कोविड वैक्सीन को क्या टैबलेट की तरह खाया जा सकेगा?
अभी तक कोविड से लड़ने वाली वैक्सीन इंजेक्शन के जरिए दी जाती है. लेकिन नई तकनीक भविष्य में टीकाकरण को बेहद आसान कर सकती है.
अभी तक कोविड से लड़ने वाली वैक्सीन इंजेक्शन के जरिए दी जाती है. लेकिन भविष्य में ये वैक्सीन इनहेलर या यहां तक की टैबलेट के ज़रिए भी दी जा सकेंगी.
दक्षिणी स्वीडन के सबसे बड़े साइंस पार्कों में से एक 'मेडिकॉन विलेज' की एक हवादार और सेफद रंग में पुती लैब में कैमिस्ट इनगेमो एंडरसन के पास एक पतला प्लास्टिक इनहेलर है जो एक माचिस की डिब्बी के बराबर है.
उनकी टीम को उम्मीद है कि ये छोटा सा उपकरण कोविड के ख़िलाफ़ लड़ाई में बड़ी भूमिका निभा सकता है. इसके ज़रिए भविष्य में बनने वाली वैक्सीन को पाउडर के रूप में घर में ही लिया जा सकेगा.
आमतौर पर अस्थमा के मरीज़ों के लिए इनहेलर बनानी वाली कंपनी के सीईओ जोहान बावोर्ग कहते हैं, "ये आसानी से बन सकता है और ये काफ़ी सस्ता भी है."
"आपको बस छोटी सी प्लास्टिक स्लिप हटानी है और फिर वैक्सीन इनहेलर एक्टिव हो जाएगा. आप इसे मुंह में लगाकर गहरी सांस लेकर वैक्सीन ले सकते हैं."
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पाउडरनुमा वैक्सीन
स्टॉकहोम की इम्यूनोलॉजी रिसर्च स्टार्ट अप 'आईएसआर' ने एक सूखी पाउडरनुमा वैक्सीन बनाई है. आइकोनॉवो नाम की इस कंपनी ने आईएसआर के साथ साझेदारी की है.
इस वैक्सीन में कोविड-19 वायरस प्रोटीन का इस्तेमाल किया गया है जो चालीस डिग्री सेल्सियस तापमान तक बर्दाश्त कर सकता है. वहीं फ़ाइज़र, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन आरएनए और डीएनए टेक्नॉलॉजी पर आधारित हैं.
अभी तक कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता प्राप्त जो भी वैक्सीन बनीं हैं वो तरल रूप में हैं. इन्हें शीशियों में -70 डिग्री सेल्सियस तक तापमान पर रखना होता है. इन्हें रखने के लिए डीप फ्रीजरों की ज़रूरत पड़ती है जिन्हें कोल्ड चेन कहा जाता है.
लेकिन इस पाउडर वैक्सीन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इन्हें बिना कोल्ड चेन के सामान्य तापमान पर भी वितरित किया जा सकता है.
'आईएसआर' की संस्थापक ओला विनक्विस्ट कहती हैं कि इस वैक्सीन को बिना स्वास्थ्यकर्मी की मदद के भी लिया जा सकता है.
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टीकाकरण में मदद
ओला स्वीडन की प्रमुख मेडिकल यूनिवर्सिटी कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में इम्यूनोलॉजी की प्रोफ़ेसर हैं.
ओला की कंपनी फिलहाल अपनी वैक्सीन को कोविड-19 के बीटा (दक्षिण अफ्रीकी) और एल्फ़ा (ब्रिटेन) वैरिएंट पर टेस्ट कर रही है.
कंपनी को उम्मीद है कि ये दक्षिण अफ्रीका में टीकाकरण में मदद कर सकसता है जहां अभी तक कोई भी स्वदेशी वैक्सीन उत्पादक नहीं है.
यहां मौसम भी गर्म रहता है और बिजली की आपूर्ति भी सीमित है. इस वजह से कोविड की मौजूदा वैक्सीन से यहां टीकाकरण के सामने कई चुनौतियां हैं.
आईएसआर की इस वैक्सीन को अभी कई परीक्षणों से गुजरना है. अभी ये भी देखा जाना है कि क्या ये मौजूदा वैक्सीन के मुकाबले में पर्याप्त सुरक्षा दे पायेगी या नहीं.
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कोविड महामारी के ख़िलाफ़
अभी तक इसका परीक्षण सिर्फ़ चूहों पर ही किया जा सका है. हालांकि आईकोनॉवो और आईएसआर ने अगले दो महीनों में मनुष्यों पर परीक्षण शुरू करने के लिए ज़रूरी फंड हासिल कर लिए हैं.
लेकिन इस वैक्सीन को लेकर वैश्विक मेडिकल कम्यूनिटी में उत्साह है. इससे कोविड महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में क्रांतिकारी मदद मिलने की उम्मीद की जा रही है क्योंकि वैक्सीन का भंडारण और वितरण बहुत आसान हो जाएगा.
