तेजप्रताप प्रकरण : क्या पुत्रमोह के चलते राजद को बर्बाद होने देंगे लालू?
पटना। क्या पुत्रमोह के कारण लालू यादव राजद को बर्बाद हो जाने देंगे ? तेजप्रताप यादव पिछले दो साल से पार्टी के बड़े नेताओं की पगड़ी उछाल रहे हैं। लेकिन लालू यादव आंख मूंदे हुए हैं। क्या दिन में आंखें मूंद लेने से रात का अंधेरा हो जाता है ? अब पानी सिर से ऊपर हो गया है। तेजप्रताप ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की जिस तरह से बेइज्जती की, क्या वह लालू यादव को स्वीकार है ? बदसलूकी की इतनी बड़ी घटना के दो दिन हो गये फिर राजद में खामोशी छायी हुई है। ऐसे मामलों में तो त्वरित कार्रवाई होती है। क्या कंधों को झुका देने से तूफान का असर कम हो जाएगा ? इतिहास गवाह है कि पुत्रमोह के कारण बड़े-बड़े साम्राज्यों का अंत हो गया है। फिर राजद तो विपक्ष में बैठा एक क्षेत्रीय दल है। उसको बिखरने में कितनी देर लगेगी।
लालू यादव को क्यों नहीं सलाह देते शिवानंद?
दिसम्बर 2020 की बात है। राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने सोनिया गांधी को एक नेक सलाह दी थी। तब शिवानंद तिवारी ने कहा था, "सोनिया जी के सामने यक्ष प्रश्न है, पार्टी या पुत्र ? या यूं कहिए कि पुत्र या लोकतंत्र ? यह स्पष्ट हो चुका है कि राहुल गांधी में लोगों को उत्साहित करने की क्षमता नहीं है। जनता की बात छोड़ दीजिए, पार्टी के लोगों का ही उन पर भरोसा नहीं है। मजबूरी में सोनिया जी कामचलाऊ अध्यक्ष के रूप में पार्टी को खींच रहीं हैं। मैं सोनिया जी से नम्रतापूर्वक अपील करता हूं कि वे पुत्रमोह को त्याग कर लोकतंत्र को बचाने के लिए आगे कदम बढ़ाएं।" शिवानंद तिवारी ने लाख टके की बात कही। लेकिन ये नेक सलाह वे लालूजी को क्यों नहीं दे पा रहे ? कम से कम राहुल गांधी ने आज तक कांग्रेस के किसी नेता को सार्वजनिक रूप से अपमानित नहीं किया है। लेकिन तेजप्रताप ने तो सारी हदें पारी कर दीं। लोकतंत्र और पार्टी को मजबूत करने के लिए लालू यादव क्यों नहीं पुत्रमोह का परित्याग कर देते ? रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह के बाद अब किसका नम्बर आने वाला है, कोई नहीं जनता ?
भारत रत्न सचिन तेंदुलकर पर शिवानंद तिवारी की गुगली के मायने?
देवीलाल का पुत्रमोह
एक समय देवीलाल गैरकांग्रेस राजनीति के सबसे बड़े स्तंभ थे। लेकिन पुत्रमोह के कारण ही उनकी राजनीति रसातल में चली गयी। उनके पुत्र ओमप्रकाश चौटाला आज जेल में सजा काट रहे हैं। 1989 में देवीलाल और वीपी सिंह राजनीति के शीर्ष पर थे। उस समय विपक्ष की राजनीति देवीलाल पर ही केन्द्रित थी क्योंकि वे तब समाजवादी धारा के अकेले मुख्यमंत्री थे। 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई। वह 404 से 197 पर लुढ़क गयी। देवीलाल और वीपी सिंह की अगुआई में जनता दल को 143 सीटें मिलीं। जनता दल ने वामदलों के 43 और भाजपा के 85 सांसदों के समर्थन से सरकार बनायी। संसदीय दल के नेता देवीलाल चुने गये। देवीलाल चाहते तो प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन उन्होंने वीपी सिंह के नाम को आगे कर दिया। दिसम्बर 1989 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने। देवीलाल उस समय हरियाणा के मुख्यमंत्री थे। उन्हें उपप्रधानमंत्री बनना था। इसलिए देवीलाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
पुत्र की तरफदारी का विरोध
