कोरोना महामारी के दौर में चीन ने नाप दिया माउंट एवरेस्ट
महामारी के दौर में जब यात्राओं पर कई तरह के प्रतिबंध हैं, ऐसे में माउंट एवरेस्ट चढ़ना अपने आप में अनूठी कामयाबी है.
कोरोना वायरस महामारी के दौर में जब यात्राओं पर कई तरह के प्रतिबंध हैं, ऐसे में माउंट एवरेस्ट चढ़ना अपने आप में अनूठी कामयाबी है और चीन के कुछ शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह कारनामा किया है.
शोधकर्ताओं की यह इकलौती टीम है जिसने कोरोना वायरस महामारी के दौरान दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को छुआ है.
चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, "इस टीम की वजह से चीन, दो देशों की सीमा पर स्थित माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को नापने में एक बार फिर सफल हुआ है."
माउंट एवरेस्ट पर चीन और नेपाल, दो तरफ़ से चढ़ा जा सकता है. इस साल दोनों देशों ने ही कोरोना वायरस महामारी की वजह से विदेशी पर्वतारोहियों पर पाबंदी लगा दी थी.
नेपाल ने अपने सभी अभियान भी रद्द कर दिये थे. लेकिन इस साल वसंत ऋतु में चीन ने अपने पर्वतारोहियों को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की इजाज़त दे दी.
चीन के लिए यह मौक़ा क्यों है ख़ास?
चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, "चीन के शोधकर्ताओं ने अप्रैल में एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की थी."
चीन के सरकारी टीवी चैनल पर इन शोधकर्ताओं की माउंट एवरेस्ट के ऊपर मार्किंग करने की फ़ुटेज भी प्रसारित की गई है जिसमें शोधकर्ता बताते हैं कि "बर्फ़ से ढकी माउंट एवरेस्ट की चोटी क़रीब 20 वर्ग मीटर की है."
चीनी समाचार एजेंसी के अनुसार, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले शोधकर्ताओं में से दो लोगों को मौसम की अनिश्चितताओं और ऑक्सीजन जैसे अन्य ज़रूरी सामान की कमी को देखते हुए बीच में ही अपना सफ़र रोकना पड़ा था.
पर्वतारोहण की जानकारी रखने वालों का कहना है, "यह एक अनोखा केस है जब माउंट एवरेस्ट के पीक पर पहुँचने वालों में सिर्फ़ चीन के पर्वतारोही हैं."
माउंट एवरेस्ट पर फ़तह
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वालों का रिकॉर्ड रखने वाली संस्था 'हिमालयन डेटाबेस' के रिचर्ड सेलिसबरी कहते हैं कि "अब से पहले, वर्ष 1960 में ऐसा हुआ था, जब सिर्फ़ चीन के पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचे थे. उस साल भारतीय पर्वतारोहियों ने भी प्रयास किया था, पर वो फ़ेल हो गए थे."
रिचर्ड बताते हैं, "चीन ने उस दौर में और भी कोशिशें की थीं, कभी रिसर्च तो कभी माउंट एवरेस्ट को फ़तह करने के लिए 1958 से 1967 के बीच चीन ने कई बार प्रयास किया, इस दौरान चीनी पर्वतारोही अकेले ही एवरेस्ट चढ़ने की कोशिश कर रहे थे, पर उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई थी."
बहरहाल, माउंट एवरेस्ट फ़तेह करने की ये नई उपलब्धि चीन को ऐसे समय में हासिल हुई है, जब चीन 'दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहली बार पहुँचने की 60वीं सालगिरह' मना रहा है.
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई
चीनी शोधकर्ताओं के अनुसार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई (चोटी पर जमी बर्फ़ को ना जोड़ते हुए) 8,844.43 मीटर है.
लेकिन नेपाल के अनुसार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8,848 मीटर है, जिसमें नापते समय चोटी पर जमी बर्फ़ की मोटाई भी शामिल की गई थी.
नेपाल माउंट एवरेस्ट की जिस ऊंचाई को मानक मानता है, उसे नापने का काम ब्रिटिश काल में औपनिवेशिक भारत ने किया था.
2015 में आये एक बड़े भूकंप का माउंट एवरेस्ट पर कितना असर पड़ा, इसका मूल्यांकन अभी बाकी है.
हालांकि कुछ भू-विज्ञानी मानते हैं कि माउंट एवरेस्ट की चोटी पर जमी बर्फ़ भूकंप से धसी ज़रूर होगी.
पारंपरिक और मॉडर्न तकनीक
साल 2017 में नेपाल की सरकार ने अपने दम पर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई नापने की घोषणा की थी.
इसके लिए एक सरकारी परियोजना भी लॉन्च की गई थी जिसके तहत पारंपरिक और मॉडर्न तकनीकों के ज़रिये डेटा जुटाया गया है.
पर इसका नतीजा क्या हुआ?
इस सवाल के जवाब में नेपाल के सर्वे विभाग के प्रवक्ता दामोदर ढकाल ने बीबीसी से कहा, "डेटा एकत्र कर लिया गया है, लेकिन उसका अंतिम प्रारूप करना अभी बाकी है."
उन्होंने कहा, "अपने काम को लेकर हम एक अंतरराष्ट्रीय वर्कशॉप करना चाहते थे, जो इन दिनों होनी थी, उसी के बाद हम माउंट एवरेस्ट की पैमाइश से संबंधित डेटा सार्वजनिक करने वाले थे. लेकिन कोविड-19 की वजह से सब कुछ टल गया."
शी जिनपिंग ने तोड़ा वादा!
पिछले साल अक्तूबर में, जब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग नेपाल दौरे पर थे, तब दोनों देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा था कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई की घोषणा दोनों देश मिलकर करेंगे.
हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अगर दोनों देशों ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई अलग-अलग बताई तो उस स्थिति में दोनों देश क्या करेंगे.
चीन इससे पहले दो बार माउंट एवरेस्ट को मापने का काम कर चुका है. पहली बार 1975 में और फिर 2005 में.
दूसरी बार माउंट एवरेस्ट का सर्वे करने वाली टीम ने पर्वत पर चीन का जीपीएस यंत्र भी लगाया था जिसकी मदद से चीन बर्फ़ की गहराई, मौसम और हवा की रफ़्तार का सही डेटा हासिल कर पाता है.