क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

क्या फ़ोन सच में हमारी निजी बातचीत सुनते हैं?

अक्सर लोग दावा करते हैं कि वे जिन प्रोडक्ट्स के बारे में अपने परिवार या दोस्तों से बातें किया करते हैं, उनसे जुड़े विज्ञापन उनके मोबाइल पर आते हैं. लोग ये भी दावा करते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनका मोबाइल उनकी निजी बातचीत को सुन रहा होता है. एक मोबाइल सुरक्षा कंपनी ने इन लोकप्रिय दावों, जिसे अक्सर लोग साज़िश करार देते हैं, की पड़ताल की.

By जॉय टाइडी
Google Oneindia News
फोन पर बातचीत करती महिला
Getty Images
फोन पर बातचीत करती महिला

अक्सर लोग दावा करते हैं कि वे जिन प्रोडक्ट्स के बारे में अपने परिवार या दोस्तों से बातें किया करते हैं, उनसे जुड़े विज्ञापन उनके मोबाइल पर आते हैं.

लोग ये भी दावा करते हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनका मोबाइल उनकी निजी बातचीत को सुन रहा होता है.

एक मोबाइल सुरक्षा कंपनी ने इन लोकप्रिय दावों, जिसे अक्सर लोग साज़िश करार देते हैं, की पड़ताल की.

कंपनी ने पता लगाने की कोशिश की कि क्या वास्तव में बड़ी टेक कंपनियां हमारी बातचीत सुन रही हैं?

सोशल मीडिया पर भी इससे जुड़े पोस्ट अक्सर देखने को मिलते हैं, जिसमें लोग दावा करते हैं कि फ़ेसबुक और गूगल जैसी कंपनियां उनकी जासूसी कर रही है ताकि उनकी व्यक्तिगत ज़रूरतों के हिसाब से उन्हें संबंधित विज्ञापन दिखाया जा सके.

हाल के महीनों में सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें प्रोडक्ट्स के बारे में लोग बात कर रहे होते हैं और फिर उन्हीं प्रोडक्ट्स के विज्ञापन ऑनलाइन दिखाई देते हैं.

ये भी पढ़ें: सोच नहीं सकते कि स्मार्ट फ़ोन कितना ख़तरनाक है

फ़ोन पर बातचीत
Getty Images
फ़ोन पर बातचीत

सच जानने के लिए हुआ अध्यययन

मोबाइल सुरक्षा कंपनी वांडेरा के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने इसकी सच्चाई पता करने के लिए एक ऑनलाइन अध्ययन किया और पाया कि ये दावे बिल्कुल ग़लत हैं कि आपका फ़ोन और ऐप आपकी निजी बातचीत को सुन रहा है.

शोधकर्ताओं ने दो मोबाइल फ़ोन लिए, पहला सैमसंग और दूसरा आईफोन.

इन दोनों फोन को उन्होंने एक "ऑडियो रूम" में रख दिया, जहां 30 मिनट तक लगातार कुत्ते और बिल्ली के खाने से जुड़े ऑडियो विज्ञापन चलाए.

इसके अलावा, एक दूसरे शांत कमरे में दो एक जैसे फोन फोन रखे गए.

सुरक्षा विशेषज्ञों ने इन फोन में इंस्टॉल फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, क्रोम, स्नैपचैट, यूट्यूब और अमेज़ॉन को सभी परमिशन दिए ताकि वे ऑडियो, इंटरनेट, कैमरा, गैलरी का इस्तेमाल कर सकें.

इसके बाद उन्होंने सभी एप प्लैटफॉर्म और वेबपेज पर पालतू जानवरों के खाने से जुड़े विज्ञापन सर्च किए और देखे. इस दौरान उन्होंने फ़ोन की बैटरी और डेटा की खपत का भी विश्लेषण किया.

ये भी पढ़ें: नमो ऐप को लेकर सोशल मीडिया पर क्यों छिड़ी बहस?

फ़ोन पर बातचीत
Getty Images
फ़ोन पर बातचीत

अध्ययन में क्या पता चला?

उन्होंने इस प्रयोग को तीन दिनों तक एक ही समय पर दोहराया और पाया कि "ऑडियो रूम" में रखे फ़ोन पर पालतू जानवर के खाने से जुड़े कोई भी विज्ञापन नहीं दिखाए गए और न ही बैटरी और डेटा की खपत ज़्यादा हुई.

दोनों कमरों में फोन पर देखे जाने वाले विज्ञापन समान थे. सभी फोन के डेटा ट्रांसफर को रिकॉर्ड किया गया और उसकी तुलना वर्चुअल असिस्टेंट ऐप जैसे सिरी और गूगल असिस्टेंट के इस्तेमाल किए गए डेटा से की गई.

वांडेरा के सिस्टम इंजीनियर जेम्स मैक ने कहा, "हम लोगों ने पाया कि 30 मिनट में जितना डेटा वर्चुअल असिस्टेंट एप में खर्च हुआ, उससे कहीं कम खर्च फ़ेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम, क्रोम, स्नैपचैट, यूट्यूब और अमेज़ॉन पर हुआ. इससे यह पता चला कि ये एप लगातार ऑडियो रिकॉर्डिंग नहीं कर रहे थे और न ही उसे क्लाउड पर अपलोड कर रहे थे."

उन्होंने कहा, "अगर ये कंपनियां हमारी जासूसी कर रही होतीं तो हम उम्मीद कर रहे थे कि इनका डेटा उपयोग वर्चुअल असिस्टेंट ऐप के डेटा खपत से ज़्यादा होता."