कैरोलींस्का में ग्लोबल ट्रांसफॉर्मेशन हेल्थ के प्रोफ़ेसर स्टेफ़ान स्वार्टलिंग पीटरसन कहते हैं, ''जिन इलाक़ों में पहुंचना मुश्किल है वहां इसकी मदद से लोगों की जान बचाई जा सकेगी.'
दुनियाभर में कंपनियां पाउडर वैक्सीन की जांच कर रही हैं. वहीं स्वार्टलिंग हमें आइकोनॉवो से दस मिनट पैदल की दूरी पर एक और स्टार्टअप का पता बताते हैं.
ज़ाइकम ऐसी तकनीक का परीक्षण क रही है जिसकी मदद से भविष्य की तरल वैक्सीन को इस तरह से एयर ड्राई किया जा सकेगा कि उनका प्रभाव कम न हो.
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रिसर्च और डेवलपमेंट की ज़रूरत
इससे विकासशील देशों में ऐसे फिल एंड फिनिश केंद्र बनाए जा सकेंगे जहां वैक्सीन को शीशियों में भरा जा सकेगा.
ये देश एक तरह से वैक्सीन उत्पादन के अंतिम चरण को अपने ज़मीन पर पूरा कर सकेंगे.
वैक्सीन पाउडर को स्टेराइल पानी के साल्यूशन में मिलाकर शीशियों और इंजेक्शन की मदद से टीकाकरण किया जा सकेगा.
कंपनी के सीईओ गोरान कोनरैडसन कहते हैं कि ये तकनीक नए आयाम खोलेगी जैसे कि नाक से या गोली के रूप में वैक्सीन दी जा सकेगी.
'इसके लिए और अधिक रिसर्च और डेवलपमेंट की ज़रूरत होगी, लेकिन सैद्धांतिक तौर पर ये कहा जा सकता है कि ये संभव है.'
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बेहतर विकल्प
जेनसेन ने कोविड की एक डोज़ में दी जाने वाली वैक्सीन बनाई है जिसे बीते महीने ही ब्रिटेन में इस्तेमाल की अनुमति मिली है.
ये कंपनी ज़ाइकम के साथ मिलकर एक पायलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही है जिसमें उसकी एयर ड्राई क्षमता का परीक्षण किया जाना है.
अभी तक इस बड़ी दवा कंपनी ने ये नहीं बताया है कि ये प्रोजेक्ट कोविड से संबंधित है या इसका इस्तेमाल अन्य बीमारियों में होगा लेकिन एक प्रवक्ता ने कहा है कि ये शोध नई तकनीक के विकास पर केंद्रित है जिसका इस्तेमाल भविष्य में वैक्सीन के भंडारण और टीकाकरण को आसान करने में किया जाएगा.
पाउडर तकनीक उन लोगों के लिए भी मददगार होगी जो सूई लगवाने से डरते हैं. ये तरल वैक्सीन का पर्यावरण के लिहाज से बेहतर विकल्प देगी क्योंकि इससे फ्रीज़ को चलाने के लिए बिजली की खपत कम होगी.
आमतौर पर तरल वैक्सीन की शीशियों को डीप फ्रीज़र में रखा जाता है जिन्हें चलाने में बड़ी मात्रा में बिजली खपत होती है.
साथ ही इससे दुनिया के सभी हिस्सों में वैक्सीन को पहुंचाया जा सकेगा.
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निर्माण क्षमता
कोनार्डसन कहते हैं, 'जब तक सभी सुरक्षित नहीं हैं तब तक कोई सुरक्षित नहीं हैं. आप नहीं जानते कि क्या होगा जब तक कि दुनिया के किसी भी हिस्से में कोरोनावायरस बाकी है.'
वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने पर काम कर रहे वैश्विक एनजीओ सेपी (कोएलीशन फॉर एपिडेमिक प्रीपेयर्डनेस इनोवेशन) की प्रवक्ता इनग्रिड क्रोमैन कहती हैं, 'महामारियों को वैश्विक स्तर पर ख़त्म करने के लिए हमें दुनिया के हर हिस्से में रह रही आबादी तक वैक्सीन पहुंचाने की क्षमता विकसित करनी होगी.'
वो कहती हैं, पाउडर आधारित वैक्सीन अभी भी निर्माण के शुरुआती चरण में हैं और अभी भी इस दिशा में बहुत सा काम किया जाना बाकी है, उदाहण के तौर पर इसकी निर्माण क्षमता बढ़ानी है.
वो कहती हैं, 'लेकिन यदि ये कामयाब रहा इससे वैक्सीन तक पहुंच आसान होगी, वैक्सीन बर्बाद कम होगी और इसे आसानी से वितरित किया जा सकेगा. इससे टीकाकरण का ख़र्च भी कम होगा.'
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