चमत्कारी मिट्टी से उमड़े श्रद्धालु
गत साढ़े सोलह सौ वर्षो से चली आ रही इस सिलसिले की खासियत यह है कि प्रतिवर्ष नवंबर माह में केवल एक खास दिन ही होने वाले इस अजूबे में अनपढ़ ही नहीं बल्कि विदेशी भी होते हैं। इस वर्ष प्रशासन की अपेक्षा के विपरीत यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या के सारे रिकार्ड ध्वस्त हो गए। झिंडी में मेलाधिकारी का पद संभाल चुके हितेश गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि प्रति वर्ष गुरुनानक देवजी के जन्मदिन से एक दिन पहले से लगने वाली भीड़ का सिलसिला अगले एक हफ्ते में बमुश्किल सिमट पाता है। गुप्ता ने बताया कि केवल नवंबर माह में ही पांच से सात लाख श्रद्धालु सरोवर की मिट्टी लगाकर नहाना चाहते हैं।
लगातार पिछले दस वर्षो से यहां आने वाले अमृतसर के अशोक कुमार ने दावा किया कि बाबा तालाब नामक प्राकृतिक सरोवर की मिट्टी शरीर में रगड़ने से लोगों के कैंसर, कुष्ठ रोग, पोलियो इत्यादि असाध्य रोग ठीक होते हैं। उत्तरप्रदेश में बरेली के विख्यात गुरु विनोद अरोरा ने बताया कि अकेले बरेली क्षेत्र से ही कम से कम 50 हजार श्रद्धालु उनके नेतृत्व में यहां आते हैं।
उन्होंने बताया कि किवदंती के अनुसार साढ़े सौलह सौ वर्ष पूर्व जीतमल नामक एक व्यक्ति कटरा स्थित गाढ़कोट नामक एक गांव से प्रतिदिन वैष्णो देवी दरबार में दर्शन करने के बाद दरबार की तरफ पीठ किए बिना घर लौटता था। जम्मू सरकार की पौराणिक पुस्तकों के अनुसार कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर वैष्णो देवी अविवाहित जीतमल के घर कन्या के रूप में प्रकट हुईं। इसके बाद जम्मू रियासत के राजा विजय सिंह मेहता ने जीतमल को झिड़ी में अपनी एक रियासत उपहार में दे दी। विनोद जी ने बताया कि लोक गाथाओं के अनुसार अप्रत्याशित रूप से तैयार हुई बंजर भूमि में लहलहाती फसलें देख ललचाए राजा ने जीतमल का सार्वजनिक अपमान करना प्रारम्भ कर दिया। इससे रूष्ट हो एक दिन बाबा जीतमल ने राजा के ही खंजर से अपनी हत्या कर ली।
झिड़ी के मूल निवासी 90 वर्षीय रंजीत सिंह ने बताया कि जीतमल के रक्त के छींटे दूर-दूर जा गिरे। उस समय तेज आंधी आई। गांव की ही 80 वर्षीय एक महिला रूकमणी देवी ने बताया कि उसी दौरान से प्रारम्भ हुए अनेक चमत्कारों के कारण बाबा तथा कन्या को देवी-देवता के समान पूजा जाने लगा। बाबा बाल रूप वैष्णो देवी को बुआ नाम से पुकारते थे। बस फिर क्या था उसी समय से छोटे से झिड़ी नामक गांव का दरबार बुआ बाबा के नाम से प्रसिद्व हो गया और श्रद्धालुओं का तांता लगने लगा।
विनोद जी का दावा है कि प्रतिवर्ष 23 नवम्बर के दिन सुबह के समय बुआ बाबा के समक्ष प्रज्जवलित होने वाली ज्योति के समक्ष उपस्थित होने के बाद प्राकृतिक सरोवर की मिट्टी को शरीर में रगड़कर स्नान करने वालों के असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस से भी जो रोगी ठीक नहीं हुए हैं, वह यहां पर ठीक हो चुके हैं। दुबई से आए भवन निर्माण के वरिष्ठ ठेकेदार गुरमीत सिंह पप्पी (बनबसा) ने बताया कि वह पिछले 20 वषरे से यहां लगातार मत्था टेकने आते हैं।
साठ वर्षीय गुरमीत सिंह ने बताया कि 20 वर्ष पूर्व जब वह पंजाब में आर्थिक तंगियों से गुजर रहे थे, तभी उन्हें यहां से मन्नत की प्राप्ति हुई थी। लंदन से आए प्रेम मलिक अमीर ने बताया कि उन्हें भी यहां से मुंहमांगी मुराद पूरी हुई थी। बस तभी से वह सपरिवार मत्था टेकने आते हैं। मुंबई से आए सुरेश प्रभु के अनुसार उन्हें भी कई वर्ष पूर्व यहां असाध्य रोगों से छुटकारा मिला था।
स्वयं सेवी समूहों के अलावा राज्य सरकार के पुलिस तथा प्रशासनिक अमले के वरिष्ठ अधिकारी भी पूरे दमखम से इस अजूबे में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं के रेले को नियंत्रित करने में लगे रहते हैं। सरकारी तौर पर मेला प्रतिवर्ष 29 नवम्बर तक चलता है। लेकिन उसके बाद भी वर्षभर श्रद्धालु यहां आते रहते हैं। केवल पूर्णिमा के ही दिन एक लाख से अधिक श्रद्धालु मंदिर में मत्था टेंकते हैं। जम्मू के डिविजनल कमिश्नर (आयुक्त) ह्रयदेश ने बताया कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ रही संख्या के कारण अगले वर्ष अब और पुख्ता प्रबंध किए जाएंगे।
आगे
पढ़ें...
अब
भोजपुरी
मैथिली
में
ब्लाग
इंडो-एशियन
न्यूज
सर्विस।