ये भी पढ़ें: फ़ेसबुक के चेयरमैन का पद 'मुश्किल' से बचा पाए ज़करबर्ग

मोबाइल फोन की जासूसी
Getty Images
मोबाइल फोन की जासूसी

कंपनियां क्या कहती हैं?

टेक कंपनियां वर्षों से इन दावों को ख़ारिज करती रही हैं कि वो हमारी जासूसी के लिए हमारे मोबाइल फ़ोन में लगे माइक्रोफ़ोन का इस्तेमाल करते हैं.

पिछले साल फ़ेसबुक प्रमुख मार्क ज़करबर्ग ने अमरीकी संसद में अपने बयान में जासूसी के आरोपों को ख़ारिज किया था.

हालांकि लोगों का इन कंपनियों के प्रति अविश्वास बढ़ा है और कई यूजर्स को अब भी लगता है कि उनके साथ जासूसी हो रही है.

फ़ोन पर बातचीत
Getty Images
फ़ोन पर बातचीत

अध्ययन में एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि शांत कमरे में रखे फोन के अधिकांश एंड्रॉइड ऐप ने "ऑडियो रूम" के आईफोन ऐप की तुलना में अधिक डेटा इस्तेमाल किया था.

अध्ययन में जो बातें सामने आई हैं, उसके आधार पर कंपनी के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एल्डर टुवे ने कहा कि उन्हें इस बात के कोई सबूत नहीं मिले कि ये ऐप ऐसा कुछ रहे हैं. "हो सकता है कि जासूसी दूसरे तरीकों से की जा रही हो, जिसके बारे में हम नहीं जानते, लेकिन मैं कहूंगा कि इसकी आशंका बहुत कम है."

ये भी पढ़ें:आप जानते हैं फ़ेसबुक आपको कैसे 'बेच' रहा है!

सोशल मीडिया
Press Association
सोशल मीडिया

अभी तक की पड़ताल से जो भी नतीजे सामने आए हैं, वो सूचना सुरक्षा उद्योग के लोगों को नहीं चौंकाएंगे. क्योंकि उन्हें बरसों से यह सच पता है कि बड़ी टेक कंपनियों को अपने ग्राहकों के बारे में पहले से ही इतना कुछ पता होता है कि उन्हें लोगों की निजी बातचीत सुनने की ज़रूरत ही नहीं है.

सच्चाई ये है कि विज्ञापन देने वाली कंपनियां मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए अत्याधुनिक तरीके अपनाती हैं.

मिसाल के तौर पर लोकेशन डेटा, ब्राउज़िंग हिस्ट्री और पिक्सल्स को ट्रैक करके इस बारे में पर्याप्त जानकारी पाई जा सकती है कि मोबाइल फ़ोन यूज़र क्या खरीदने के बारे में सोच रहा है.

विज्ञापन देने वाली कंपनियां सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों के दोस्तों तक पहुंच सकती हैं और ये अंदाज़ा लगा सकती हैं कि आप किन चीज़ों में दिलचस्पी रखते हैं. इस तरह की तकनीक दिन प्रतिदिन दिन बेहतर हो रही है.

सोटेरिज़ दमित्रेयु लंदन के इंपीरियल कॉलेज में मोबाइल विज्ञापन और सुरक्षा विशेषज्ञ हैं.

वो कहते हैं, "जो विज्ञापन आप अपने फ़ोन पर देखते हैं वो कंपनियों के पास पहले से मौजूद डेटा का नतीजा होते हैं. 'मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम' इतना ताकतवर होता है कि कंपनियों को आपसे पहले पता चल जाता है कि आप किस प्रोडक्ट में दिलचस्पी लेने वाले हैं."

ये भी पढ़ें:फ़ेसबुक कॉन्टैक्ट नंबर ही नहीं आपके निजी मैसेज भी पढ़ता है!

फ़ोन हैकिंग
Getty Images
फ़ोन हैकिंग

हालांकि ऐसी घटनाएं भी ज़रूर हुई हैं जब पाया गया कि कुछ ऐप यूज़र्स की ऐक्टिविटी विज्ञापन के मक़सद से रिकॉर्ड कर रहे हैं.

पिछले साल जून में अमरीका की नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोधर्कताओं ने दुनिया भर के अलग-अलग ऐंड्रॉइड ऐप स्टोर के 17,000 मोबाइल फ़ोन टेस्ट किए.

शोधकर्ताओं को ऐसा तो कोई सबूत नहीं मिला जिसमें यूज़र्स की आपसी बातें सुनी जा रही हों लेकिन उन्हें कुछ छोटे ऐप ज़रूर मिले जो मोबाइल यूज़र के निजी स्क्रीनशॉट और वीडियो तीसरे पक्ष को भेज रहे थे.

हालांकि ये भी 'डेवलपमेंट' के मक़सद से किया गया था, विज्ञापन के मक़सद से नहीं.

शोधकर्ताओं की टीम ने ये भी स्वीकार किया कि कुछ सरकारी और ख़ुफ़िया विभाग भी अहम पदों पर काम करने वाले लोगों के मोबाइल फ़ोन को जासूसी के लिए निशाना बनाते हैं.

पिछले साल मई में वॉट्सऐप ने माना था कि हैकर इसके ज़रिये लोगों के मोबाइल फ़ोन में जासूसी के मक़सद से सॉफ़्टवेयर इंस्टॉल करने में कामयाब रहे थे.

फ़ेसबुक के स्वामित्व वाले वॉट्सऐप ने बताया था कि हैकरों ने चुनिंदा लोगों के अकाउंट को निशाना बनाया था. हालांकि इसके बाद से इस सुरक्षा मसले को हल कर लिया गया था.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Do phones really listen to our private conversations?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X