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क्यों हुआ नीतीश कुमार की नई कैबिनेट से मुसलमानों का पत्ता साफ

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पटना- बिहार में सोमवार को नीतीश कुमार की अगुवाई में बनी एनडीए सरकार में करीब 17 फीसदी आबादी वाले मुसलमानों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। आजादी के बाद यह पहली ऐसी सरकार बताई जा रही है, जिसमें एक भी मुस्लिम नुमाइंदे को जगह नहीं मिल पाई है। ऐसा भी नहीं है कि इस स्थिति के लिए मुसलमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर कोई ऊंगली उठा सकते हैं। क्योंकि, जेडीयू ने जिन 11 मुसलमानों को इस चुनाव में टिकट दिया था, वो सारे के सारे विरोधी दलों के प्रतिद्वंद्वियों से मात खा गए। इसका एक असर यह भी हुआ है कि 2015 में कुल 24 मुस्लिम विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन इस बार सिर्फ 19 को ही यह मौका मिल पाया है। इनमें 8 आरजेडी से, 5 एआईएमआईएम से, 4 कांग्रेस से और 1-1 बीएसपी और सीपीएम से चुनाव जीते हैं।

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Why did the new cabinet of Nitish Kumar is without any Muslims in Bihar

नीतीश कुमार ने सोमवार को 14 मंत्रियों के साथ पद और गोपनीयता की शपथ ली। इसमें प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने में पूरा तालमेल बिठाने की कोशिश हुई है। लेकिन, फिर भी एक भी मुस्लिम इसलिए मंत्री नहीं बन पाया, क्योंकि जेडीयू के सारे 11 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव हार गए और एनडीए के बाकी सहयोगी दलों में से किसी ने एक भी मुसलमान को टिकट ही नहीं दिया था। हालांकि, एनडीए सरकार ने छोटी कैबिनेट में समाज के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश जरूर की है। इसमें अगड़ों की बात करें तो एक ब्राह्मण, दो भूमिहार और एक राजपूत को जगह दी गई है। वहीं पिछड़ों में दो यादव, एक कोयरी और एक कलवार को मंत्री बनाया गया है। अति-पिछड़ों में एक नोनिया, एक धानुक और एक मल्लाह की मंत्री पद पर ताजपोशी हुई है। वहीं अनुसूचित जाति में एक मुसहर, एक पासी और एक पासवान को भी कैबिनेट में शामिल किया गया है। जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि 'कैबिनेट मंत्रियों को देखने से पता चलता है कि एनडीए के चारों सहयोगियों ने नई सरकार में समाज के सभी महत्वपूर्ण समूहों को शामिल करने के लिए काफी मोहनत की है।'

संविधान के प्रावधानों के तहत बिहार में नीतीश कुमार अपनी सरकार में अधिकतम 35 मंत्रियों को शामिल कर सकते हैं। यानि, अगले विस्तार के लिए अभी भी 21 और चेहरे तक भी शामिल किए जाने की गुंजाइश बची हुई है। ऐसे में जहां तक मुसलमानों की बात है तो जदयू में कुछ मुस्लिम विधान पार्षद हैं, जिनकी लॉटरी लग सकती है। एक जदयू नेता ने नाम नहीं बताने की शर्त पर इसकी ओर इशारा भी किया है। उन्होंने कहा है, 'अगले विस्तार में पार्टी नेतृत्व मुस्लिम समुदाय का ध्यान रखेगा।'

नीतीश की पिछली सरकार में भी मुसलमानों की नुमाइंदगी नाम मात्र की ही थी। तब मोहम्मद खुर्शीद उर्फ फिरोज अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री का जिम्मा संभालते थे। लेकिन, इस चुनाव में वोटरों ने उन्हें भी कबूल नहीं किया। वे ऐसी मुस्लिम मंत्री थी, जो पिछली बार विधानसभा में विश्वासमत प्राप्त करने के बाद 'जय श्रीराम' लगाकर खूब मशहूर हुए थे। इसके चलते इमारत-ए-शरिया ने इनके खिलाफ फतवा तक जारी कर दिया था। बाद में खुर्शीद ने हालात से समझौता करके उनसे माफी मांग ली थी, लेकिन फिर भी मतदाताओं ने लगता है उन्हें माफ नहीं किया।

इस बार राजद से जीतने वाले मुस्लिम विधायकों की भी संख्या कम हुई है। 2015 में पार्टी से 11 मुसलमान जीते थे। वैसे 2010 में जब एनडीए ने भारी बहुमत से सरकार बनाई थी और राजद 22 सीटों पर सिमट कर रह गई थी, तब भी सिर्फ 16 मुस्लिम विधायक ही जीतकर विधानसभा तक पहुंचे थे। बिहार में 1952 से 2020 तक सबसे ज्यादा 34 मुस्लिम विधायक 1985 में जीते थे। जबकि, 1952 में हुए चुनाव में 24 मुसलमानों को जीत मिली थी। हालांकि, तब बिहार का विभाजन नहीं हुआ था।

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English summary
Why did the new cabinet of Nitish Kumar is without any Muslims in Bihar
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