बिहार चुनाव से पहले कोरोना पर 'जीत' का सच: फ़ैक्ट चेक
बिहार में कोरोना मरीज़ों के ठीक होने की दर 92 फ़ीसद से अधिक है और रोज़ाना क़रीब डेढ़ लाख टेस्ट हो रहे हैं, क्या यह असल तस्वीर है?
बिहार विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है. भारत में ये पहला चुनाव है, जो कोरोना वायरस महामारी के बीच हो रहा है. महामारी फैलने के बाद बिहार में कोरोना वायरस से निपटने को लेकर राज्य सरकार की आलोचनाएँ होती रहीं.
हालांकि बिहार अब कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित राज्यों की फ़हरिस्त में 11वें नंबर पर आ गया है.
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जुलाई-अगस्त के महीनों में बिहार के अस्पतालों में भीड़ जमा होने और कथित तौर पर इलाज न किए जाने के दावे वाले वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल हुईं. लेकिन अब बिहार को लेकर ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ इस राज्य की लड़ाई अंतिम चरण में है.
ऐसा दावा हम नहीं बल्कि बीजेपी की बिहार इकाई कर रही है, जो राज्य की गठबंधन सरकार में शामिल है.
इस दावे की पुष्टि के लिए कुछ तर्क दिए जा रहे हैं, जैसे बिहार में रोज़ाना क़रीब 1.5 लाख टेस्ट हो रहे हैं, मरीज़ों के ठीक होने की दर 92 फ़ीसद से अधिक हो गई है और वर्तमान में सिर्फ़ 12 हज़ार ही सक्रिय मरीज़ हैं.
11 सितंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू की पहली वर्चुअल चुनावी रैली की.
इस रैली में उन्होंने कहा, "बिहार के कुछ लोग बिना किसी तर्क के हमारी आलोचना करते हैं. मार्च में हमने टेस्ट की क्षमता बढ़ाने की कोशिश की और अब बिहार में रोज़ाना 1.5 लाख लोगों के टेस्ट हो रहे हैं."
इसके बाद 21 सितंबर को बिहार के स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना वायरस टेस्ट का एक नया रिकॉर्ड बनाया. यह दावा किया गया कि एक दिन में 1,94,088 टेस्ट किए गए हैं.
कोरोना टेस्ट में क्या है 'झोल'
बिहार में एक दिन में 1.94 लाख से अधिक टेस्ट होना कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में बहुत अहमियत रखता है, लेकिन जब टेस्ट करने के तरीक़ों को ग़ौर से देखें, तो बहुत मायूसी हाथ लगती है.
22 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम में कोरोना संक्रमण पता लगाने के लिए रिकॉर्ड टेस्ट किए जाने को दोहराया. साथ ही इस दौरान कितने टेस्ट किस तरीक़े से हुए इसका भी उन्होंने सिलसिलेवार ब्यौरा दिया.
मुख्यमंत्री ने बताया था कि कुल टेस्ट 1,94,088 हुए, जिनमें 80 फ़ीसद से ज़्यादा यानी 1,78,374 रैपिड एंटीजन टेस्ट (आरएटी) थे, जबकि गोल्ड स्टैंडर्ड समझे जाने वाले आरटी-पीसीआर टेस्ट कुल 11,732 ही थे और ट्रूनेट टेस्ट 3,982 थे.
आरएटी और आरटी-पीसीआर कोरोना की जाँच के प्रचलित तरीक़े हैं. 19 मई को आईसीएमआर ने ट्रूनेट सिस्टम टेस्ट को अनुमति दी थी, जो एक चिप आधारित टेस्ट है. इसमें भी आरटी-पीसीआर की तरह किसी शख़्स के नाक और गले से स्वैब का सैंपल लिया जाता है और फिर उसे टेस्ट किया जाता है.
30 सितंबर को पूरे भारत में 14 लाख से अधिक टेस्ट हुए और 80 हज़ार से अधिक नए संक्रमणों का पता लगा जबकि बिहार में इसी दिन में 1.31 लाख से अधिक टेस्ट हुए और सिर्फ़ 1435 नए मरीज़ों का पता लगा.
