धरने के दौरान कुर्सी पर क्या बैठे तेजस्वी, छक्का मारने के फेर में कैच आउट हुए
पटना। नीतीश सरकार को गिराने की जल्दबाजी में तेजस्वी एक के बाद एक असंगत फैसले ले रहे हैं। इन फैसलों की वजह से उन्हें नाकामी झेलनी पड़ रही है। इससे फायदा की बजाय नुकसान हो रहा है। तेजस्वी बार-बार निशाना चूकेंगे तो एनडीए और मजबूत ही होगा। स्पीकर के चुनाव और राज्यसभा उपचुनाव में तेजस्वी की बाजी उल्टी पड़ चुकी थी। शनिवार को जब तेजस्वी ने दिल्ली के किसान आंदोलन के समर्थन में धरना दिया तो यह भी विवादों में आ गया। पहले तो उन्होंने कोरोना गाइडलाइंस और प्रशासनिक आदेश को तोड़ कर धरना दिया। दूसरे धरनास्थल पर तेजस्वी खुद कुर्सी पर बैठे और वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह को जमीन पर बैठाया। इसके बाद तो धरना से अधिक जगदानंद सिंह की तौहीन की चर्चा होने लगी। तेजस्वी छक्का मारने की कोशिश में हर बार कैच आउट हो जा रहे हैं।
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बिना
तैयारी
के
कूद
रहे
अखाड़े
में
बिना
तैयारी
के
अखाड़े
में
कूदने
से
दांव
उल्टा
पड़
रहा
है।
एनडीए
को
बेशक
बहुत
कम
मार्जिन
से
बहुमत
है।
लेकिन
यह
बहुमत
अटूट
और
एकजुट
है।
स्पीकर
के
चुनाव
में
लालू
यादव
के
'प्रबंध'
की
पोल
खुलने
से
राजद
की
किरकिरी
हो
गयी।
बिना
'प्रबंध'
के
उम्मीदवार
देने
का
कोई
मतलब
नहीं
था।
स्पीकर
के
चुनाव
का
जुआ
खेलने
से
तेजस्वी
को
कोई
फायदा
नहीं
मिला।
उल्टे
लोगों
में
ये
संदेश
गया
कि
वे
संघर्ष
करने
की
बजाय
शॉर्टकट
से
कामयाबी
पाना
चाहते
हैं।
लालू
यादव
और
भाजपा
विधायक
ललन
यादव
के
कथित
ऑडियो
के
वायरल
होने
से
एक
नुकसान
तो
तुरंत
हो
गया।
वैसे
अभी
इस
ऑडियो
टेप
की
जांच
हो
रही
है।
लेकिन
इस
विवाद
की
वजह
से
झारखंड
सरकार
को
मजबूरी
में
लालू
यादव
को
आलीशान
बंगले
से
पेईंग
वार्ड
में
शिफ्ट
करना
पड़ा।
अगर
स्पीकर
चुनाव
में
जोड़तोड़
की
कोशिश
नहीं
होती
तो
लालू
यादव
पर
जेल
मैन्युअल
तोड़ने
का
आरोप
नहीं
लगता।
स्पीकर
का
चुनाव
भी
हारे
और
लालू
यादव
की
मुश्किल
भी
बढ़
गयी।
राज्यसभा
उपचुनाव
में
भी
बाजी
उल्टी
पड़ी
इसी
तरह
राज्यसभा
उपचुनाव
में
भी
तेजस्वी
ने
खूब
माहौल
बनाया।
लेकिन
चिराग
पासवान
के
इनकार
ने
उनका
सारा
खेल
बिगाड़
दिया।
तेजस्वी
ने
दलित
कार्ड
खेलने
की
हड़बड़ी
में
चिराग
से
मशविरा
तक
नहीं
किया
और
एकतरफा
ही
उनकी
मां
के
लिए
उम्मीदवारी
का
ऑफर
दे
दिया।
चूंकि
इस
ऑफर
में
जीत
की
कोई
संभावना
नहीं
थी
इसलिए
चिराग
ने
शालीनता
के
साथ
इसे
ठुकरा
दिया।
चिराग
ने
तो
मना
किया
ही
राजद
के
श्याम
रजक
ने
भी
इस
प्रस्ताव
को
दो
टूक
खारिज
कर
दिया।
जाहिर
सी
बात
है,
कोई
जानबूझ
कर
क्यों
हार
को
गले
लगाना
चाहेगा
?
