कानून जो करे, नीतीश नहीं करेंगे लालू का ह्रास
वर्ष 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-जदयू-राजद का महागठबंधन बनवाकर नीतीश कुमार के हाथ में सत्ता की कमान लालू प्रसाद ने ही सौंपी थी, इस बात को नीतीश कुमार भूल नहीं सकते।
बिहार की सियासत को गहराई से समझने वाले यह भलि-भांति जानते हैं कि वहां की राजनीतिक 'डीएनए' में धोखेबाजी का उदाहरण कम ही है। भाजपा से अलग होने के बाद राजनीतिक संकट में फंसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सुर में सुर मिलाकर बोलने वाले राजद प्रमुख लालू प्रसाद का परिवार इस वक्त तमाम झंझावातों से जूझ रहा है। इस स्थिति में यह कयास लगाना कि नीतीश कुमार लालू के पुत्र उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को बर्खास्त कर देंगे अथवा इस्तीफा मांगेगें या यूं कहें कि लालू प्रसाद से किनारा करने की कोशिश करेंगे, यह लाजिमी प्रतीत नहीं हो रहा है। क्योंकि वर्ष 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-जदयू-राजद का महागठबंधन बनवाकर नीतीश कुमार के हाथ में सत्ता की कमान लालू प्रसाद ने ही सौंपी थी, इस बात को नीतीश कुमार भूल नहीं सकते।
नीतीश कुमार को बिहार की सियासत में भले चाणक्य कहा जाता हो, पर वे धोखेबाज तो नहीं ही हैं। नीतीश कुमार ने कभी किसी के साथ धोखेबाजी की भी नहीं है, जो सार्वजनिक रूप से संज्ञान में आया हो। बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ बेनामी संपत्ति का केस दर्ज हो चुका है। इस मसले पर कानून को जो भी करना होगा, करेगा किन्तु नीतीश कुमार तेजस्वी के खिलाफ कार्रवाई की पहल करेंगे, इस बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं हैं। हालांकि खुद को निर्दोष बताने के लिए तेजस्वी ने दलील दी कि जब इन बेनामी संपत्तियों का कथित तौर पर अधिग्रहण किया गया, तब उनकी उम्र 14-15 वर्ष रही होगी। 'मूंछ' भी नहीं थी। क्या कोई नाबालिग इस तरह की गड़बड़ी कर सकता है?
हालांकि कानून के ज्ञाता मानते हैं कि तेजस्वी की यह दलील बेनामी कानून के तहत नहीं टिक पाएगी। बेनामी संपत्ति लेनदेन (निषेध) कानून 1988 और 2016 में हुए संशोधनों में बेनामीदार की उम्र को कोई महत्व नहीं दिया गया है। लेकिन 1988 ऐक्ट और बाद में हुए संशोधनों में यह साफ है कि बेनामी संपत्ति को केंद्र सरकार जब्त कर सकती है। इसका मतलब यह है कि तेजस्वी और उनकी बहन मीसा भारती की उम्र बेनामी संपत्ति के अधिग्रहण के समय कुछ भी रही हो, केंद्रीय एजेंसियां इन्हें जब्त कर सकती हैं। 1988 के कानून और 2016 के संशोधन बेनामी संपत्ति के जब्ती को लेकर स्पष्ट हैं। संशोधन बेनामी संपत्ति की खरीद-बिक्री करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान जोड़ता है। 2016 से पहले बेनामी संपत्ति के अधिग्रहण पर संशोधन का प्रावधान लागू होगा या नहीं, यह कोर्ट की व्याख्या पर निर्भर करता है।
बेनामी संपत्ति की खरीद और बिक्री से जुड़े लोगों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान 2016 में किया गया था और इसमें व्यक्ति के उम्र की चर्चा नहीं की गई है। बेनामी संपत्ति कानून के तहत एक से सात साल तक की कैद और संपत्ति के बाजार मूल्य के 25 फीसदी तक जुर्माना लगाया जा सकता है। अगर बेनामीदार, अथॉरिटीज को गलत जानकारी देता है तो छह महीने से 5 साल तक की सजा हो सकती है। फिलहाल, यह कह सकते हैं लालू प्रसाद अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। वह चक्रव्यूह में घिर गए हैं, तीन-तीन सरकारी एजेंसियां सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और इनकम टैक्स विभाग पीछे पड़ी हैं। इस बार लालू का पूरा परिवार परेशानी में फंस गया है। राबड़ी देवी, बेटे, बेटियां, दामाद सब मुश्किल में हैं।
लालू पर आरोप है कि उन्होंने रेलवे के होटल टेंडर निजी कंपनी को दिए थे और रेल मंत्री के तौर पर निजी कंपनी को फायदा पहुंचाया था। इस पर लालू प्रसाद का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हमें मिटाना चाहते हैं, लेकिन ऐसे चिल्लर और खटमल का इलाज वह जनता की दवा से करेंगे। झूठे आरोपों से हमें घेरने का प्रयास कर रहे हैं। हम पर केस किया तो किया बच्चों और बीवी तक को फंसा दिया है। लेकिन कोर्ट और जनता पर हमें पूरा भरोसा है। वैसे देखा जाये तो लालू पिछले 20 साल से कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा रहे हैं।
