फ़ेसबुक और गूगल मानवाधिकार को एमनेस्टी ने बताया मानवाधिकार के लिए ख़तरा
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गूगल और फ़ेसबुक के बिज़नेस मॉडल को मानवधिकारों के लिए ख़तरा बताया है. एमनेस्टी ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इन टेक कंपनियों द्वारा की जाने वाली 'व्यापक निगरानी' को लेकर चिंता जताई गई है. मानवाधिकार संगठन ने दावा किया है कि
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले अंतरराष्ट्रीय संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गूगल और फ़ेसबुक के बिज़नेस मॉडल को मानवधिकारों के लिए ख़तरा बताया है.
एमनेस्टी ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इन टेक कंपनियों द्वारा की जाने वाली 'व्यापक निगरानी' को लेकर चिंता जताई गई है. मानवाधिकार संगठन ने दावा किया है कि इनके प्लेटफ़ॉर्म बड़े पैमाने पर 'मानवाधिकारों को नुक़सान पहुंचाने वाले हालात पैदा कर रहे हैं.'
फ़ेसबुक ने इस रिपोर्ट से असहमति जताई है. कंपनी का कहना है कि वह मानविधाकारों को सशक्त कर रही है. वहीं गूगल का कहना है कि उसे लोगों के भरोसे की कद्र है और यूज़र्स के डेटा की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी का भी अहसास है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि गूगल पूरी दुनिया में 90 फ़ीसदी से अधिक इस्तेमाल होने वाला सर्ज इंजन है और दुनिया की एक-तिहाई आबादी हर रोज़ फ़ेसबुक इस्तेमाल करती है.
एमनेस्टी के महासचिव कूम नायडू के मुताबिक़, "अरबों लोगों के पास फ़ेसबुक और गूगल की निर्धारित शर्तों वाले इस पब्लिक स्पेस को इस्तेमाल करने के अलावा और कोई व्यावहारिक विकल्प नहीं है."
क्या कहना है एमनेस्टी का
58 पन्नों की एक रिपोर्ट में एमनेस्टी ने गूगल और फ़ेसबुक के बिज़नस मॉडल को "अरबों लोगों की विश्वव्यापी निगरानी" बताया है. मानवाधिकार संगठन ने यह भी कहा है कि इन टेक कंपनियों के आधारभूत बिज़नस मॉडल में 'मौलिक बदलाव' लाए जाने की ज़रूरत है.
एमनेस्टी का कहना है कि फ़ेसबुक और गूगल भले ही अपनी सेवाओं के बदले कोई फ़ीस नहीं लेतीं मगर उपभोक्ताओं को अपने पर्सनल डेटा के रूप में इसकी क़ीमत चुकानी पड़ती है.
इसके लिए रिपोर्ट में कैम्ब्रिज एनालिटिका प्रकरण का उदाहरण दिया गया है और इसे इस बात के सबूत के तौर पर पेश किया गया है कि किस तरह से यूज़र्स के पर्सनल डेटा को उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जा सकता है.
एमनेस्टी ने सरकारों से अपील की है उन्हें डेटा की सुरक्षा संबंधित क़ानून बनाकर और बड़ी टेक कंपनियों का प्रभावी ढंग से नियम करके इनके 'सर्विलांस आधारित बिज़नेस मॉडल' की पड़ताल करके सुधार करने चाहिए.
फ़ेसबुक और गूगल ने क्या कहा
एमनेस्टी के दावों पर फ़ेसबुक का कहना है कि उसका बिज़नस मॉडल विज्ञापनों पर आधारित है और वह लोगों को अपनी आवाज़ उठाने और एकजुट होने का मौक़ा देकर मानवाधिकारों को बढ़ावा देता है.
रिपोर्ट में ही फ़ेसबुक के प्राइवेसी एंड पब्लिक पॉलिसी के डायरेक्टर स्टीव सैटरफ़ील्ड का पक्ष भी छापा गया है. इसमें सैटरफ़ील्ड ने 10 बिंदुओं में अपनी बात कही है.
वह कहते हैं, "हम पूरे सम्मान के साथ आपके इस निष्कर्ष से असहमत हैं कि हमारा काम मानवाधिकार के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है."
इसके अलावा टेक्नॉलजी कवर करने वाली वेबसाइट एनगैजट के मुताबिक़, फ़ेसबुक के प्रवक्ता ने कहा है, "हम एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट से अहसमत हैं. फ़ेसबुक निजता की रक्षा करते हुए पूरी दुनिया के लोगों को जोड़ती है. कम विकसित देशों में फ़्री बेसिक्स जैसे टूल्स के माध्यम से यह किया जा रहा है. हमारा बिज़नेस मॉडल एमनेस्टी इंटरनैशनल की तरह फ़ेसबुक पर विज्ञापन चलाकर अपने समर्थकों तक पहुंचने, चंदा इकट्ठा करने हैं और अपने मिशन को आगे बढ़ाने वाले समूह हैं."
उधर गूगल का कहना है कि वह अपने यूज़र्स की निजता की रक्षा करता है और इस दिशा में और भी काम कर रहा है. टेक पोर्टल 'द वर्ज' ने गूगल के प्रवक्ता से ईमेल के माध्यम से मिला जवाब प्रकाशित किया है.
इसमें लिखा गया है, "हम जानते हैं कि लोग अपनी सूचनाओं को लेकर हमपर भरोसा करते हैं और इसकी रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है. पिछले 18 महीनों में हमने काफ़ी अहम बदलाव किए हैं और ऐसे टूल बनाए हैं जिससे लोग अपनी सूचनाओं पर नियंत्रण हासिल कर सकें."