अपनी
पार्टी
में
भी
तेजस्वी
की
नहीं
चली
और
उनको
शर्मिंदगी
झेलनी
पड़ी।
उनकी
एक
और
चाल
भी
बेकार
गयी।
बाद
में
तेजस्वी
अपनी
लाज
छिपाने
के
लिए
ये
कहने
लगे
कि
उन्होंने
कब
कहा
था
कि
इस
चुनाव
में
वे
अपना
उम्मीदवार
देंगे।
राजनीतिक
पंडितों
का
मानना
है
कि
तेजस्वी
हारी
हुई
बाजियों
पर
बिसात
बिछा
कर
राजनीतिक
अपरिपक्वता
दर्शा
रहे
हैं।
अब
धरना
पर
विवाद
तेजस्वी
ने
किसान
आंदोलन
पर
जो
दांव
खेला
वह
विवादों
की
भेंट
चढ़
गया।
तेजस्वी
यादव
ने
किसान
आंदोलन
के
समर्थन
में
जो
धरना
दिया
उसने
एनडीए
को
एक
मुद्दा
दे
दिया।
धरनास्थल
पर
तेजस्वी
कुर्सी
पर
और
जगदानंद
सिंह
समेत
अन्य
नेता
जमीन
पर
बैठे
थे।
इस
बात
को
जदयू
ने
लपक
लिया।
जदयू
नेता
नीरज
कुमार
ने
कहा,
तेजस्वी
ने
पिता
तुल्य
जगदा
बाबू
को
अपने
पैरों
के
पास
बैठाकर
उनको
औकात
दिख
दी।
इस
तस्वीर
के
सार्वजनिक
होने
से
एक
बार
फिर
आरोप
लगने
लगे
हैं
कि
तेजस्वी
के
आगे
राजद
में
किसी
भी
नेता
की
कोई
अहमियत
नहीं।
रघुवंश
प्रसाद
सिंह
प्रकरण
के
बाद
एक
बार
फिर
ये
कहा
जा
रहा
है
कि
अब
राजद
में
वरिष्ठ
नेताओं
की
कोई
इज्जत
नहीं।
कोरोन
गाइडलाइंस
को
तोड़
कर
जिस
तरह
यह
धरना
कार्यक्रम
आयोजित
किया
गया
उस
पर
भी
सवाल
खड़ा
हो
गया।
दिल्ली
में
चल
रहे
किसान
आंदोलन
का
अभी
बिहार
में
कोई
असर
नहीं
है।
बिहार
के
किसानों
की
अपनी
समस्या
है।
अभी
धान
खरीद
का
मौसम
है।
बिहार
के
किसानों
को
शाय़द
ही
न्यूनतम
समर्थन
मूल्य
का
फायदा
मिलता
है।
ये
आजकल
की
बात
नहीं
है।
पिछले
दो
दशक
से
यही
कहानी
है।
तेजस्वी
धान
खरीद
को
मुद्दा
बनाने
की
बजाय
दिल्ली
के
किसान
आंदोलन
को
समर्थन
दे
रहे
हैं।
तेजस्वी
मुद्दों
से
अधिक
एक्सपोजर
पर
ध्यान
दे
रहे
हैं।
लेकिन
मुश्किल
ये
है
कि
उनके
तीर
निशाने
पर
नहीं
लग
रहे।
सुशील मोदी ने तेजस्वी पर कसा तंज, कहा- जिनके शासन में 17 हजार अपहरण हुए उन्हें गांधी याद आ रहे हैं