देवीलाल जब दिल्ली गये तो उन्होंने अपने बेटे ओमप्रकाश चौटाला को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनवा दिया। ओमप्रकाश चौटाला किसी सदन के सदस्य नहीं थे। फिर भी उनको कुर्सी सौंप दी गयी। उस समय देवीलाल की तूती बोल रही थी। किसी ने विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखायी। ओमप्रकाश सीएम तो बन गये लेकिन उनका विधायक बनना जरूरी था। देवीलाल ने मेहम सीट से विधानसभा चुनाव जीती था। केन्द्र में जाने के बाद उन्होंने विधायकी से इस्तीफा कर दिया। अब ओमप्रकाश चौटाले के पास मौका था कि वे मेहम से उपचुनाव लड़ कर विधायक बन जाएं। लेकिन इसके बाद जो हुआ उससे देवीलाल की साख पर बट्टा लग गया। जब ओमप्रकाश चौटाला ने मेहम से चुनाव लड़ने की घोषणा की तो जाट समुदाय की जमात 'मेहम चौबीसी' नाराज हो गयी। मेहम चौबिसी के लोग चाहते थे कि यह सीट देवीलाल के समर्पित कार्यकर्ता आनंद सिंह को दी जाए। लेकिन ओमप्रकाश नहीं माने। तब लोगों की राय पर आनंद सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया। अधिकतर लोग पिता की सीट पुत्र को दिये जाने से नाराज थे।
नीतीश कुमार के कैबिनेट विस्तार में क्या है भाजपा का सियासी दांव?
मोह का परिणाम
27 फरवरी 1990 को मेहम में उपचुनाव हुआ। चुनाव में खूब धांधली हुई। बूथ लूटे गये। जम कर बवाल हुआ। आरोप लगा कि मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को चुनाव जितवाने के लिए खूब धांधली हुई। चूंकि चौटाला, मेहम चौबिसी की जनभावना के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे इसलिए उन्हें दिक्क्त पेश आ रही थी। गड़बड़ी की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने आठ बूथों पर चुनाव रद्द कर दिया। जब इन बूथों पर दोबारा वोटिंग हुई तो और भी भयंकर हिंसा हो गयी। आरोप है कि आनंद सिंह के समर्थकों को वोट देने के लिए जोर लगाया तो गोलियां चल गयीं। इस घटना में आठ लोग मारे गये। इस घटना के बाद उपचुनाव रद्द कर दिया गया। दोबारा चुनाव का एलान हुआ। इस बार निर्दलीय प्रत्याशी आमिर सिंह की हत्या हो गयी। चुनाव फिर रद्द हो गया। इस घटना से पूरे देश की राजनीति में उबाल आ गय़ा। केन्द्र की वीपी सिंह सरकार पर इस बात के लिए दबाव बढ़ने लगा कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें। वीपी सिंह ने ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देने के लिए कहा। देवीलाल अड़ गये कि उनके पुत्र इस्तीफा नहीं देंगे। तब केन्द्र सरकार को समर्थन दे रही भाजपा ने भी ओमप्रकाश चौटाला से इस्तीफे की मांग कर दी। आखिरकार चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन इसके बाद देवीलाल और वीपी सिंह में दुश्मनी पैदा हो गयी। कहा जाता है कि देवीलाल की राजनीति को खत्म करने के लिए वीपी सिंह ने मंडल कमिशन की सिफारिशें लागू की थीं।
अनुशासन के बिना कैसी चलेगी पार्टी?
ओमप्रकाश चौटाला चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। लेकिन उनकी राजनीति विवादों में रही। 17 महीने में तीन सीएम बने और तीन बार इस्तीफा दिया था। जो उनका सबसे लंबा कार्यकाल रहा (1999-2000) उसमें भर्ती घोटाला का आरोप लग गया। इसकी वजह से उनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया। अब उनके पौत्र दुष्यंत चौटाला हरियाणा के उपमुख्यमंत्री हैं। लेकिन इस परिवार की राजनीति कभी उस ऊंचाई को नहीं छू सकी जो देवीलाल के जमाने में थी। पुत्रमोह के कारण देवीलाल जैसे दिग्गज नेता को कीमत चुकानी पड़ थी। मुलायम सिंह यादव का उदाहरण सामने है। तो क्या राजद ऐसे असर से अछूता रह पाएगा ? अनुशासन के बिना कोई पार्टी कितने दिनों तक खड़ी रह पाएगी ? लालू यादव इतिहास से वाकिफ हैं फिर भी खामोश हैं।