#COVIDー19 Updates Bihar:
(शाम 4 बजे तक)➡️विगत 24 घंटे में कुल 1,31,383🧪 सैम्पल की जांच हुई है।
➡️अबतक कुल 1,69,625 मरीज ठीक हुए हैं।
➡️ वर्तमान में COVID19 के active मरीजों की संख्या 12,376 है।
➡️बिहार में कोरोना मरीजों का रिकवरी प्रतिशत 92.74 है।#BiharHealthDept pic.twitter.com/E0WsEicou3
— Bihar Health Dept (@BiharHealthDept) September 30, 2020
पूरे भारत के मुक़ाबले बिहार में नए मरीज़ों के मामले इतने कम आने की वजह विश्लेषक टेस्टिंग को मानते हैं, क्योंकि भारत में जहाँ तक़रीबन 60 फ़ीसद आरटी-पीसीआर टेस्ट हो रहे हैं, वहीं बिहार में इसकी दर सिर्फ़ 10-20 फ़ीसद के बीच ही बनी हुई है.
11 अगस्त को बिहार में सबसे अधिक 4,071 मामले सामने आए थे, जबकि उस दिन भारत में 50,000 से अधिक मामले पाए गए थे. इसके बाद भारत में रोज़ाना कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते गए और बिहार में संक्रमण के मामले नीचे आते गए.
अब रोज़ाना बिहार में 1400 के क़रीब नए मामले सामने आ रहे हैं जबकि पूरे भारत में अभी भी 80 हज़ार से अधिक नए मामले आ रहे हैं.
कम नए मामलों की वजह टेस्टिंग?
भारतीय चिकित्सा संघ के बिहार चैप्टर के सचिव डॉक्टर सुनील कुमार कहते हैं कि बिहार में नए मामलों के कम सामने आने की कई वजहों में से एक वजह टेस्टिंग भी है.
वो कहते हैं, "बिहार में कोरोना की अधिकतर जाँच रैपिड एंटीजन टेस्ट से हो रही है, जिसका 50 फ़ीसद से अधिक परिणाम नेगेटिव ही होता है, जबकि आरटी-पीसीआर और ट्रूनेट टेस्ट का परिणाम 50 फ़ीसदी से अधिक पॉज़िटिव होता है. आरएटी केवल स्क्रीनिंग के लिए होता है, जिसकी कोई वैधता नहीं है."
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आरएटी को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) भी बहुत कारगर नहीं मानता है. इसी वजह से केंद्र सरकार ने यह दिशानिर्देश जारी किए हुए हैं कि कोई लक्षण वाला व्यक्ति जो आरएटी में नेगेटिव आए, तो फिर उसकी आरटी-पीसीआर टेस्ट के ज़रिए कोरोना की जाँच की जानी चाहिए.
अब बिहार में अगर इस दिशानिर्देश की ज़मीनी हक़ीक़त देखें, तो वह पूरी होती नहीं दिखती है. इसकी तस्दीक़ डॉक्टर सुनील कुमार भी करते हैं. वो कहते हैं कि जो लक्षण वाले लोग आरएटी टेस्ट में नेगेटिव पाए जा रहे हैं, उनमें अधिकतर का आरटी-पीसीआर टेस्ट नहीं हो रहा है.
बिहार में अगर कुल कोरोना टेस्ट को देखें, तो 30 सितंबर तक राज्य में कुल 72,66,150 टेस्ट हुए, जबकि राज्य की जनसंख्या 10.40 करोड़ से भी अधिक है.
बिहार में कोरोना की जाँच के लिए हर ज़िले में सरकारी केंद्र बनाए गए हैं. साथ ही राज्य में जाँच और इलाज के लिए कई हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं. बीबीसी ने जब इन नंबर्स पर संपर्क किया, तो इनमें से कई नंबर काम भी नहीं कर रहे थे.
कोविड-19 की जांच एवं ईलाज हेतु जिला स्तर पर उपलब्ध 24x7 मेडिकल हेल्प लाईन के माध्यम से सुविधा का लाभ उठायें। pic.twitter.com/TYF3nVyysG
— Mangal Pandey (@mangalpandeybjp) October 1, 2020
इसके अलावा बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने 'संजीवन' नामक एक ऐप भी बनाया है, जिस पर जाकर कोरोना की जाँच के लिए ख़ुद को रजिस्टर्ड किया जा सकता है.
इस पर डॉक्टर सुनील कहते हैं कि सभी 38 ज़िलों में टेस्ट के लिए सेंटर ज़रूर बना दिए गए हैं, लेकिन वहाँ पर अधिकतर आरएटी ही किए जा रहे हैं और उस जाँच के बाद कोई फ़ॉलोअप नहीं किया जा रहा है.
