि इस पर ईमानदारी से जवाब दें कि आख़िरकार ''सभी को इस दुनिया से जाना है लेकिन इसकी आशंका तब तक नहीं जब तक हम बहुत-बहुत बूढ़े नहीं हो जाते.''
आसान भाषा का इस्तेमाल
डॉक्टर अंगहारात रडकिन ये भी कहती हैं, ''हमें बच्चों से ये सभी बातें मुस्कुराहट और हंसी-मज़ाक के साथ करनी चाहिए या जितना हो सके बातचीत को हल्का रखना चाहिए. अपने बच्चों को विश्वास दिलाएं कि आप और घर के बुज़ुर्ग पूरी तरह ठीक हैं. साथ ही आप ख़ुद को और परिवार को सेहतमंद व सुरक्षित रखने के लिए हर कोशिश करते रहेंगे.''
बच्चों में किसी भी परेशानी या कठिन हालात से निपटने की क्षमता उम्र बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है. इसलिए जिस तरह आप तीन साल के बच्चे से बात करते हैं उस तरह एक किशोर बच्चे नहीं कर सकते. इसलिए बच्चे की उम्र के अनुसार अपनी बातों और टोन में बदलाव करें.
लेकिन, डॉक्टर गिलमार्टिन का सुझाव है कि हर उम्र के बच्चे के लिए आसान भाषा का इस्तेमाल करें और उसे बहुत से सवाल पूछने दें ताकि उसे महसूस हो कि उसे सुना जा रहा है.
अपने बच्चे के लिए सूचना का सबसे अच्छा स्रोत बनें और उसे सोशल मीडिया या अन्य स्रोतों से मिल रही है जानकारी पर ध्यान दें.