याद करें जब 1990 में लालू पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने शपथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण की मूर्ति के नीचे गांधी मैदान में ली थी। उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह को राजभवन से बाहर निकाला था और कार्यक्रम को जनता के बीच ले गये थे। उस समय उन्होंने घोषणा की थी कि पैसा को हाथ नहीं लगायेंगे और भ्रष्टाचार को घोर पाप के समान माना था। 1996 आते-आते चारा घोटाले के रूप में सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये की लूट सामने आ गयी। अक्टूबर, 2013 में चारा घोटाले में उन्हें पांच साल की कैद की सजा सुना दी गयी। उनकी संसद की सदस्यता भी चली गयी। 1991 का दौर याद करें जब देश में नई अर्थव्यवस्था की शुरुआत हो रही थी, नया परिदृश्य सामने आ रहा था। अनेक राज्य इसका लाभ उठाना चाह रहे थे। उनमें इसको लेकर प्रतिस्पर्धा थी। लेकिन लालू के नेतृत्व में बिहार इसका लाभ नहीं उठा सका।
लालू के बेटे तो राजनीतिक करियर की शुरुआत में ही सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स के चक्कर में आ गये हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व से बेहतर उनकी राजनीतिक ट्रेनिंग नहीं हो सकती थी। लेकिन वे तो लालू की बोयी फसल काटने के चक्कर में फंस गये लगते हैं। अभी तक तेजस्वी और तेज प्रताप लालू प्रसाद की छत्रछाया में ही आगे बढ़ रहे थे और स्वतंत्र रूप से राजनीति करने में सक्षम नहीं हुए हैं। उत्तर प्रदेश से तुलना करें तो अखिलेश यादव मुलायम सिंह के प्रभामंडल से बाहर आ गये हैं और स्वतंत्र रूप से राजनीति करने में सक्षम हो गये हैं। उन्हें मुलायम के सहारे की जरूरत नहीं है लेकिन तेजस्वी और तेज प्रताप के साथ ऐसा नहीं है। वे लालू की विरासत को अभी पूरी तरह संभाल नहीं पाये हैं। लालू प्रसाद कर्पूरी ठाकुर के बाद पिछड़ों के बड़े नेता के रूप में उभरे थे।
असल मुद्दा यह है कि लालू प्रसाद और उनके परिवार के सदस्यों के यहां जो छापे पड़ रहे हैं, वे निश्चित रूप से राजनीति की वजह से पड़ रहे होंगे, वरना अकेले लालू को ही क्यों फंसाया जा रहा है? क्या देश में किसी भी पार्टी का कोई भी नेता ऐसा है, जो खम ठोक कर कहे कि मैं ईमानदार हूं। मैंने कभी कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। मैंने हमेशा कानून का पालन किया है। मैंने कभी कोई अनैतिक काम नहीं किया है। कम से कम जान-बूझकर नहीं किया है। इसका अर्थ यह नहीं कि लालू कोई महात्मा है या बेदाग है या बेकसूर है। वह तो पहले ही जेल की हवा खा चुका है। लेकिन आश्चर्य है कि बिहार के पिछले चुनाव में उनकी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं।
खैर, भ्रष्टाचार के आरोपों में बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का नाम आने के बाद पिछले कुछ दिनों से वहां जैसी राजनीतिक उथल-पुथल जारी है। इस मसले पर भाजपा की ओर से लगातार बनाए जा रहे दबाव का असर भी दिख रहा है। बीते दिनों जदयू की बैठक के बाद भ्रष्टाचार के आरोपियों को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सख्त बयान सामने आए। उन्होंने तेजस्वी को सीधे इस्तीफा देने के लिए तो नहीं कहा, लेकिन आरोपों के घेरे में आए लोगों को तथ्यों के साथ जनता के बीच जाने और खुद को बेदाग साबित करने की सलाह दी। राजनीतिक हलके में नीतीश कुमार जिस छवि के लिए जाने जाते हैं, उसमें यह कयास लगाया गया कि अब वे शायद राजद से नाता तोड़ने की कोशिश में हैं। लेकिन जैसे संकेत आ रहे हैं, उनके मुताबिक दोनों पक्ष शायद अभी यह नहीं चाहते हैं कि महागठबंधन टूटे।
जदयू के प्रवक्ता केसी त्यागी ने इसी क्रम में कहा कि उनकी पार्टी ने तेजस्वी से इस्तीफा नहीं मांगा है और न ही इसके लिए कोई अल्टीमेटम जारी किया है। दूसरी ओर, राजद की ओर से तेजस्वी के इस्तीफे की मांग को खारिज किया गया और साथ ही महागठबंधन पर इसका कोई असर नहीं पड़ने की बात कही गई। जाहिर है, देश में राजनीतिक तस्वीर और उसमें भाजपा की चुनौती के मद्देनजर फिलहाल राजद और जदयू को मिल कर ही साथ चलना जरूरी लग रहा है। बहरहाल, यह कह सकते हैं कि तेजस्वी अथवा लालू परिवार पर कोर्ट-कानून जो भी अपनी कार्रवाई करनी हो करे, पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीतिक कार्रवाई कर राजद प्रमुख लालू प्रसाद से दगाबाजी के मूड में नहीं हैं। वैसे यह देखा जाना है कि क्या होता है?