बिहार और बाक़ी राज्यों के टेस्ट की स्थिति
21 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दावा किया कि पूरे भारत में 10 लाख की जनसंख्या पर औसतन 47,337 सैंपल्स की जाँच हो रही है, जबकि बिहार में यह प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर 47,482 है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह आँकड़ा 21 सितंबर का था, लेकिन भारत में टेस्टिंग की दर अब प्रति 10 लाख की आबादी पर 50,000 से ऊपर जा चुकी है. जबकि बिहार में टेस्ट की दर वहीं की वहीं बनी हुई है.
इसके मुक़ाबले अगर कुल टेस्ट की बात करें, तो बिहार के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश ने अब तक 1 करोड़ से अधिक टेस्ट कर लिए हैं और तमिलनाडु 73 लाख से अधिक टेस्ट कर चुका है.
बिहार सरकार इस बात को भी काफ़ी ज़ोर-शोर से दोहरा रही है कि उसके यहाँ कोरोना से होने वाली मौतों की दर भारत और बाक़ी राज्यों के मुक़ाबले सबसे कम है.
भारत में कोरोना से होने वाली मौतों की दर जहाँ 1.56 फ़ीसद है, वहीं बिहार में यह 0.5 फ़ीसद के आसपास बनी हुई है.
'डॉक्टरों की क्यों हो रही हैं मौतें'
डॉक्टर राजेंद्र सिंह (बदला हुआ नाम) बिहार में एक सरकारी अस्पताल में नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं. कोरोना महामारी फैलने के बाद राज्य सरकार ने उन्हें कोरोना के लिए बनाए गए अस्पताल में तैनात किया.
वो कोरोना वायरस को लेकर राज्य सरकार के रवैए की आलोचना करते हैं. वो कहते हैं कि केंद्र की टीम के राज्य में आने के बाद बिहार सरकार नींद से जागी.
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डॉक्टर राजेंद्र कहते हैं, "बिहार में कोरोना महामारी को लेकर कभी भी पूरी तैयारी रही ही नहीं. केवल एम्स-पटना महामारी के बोझ को थामे हुए है, जबकि एम्स राज्य सरकार का अस्पताल भी नहीं है, वहाँ पर आईसीयू अभी भी मरीज़ों से भरे हुए हैं. राज्य के हेल्थ इन्फ़्रास्ट्रक्चर की पोल कोरोना महामारी ने खोलकर रख दी है."
पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल को बिहार सरकार ने पहला मॉडल कोविड अस्पताल बनाया था.
डॉक्टर राजेंद्र कहते हैं कि बिहार सरकार ने आनन-फ़ानन में पहला मॉडल कोविड अस्पताल तो घोषित कर दिया, लेकिन वहाँ पर कोई योग्य स्वास्थ्यकर्मी ही नहीं था.
वो ख़ुद का हवाला देते हुए कहते हैं, "मेरी ट्रेनिंग नेत्र रोग में हुई है और मुझे कोरोना की ड्यूटी में लगा दिया गया. जबकि मुझे वेंटिलेटर चलाना नहीं आता है. मेरी तरह अलग-अलग रोग विशेषज्ञों को ड्यूटी में लगा दिया गया."
हाल ही में संसद में केंद्र सरकार ने कहा था कि उसके पास कोरोना के कारण मारे गए स्वास्थ्यकर्मियों का कोई आँकड़ा नहीं है. भारतीय चिकित्सा संघ के अनुसार, "पूरे देश में कोरोना के कारण 382 डॉक्टरों की जान जा चुकी है."
डॉक्टर राजेंद्र कहते हैं, "काग़ज़ पर रिकवरी रेट 92 फ़ीसद बताया जा रहा है तो इसे 100 फ़ीसद कर दीजिए, राज्य सरकार से कोई यह क्यों नहीं पूछता कि बिहार में डॉक्टरों की मृत्यु दर सबसे अधिक क्यों है, इनमें बेहद युवा डॉक्टर भी शामिल हैं. मारे गए स्वास्थ्यकर्मियों के परिजनों को सिर्फ़ एक महीने का वेतन दिया जा रहा है. बिहार में भी दिल्ली की तरह मारे गए लोगों के परिजनों को 1 करोड़ रुपए क्यों नहीं दिया जा सकता?"
रिकवरी रेट कैसे ऊपर जा रहा है?
डॉक्टर सुनील कुमार कहते हैं कि कुल मामले कम आ रहे हैं और मौतें भी कम हो रही हैं तो रिकवरी रेट अपने आप ऊपर जाएगा, सरकार इसका बखान ख़ुद कर रही है जिसमें उसका कोई योगदान नहीं है.
वो कहते हैं, "आरटी-पीसीआर मशीनें पूरे राज्य में हर जगह नहीं पहुँच पाई हैं और सरकार आरएटी के ज़रिए रिकॉर्ड बना रही है. जिसकी वैधता ही कम है. आरटी-पीसीआर के ज़रिए टेस्ट हों तो मामले बहुत अधिक होंगे."
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बिहार में कोरोना से डॉक्टरों की हो रही मौतों पर डॉक्टर सुनील कहते हैं कि उसकी वजह अधिकांश उम्रदराज़ डॉक्टरों से काम कराना है, क्योंकि यहाँ पर डॉक्टरों की कमी है.
वो कहते हैं, "तीनों प्रमुख सचिवों को हम ज्ञापन देकर कह चुके हैं कि 60 साल से ऊपर के डॉक्टरों को कोरोना की ड्यूटी से हटाया जाए. सारे सिविल सर्जन 60-70 साल की आयु से ऊपर के हैं और उन पर संक्रमण का सबसे अधिक ख़तरा होता है. बिहार में डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र 67 कर दी गई है, जबकि नई भर्तियाँ नहीं की जा रही हैं, ऐसे में कोरोना से कैसे जंग जीती जा सकती है."
बिहार के जिन तीन ज़िलों में सबसे अधिक कोरोना के मामले पाए गए हैं, उनमें पटना (27,884), मुज़फ़्फ़रपुर (8,301) और भागलपुर (7,409) शामिल हैं.
डॉक्टर सुनील कहते हैं कि राज्य सरकार का दावा है कि उसने इन तीनों ज़िलों समेत पूरे बिहार में कोरोना वायरस के लिए मरीज़ों के इलाज की व्यवस्थाएँ की हैं, जबकि ऐसा नहीं है.
वो कहते हैं, "राज्य सरकार को न सिर्फ़ आरटी-पीसीआर टेस्ट बढ़ाने की ज़रूरत है बल्कि हर ज़िले में 50-100 बिस्तरों वाला कोरोना अस्पताल बनाने की ज़रूरत है, तभी बिहार कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग जीत सकता है."
कोरोना की इस स्थिति को लेकर हमने बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी.
इसके बाद हमने स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रत्यय अमृत को ईमेल करके उनसे उनका पक्ष जानना चाहा, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया. जवाब आने पर उसे इस रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.
'कोरोना की दूसरी लहर आना बाक़ी'
आईसीएमआर ने मंगलवार को दूसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट प्रकाशित की. इस सर्वे में पाया गया है कि अगस्त 2020 तक भारत में 10 साल की आयु से अधिक 15 में से एक 1 व्यक्ति के कोरोना वायरस के संपर्क में आने की आशंका है.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि शहरी झुग्गी बस्तियों और शहरी ग़ैर-झुग्गी बस्तियों में ग्रामीण क्षेत्र के मुक़ाबले अधिक संक्रमण फैलने का ख़तरा है.
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कोरोना संकट से बिहार कैसे निपट रहा है?
पुणे के सीजी पंडित नेशनल चेयर से जुड़े डॉक्टर रमन गंगाखेडकर सीरो सर्वे के हवाले से कहते हैं कि इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत की अभी कितनी बड़ी आबादी कोरोना संक्रमण के संपर्क में आने से बची हुई है.
वो कहते हैं कि ऐसा माना जा रहा है कि भारत में अभी तक कोरोना वायरस संक्रमण के पहले चरण का शीर्ष स्तर नहीं आया है, इसके बाद दूसरे चरण की भी आशंका जताई जा रही है.
डॉक्टर गंगाखेडकर कहते हैं कि बिहार जैसे राज्य में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले लगभग समाप्त हो जाएँ, ऐसा होता नहीं दिख रहा है क्योंकि अभी भी हर्ड इम्युनिटी बहुत दूर की चीज़ है.
दिल्ली और मुंबई जैसे शहर अपने यहाँ कोरोना वायरस की वास्तविक स्थिति पता लगाने के लिए कई बार सीरो सर्वे कर चुके हैं, जबकि बिहार राज्य ने इस तरह का कोई सर्वे अब तक नहीं किया है.
हालांकि, बिहार सरकार रोज़ाना 20,000 आरटी-पीसीआर टेस्ट करने का लक्ष्य बना चुकी है.